प्रकृति और शांति का प्रतीक ‘हरा रंग’, देता है कुछ खास संदेश

punjabkesari.in Tuesday, Mar 21, 2017 - 03:15 PM (IST)

हरा रंग शांति का प्रतीक है। यह रंग मनुष्य को किसी भी परिवेश के साथ जूझने का आत्मबल प्रदान करता है। हरा रंग मनुष्य को मित्रता बढ़ाने में सहायता करता है। यदि वे अपने काम में असफलता प्राप्त करते हैं तो वे सारा दोष दूसरों पर लादते हैं। हरे रंग से मनुष्य का गुस्सा मर जाता है। यह रंग लाल रंग के विपरीत है। इस रंग से मनुष्य अपनी बातों पर डटे रहते हैं। हरे रंग के लाभ आसमानी रंग के समान हैं। इस रंग में नासूर रोग शांत करने की बड़ी क्षमता है। अनिद्रा के रोग में लाभदायक है। दिमागी खराबियों को दूर करता है। जुकाम, गले की खराबी आदि को मिटाता है। स्वर नलिका को साफ रखता है। आंखों के लिए शांतिदायक तथा मन को प्रसन्न रखने वाला है। ग्रीष्म ऋतु में यह नीले रंग के समान लाभदायक है। इस रंग की बोतल का पानी दिमाग को ठंडा रखता है तथा शरीर की ऊष्णता को कम करता है। इस रंग के पर्दे और इस रंग की दीवारें रोगी मनुष्य का चित्त प्रसन्न रखती हैं। अधिक से अधिक इस रंग का प्रयोग करना लाभदायक है। यह रंग स्वास्थ्य के लिए बड़ा ही उत्तम माना गया है।


हरे रंग की प्रकाश किरणें मानवी काया में प्रविष्ट होकर रक्त धमनियों का विस्तार करती हैं। साथ ही हृदय में उत्तम भावनाओं को विकसित करने में सहायक होती हैं। मानसिक तनाव से छुटकारा दिलाना इनका प्रमुख कार्य है। इसके अधिक प्रयोग से पिट्यूटरी ग्रंथि और मांसपेशियों के उत्तकों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।


हरा रंग आध्यात्मिक वातावरण 
हरा रंग समग्र प्रकृति में व्याप्त है। यह पेड़-पौधों, लहलहाते खेतों, क्यारियों, पर्वतीय प्रदेशों की आच्छादित करने वाला मधुर रंग है। यह मन को शांति और हृदय को शीतलता, सुख, शांति, स्फूर्ति देने वाला रंग है। यह नेत्र ज्योति की वृद्धि करता है और मन में संतुलन, प्रसन्नता, सुख तथा शीतलता देता है। 


लक्ष्मी जी को मंगलकारी लाल वस्त्रों तथा नेत्र-सुखदायक हरे रंग से भी विभूषित किया गया है। लाल और हरे रंग के सम्मिश्रण से महालक्ष्मी जी की सात्विकता, जितेंद्रियता, सत्यपरायणता, कल्याण कामना और सौभाग्य को स्पष्ट किया गया है। लाल और हरे रंगों से उद्योगशीलता स्पष्ट होती है। लक्ष्मी जी उन्हीं पुरुष श्रेष्ठों के पास रहती हैं जो उद्योगी, परिश्रमी, स्फूर्तिदायक और आत्मविश्वासी हैं। ये दोनों रंग मिलकर मनुष्य के मन की शांति, तेज बल और आत्म गौरव को बढ़ाने वाले हैं। यदि हम इन रंगों को धारण करें तो प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करते हैं और सुखी रहते हैं। 


ऋषि-मुनियों ने अपनी आध्यात्मिक उन्नति ऊंचे हरे पर्वत-शिखरों, लंबे घास के हरे मैदानों, कल-कल करती नदियों, झरनों और चांदी बिखेरते निर्झरों के हरे तटों के शांत सुखद वातावरण में की थी। संसार के महान ग्रंथ, मौलिक विचार, प्राचीन शास्त्र, वेद पुराण आदि श्रेष्ठतम ग्रंथ हरे वातावरण में ही निर्मित हुए हैं। हमारे पूर्वजों के आत्मा तथा परमात्मा संबंधी उत्कृष्ट विचार हरे वातावरण की उर्वरा विचार-शक्ति की देन हैं। हरा रंग वानस्पतिक जगत का रंग है जो हमें गंगा-यमुना के दोआबा में हरे-भरे खेतों, वृक्षों में समुद्र तटीय राज्यों के नारियल की लम्बी-लम्बी पंक्तियों के रूप में, कश्मीर में हरे-भरे वन और वादियों में, पूर्वी भारत में चाय के बागानों में और जगह-जगह मखमली घास के रूप में नेत्रों की शीतलता देता है।


यह रंग भावनात्मक रूप से राजसी ठाठ और निरंकुशता की प्रकृति को प्रदर्शित करता है। हरे रंग में बेरियम, क्लोरोफिल, तांबा, नाइट्रोजन और निक्कल जैसे तत्व पाए जाते हैं। वनस्पति जगत में तो पौधे हरे रंग के बिना अपना भोजन भी नहीं प्राप्त कर पाते। मानसिक तनाव को कम करने में इसका विशेष योगदान है और इसी कारण यात्रा में हरी-भरी प्राकृतिक छटा को देखकर मनुष्य को मानसिक शांति की अनुभूति होती है। हरा रंग हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण और काम का है इसका अनुमान आपको तभी होगा जब आप स्वयं इसका अधिक से अधिक उपयोग करेंगे। वास्तव में हरा रंग ही एक ऐसा रंग है जिसे देख कर मन प्रसन्न हो उठता है, मन में शांति का अनुभव होता है और आंखों को सबसे अधिक यही रंग अच्छा लगता है। 


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