एक क्लिक में पाएं गृह क्लेश और संतान से संबंधित सभी समस्याओं का हल

punjabkesari.in Saturday, Feb 06, 2016 - 02:45 PM (IST)

वास्तु शास्त्र के अनुसार वायव्य कोण वायु प्रधान स्थान है। यहां वायु तत्व को स्थित माना गया है। इसलिए यहां अग्नि कार्य किसी भी रूप में पूर्णत: वर्जित है। यदि एक माह तक व्यक्ति तेल का दीपक जला कर वायव्य कोण में रखे तो घर में गृह क्लेश एवं मानसिक अशांति का वातावरण तैयार होता है।

हमारे मानव शरीर में वायुतत्व पांच रूपों में कार्यरत हैं जो इस प्रकार हैं- व्यान, समान, अपान, प्राण और उदान। वायु ही शरीर रूपी वास्तु का आधार है। इनके सुचारू और संतुलित रहने से हमारा शरीर सही रूप में कार्य करता है। जैसे ही वायु का संतुलन बिगड़ता है यह दोष शारीरिक क्रियाओं को प्रभावित कर देता है।

इसे वात या वायु कुपित होना भी कहते हैं। वायु के पांचों प्रकार में प्राण वायु के महत्व को सभी जानते हैं। जब तक प्राणवायु का सतत् आगमन जारी है तब तक यह काया रूपी इमारत भी सुंदर और स्वस्थ रहती है और जैसे ही प्राणवायु का प्रवाह बंद होता है वैसे ही इसकी सुंदरता नष्ट हो जाती है। इसी प्रकार किसी भी भवन में वायु तत्व का सही संतुलन होने पर वह उसे भवन के सभी दोषों से दूर रखता है। हमारे वास्तु विशेषज्ञों ने वायव्य दोष से मुख्य रूप से तीसरी संतान पर अधिक दुष्प्रभाव पडऩे की बात कही है। इसके अतिरिक्त जन्म लग्र कुंडली से इसका ग्रह स्थितियों से संबंध इस प्रकार भी जुड़ता है-

* यदि किसी जातक या जन्म लग्र कुंडली में कोई भी ग्रह पंचमेश होकर अस्त, पाप दृष्ट या पाप एवं क्रूर ग्रहों से युक्त हो और उस पर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो।

* यहां शनि वेध हो या राहु स्थित हो, पंचम भाव में मंगल-शनि अथवा मंगल-राहु की युति हो तो संतान संबंधी दोष उत्पन्न करता है।

* जहां जन्म लग्र कुंडली में नीच बुध, सूर्य, मंगल आदि हों और गुरु या शुक्र की दृष्टि न पड़ती हो, पंचमेश यदि नीच का होकर बैठा हो तो भी संतान संबंधी पीड़ा अवश्य रहती है।

* पंचम भाव पर शनि या राहु की दृष्टि हो। पंचम भाव के पीड़ित होने के ये कुछ मुख्य कारण हैं, जिनके फलस्वरूप संतान संबंधी दोष उत्पन्न होते हैं। जन्म लग्र कुंडली का वायव्य कोण वास्तु दोष युक्त हो तो संतान पक्ष प्रभावित होता है। वायव्य के दोष जनित होने पर वास्तु दोष के कारण परिवार के सदस्यों में असाध्य रोगों का दौर बना रहता है।

उपाय : एक ‘पाञ्चजन्य’ दिव्य शंख की स्थापना भवन में पूजा स्थल पर करने तथा शंख जल का आचमन व भवन में छिड़काव करने से वास्तु दोष निवारण तथा संतान संबंधी सर्वसमस्याओं का निदान संभव है।

—महर्षि डा. पं. सीताराम त्रिपाठी शास्त्री 


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