धनहीनता के योग बनते हैं कुछ इस तरह, जातक पैसे-पैसे के लिए तरस जाता है

punjabkesari.in Monday, Oct 09, 2017 - 10:18 AM (IST)

धनहीनता एक दुर्भाग्य ही है जिसमें जातक पैसे-पैसे के लिए तरस जाता है। धनहीनता के कुछ योग हैं ये। यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में दशम भाव का स्वामी षष्ठम भाव, अष्टम भाव एवं द्वादश भाव में हो तो ऐसे जातक को अपने द्वारा किए गए परिश्रम का पूरा लाभ नहीं मिल पाता। यदि लग्नेश कमजोर हो तो जातक महादरिद्र तथा दूसरों द्वारा हेय अर्थात नीची दृष्टि से देखा जाने वाला होता है। ऐसा जातक अत्यधिक स्वार्थी होता है। ऐसा जातक दूसरे व्यक्तियों को बेवकूफ बनाने की चेष्टा करता है।


यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में पंचमेश लाभेश एवं सुखेश (शुक्र) के साथ व्यय भाव में हो तथा व्ययेश धन भाव में हो और पापी शनि से दृष्टि द्वारा पीड़ित हो तथा लग्नेश अष्टम भाव में पापी ग्रह से पीड़ित हो तो ऐसा जातक निर्धन होता है।


यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में धनेश शत्रु क्षेत्रीय होकर नवम (त्रिकोण भाव) में हो और लाभेश नीच ग्रह होकर दशमेश से युत होकर पापी ग्रह के साथ लग्न में हो तो ऐसा जातक निर्धन होता है। 


यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में लग्नेश बुध एवं धनेश (शुक्र) व्यय भाव में शत्रु क्षेत्रीय होकर स्थित हो और लाभेश (एकादशेश) छठे भाव में पापी ग्रह की राशि में हो। धनेश गुरु पापी ग्रह से युक्त धन भाव में शत्रु क्षेत्रीय हो और अष्टमेश पराक्रमेश नवम भाव में शत्रु क्षेत्रीय हो तो ऐसा जातक निर्धन होता है।


यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में दशम भाव का स्वामी छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में हो तथा लग्नेश कमजोर हो अथवा सूर्य नीच राशि में बैठकर पापी ग्रहों से पीड़ित होकर लग्न, चतुर्थ, सप्तम,दशम भाव में हो और लग्नेश बलहीन हो तो ऐसा जातक अरबपति के घर जन्म लेकर भी कंगाल होता है। ऐसा जातक जीवन भर दूसरों से कर्ज लेता ही रहता है।


यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में लाभेश छठे भाव, अष्टम भाव या बारहवें भाव में हो तथा लाभेश नीच राशिस्थ हो या अस्त, वक्री या पाप पीड़ित हो तो ऐसा जातक धनाभाव के कारण महादरिद्र होता है।


यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में मिथुन लग्न हो और सूर्य, वृष, वृश्चिक, मकर राशि में हो तथा लग्नेश बलहीन हो अथवा कर्क लग्न हो और सूर्य, मिथुन राशि या कुंभ राशि में हो अथवा सिंह लग्न हो। सूर्य, कर्क, मकर, मीन राशि में हो तथा लग्नेश बलहीन हो अथवा लग्न प्रथम भाव में वृष राशि, वृश्चिक राशि या मीन राशि हो तथा लग्नेश बलहीन हो और सूर्य पापी ग्रहों से युक्त या दृष्ट होकर केंद्र में हो अथवा जन्मकुंडली में मेष, कर्क, तुला एवं मकर लग्नस्थ हों तथा लग्नेश कमजोर (निर्बल) हो एवं सूर्य चतुर्थ, सप्तम, दशम भाव (केंद्र स्थान में शत्रु राशि या नीच राशि या जल राशि) में हो तो ऐसा जातक निर्धन होता है। बेशक ऐसा जातक अरबपति के यहां पैदा हो, उसे दूसरे व्यक्तियों के आगे हाथ फैलाकर जीवन भर मांगना ही पड़ता है।


यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में धन (द्वितीय स्थान) भाव में पापी ग्रह हो और धनेश पापी ग्रह से युक्त हो और लाभेश भी पापी ग्रहों से पीड़ित हो तो ऐसा जातक बेशक अरबपति के यहां पर जन्म ले फिर भी उसे दूसरे मनुष्यों के आगे हाथ फैलाना ही पड़ता है अर्थात ऐसा व्यक्ति जीवन भर किसी न किसी व्यक्ति से किसी न किसी प्रकार का कर्जा लेता ही रहता है।


यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में चंद्रमा किसी भी ग्रह से युक्त न हो और चंद्रमा से द्वितीय एवं एकादश भाव में कोई ग्रह न हो तथा कोई शुभ ग्रह चंद्रमा को न देखता हो तो ऐसा जातक दरिद्र होता है तथा रुपयों की प्राप्ति के लिए दर-दर की ठोकरें खाता हुआ भटकता भी है।


यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में धनेश छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में हो और लग्नेश कमजोर हो तो ऐसे जातक को धन के मामले में काफी संघर्ष करना पड़ता है। ऐसा जातक धन तो बहुत कमाता है, परंतु तुरंत खर्च हो जाता है।


यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में बृहस्पति से चंद्रमा छठे भाव, आठवें भाव या बारहवें भाव में हो और चंद्रमा प्रथम भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, दशम भाव (अर्थात केंद्र स्थानों) में न हो तो ऐसा व्यक्ति दुर्भाग्यशाली होता है। ऐसे जातक के पास सदैव धन का अभाव रहता है। इनके जीवन में बहुत सारे उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। संगे-संबंधी भी कष्ट के समय जातक का साथ छोड़कर सहायता नहीं करते हैं।


यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में व्ययेश बारहवें भाव में हो और बारहवें भाव का पापी ग्रहों से संबंध हो तो ऐसा जातक गलत कार्यों, फालतू के कार्यों में (फिजूल खर्चा) अपना धन नष्ट करके धनहीन बन जाता है। जुआरियों, सटोरियों एवं नशेडिय़ों की कुंडली में यह योग बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। ऐसा जातक बिना विचारे भावावेश में आकर रुपया-पैसा लाटरी, जुआ, सट्टा, ऐशो-आराम में खर्च करके बाद में पछताता है।


यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में शुक्र एवं बृहस्पति अथवा चंद्र एवं बुध (ये दोनों ग्रह) बारहवें भाव में बैठे हों तो ऐसा जातक धर्मशाला, न्याय भवन, प्याऊ, स्कूल, महाविद्यालय इत्यादि विभिन्न प्रकार के धार्मिक कार्यों में पैसा (धन) खर्च कर देता है।


यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में मेष राशि में चंद्र, कुंभ राशि में शनि, मकर राशि में शुक्र एवं धनु में सूर्य हो तो ऐसे जातक को अपनी पैतृक सम्पत्ति नहीं मिलती। 
यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में छठे भाव का स्वामी (अपने) छठे भाव (अर्थात लाभेश), ग्यारहवें भाव के स्वामी धनेश (द्वितीयेश) के साथ हो (क्योंकि छठा भाव ऋण एवं शत्रुओं का है।) छठे भाव से श्रम, ऋण-बदनामी, दुश्मनों की तृप्ति, क्षय रोग, उष्णता, चोट आदि का पता चलता है और जब षष्ठेश युक्त लाभेश (एकादशेश) का संबंध द्वितीय भाव या द्वितीयेश (धनेश) से हो तो ऐसा जातक सदैव ऋणग्रस्त रहता है। एक कर्ज जातक उतारेगा, तब दूसरा कर्जा जातक पर हो जाएगा।
 


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