भारत-चीन में जंग की नौबत-हालत 1962 जैसे ही, सामने खड़ी 3 बड़ी चुनौतियां

punjabkesari.in Monday, Jul 24, 2017 - 11:59 AM (IST)

जम्मूः चीन अपनी विस्तारवादी नीति एवं आक्रामक रुख के कारण भारत समेत तमाम पड़ोसियों के लिए बड़ा खतरा है। चीन की विस्तारवादी नीति से तिब्बत, भारत, भूटान, नेपाल, ताईवान, वियतनाम, दक्षिणी कोरिया, मलेशिया, मंगोलिया, ब्रूनेई, जापान समेत उसके तमाम पड़ोसी देश बेहद परेशान हैं। भारत में लद्दाख का बहुत बड़ा भू-भाग चीन पहले ही हड़प कर चुका है और अब उसकी नजर अरुणाचल एवं सिक्किम पर है। तिब्बत को हड़पने के बाद चीन अब भूटान को हड़पने की कोशिश में है।

भारत-चीन संबंधों का संक्षिप्त इतिहास
1 अप्रैल को भारत एवं चीन अपने राजनयिक संबंधों की 55वीं वर्षगांठ मना चुके हैं लेकिन 1962 में चीन द्वारा दोस्ती की आड़ में भारत की पीठ में छुरा घोंपने के बाद दोनों देशों के बीच शुरू हुआ अविश्वास का दौर निकट भविष्य में भी समाप्त होता नजर नहीं आ रहा है। दोनों देश सन् 2000 में विज्ञान, तकनीक एवं संस्कृति के क्षेत्र में संयुक्त मंच स्थापित कर चुके हैं। 2003 में पूर्व  प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चीन की यात्रा की और चीनी प्रधानमंत्री वन चा पाओ के साथ संयुक्त घोषणा पत्र जारी किया। घोषणा पत्र में भारत ने औपचारिक रूप से कहा कि भारत तिब्बत को चीन का एक भाग मानता है। इस तरह भारत सरकार ने प्रथम बार खुले रूप से किसी औपचारिक दस्तावेज के माध्यम से तिब्बत की समस्या पर अपने रुख पर प्रकाश डाला। इसके बाद चीन भारत को बड़े बाजार के तौर पर देखते हुए तमाम मंचों पर एक साथ खड़ा तो नजर आया लेकिन भारत के उदारतापूर्ण रवैये के बावजूद मूल समस्याएं जस की तस रहीं। अब फिर दोनों देश डोकलाम मुद्दे पर आमने-सामनें हैं। चीन से लगातार धमकियां मिल रही हैं। 

ये हैं तीन बड़ी चुनौतियां
1. कम समय में तैयारी

यहां तक भारत-चीन के बीच युद्ध की संभावना की बात है तो तैयारी के लिए भारत के पास समय कम है। बीते दिनों एयर चीफ मार्शल धनोआ अपने अधीनस्थ अधिकारियों को चिट्ठी लिखकर कम वक्त की तैयारी में ऑप्रेशन के लिए तैयार रहने को कह चुके हैं।

2. साजो-सामान और संसाधन जमीनी ताकत
दोनों देशों में सेना की ताकत की बात की जाए तो चीन के पास हमारे से ज्यादा सैनिक हैं। चीन के पास  23 लाख सक्रिय सैनिक हैं, जबकि भारत के पास करीब 13 लाख सक्रिय सैनिक हैं। चीन के पास 6 हज़ार 457 कॉम्बैट टैंक हैं, जबकि भारत के पास 4 426 कॉम्बैट टैंक हैं।

-हवाई ताकत
आर्म्ड वेकिल्स के मामले में चीन के पास 4,788  जबकि भारत के पास 6,704 वेकिल्स हैं। दोनों देशों की हवाई ताकत की बात करें तो चीन के पास भारत के मुकाबले 853 लड़ाकू विमान कम हैं। नेवल एसैट्स की बात करें तो यहां पर भी चीन करीब 3 गुना आगे है। चीन के पास एक एयरक्राफ्ट कैरियर है, जबकि भारत के पास 3 हैं। चीन के पास 35 डेस्ट्रोयार्स यानी विध्वंसक युद्धपोत हैं, जबकि भारत के पास 11 डेस्ट्रोयार्स  हैं।

-जलसेना में ताकत
चीन के पास 68 सबमैरींस हैं, जबकि भारत के पास 15 पनडुब्बियां हैं।  भारत के पास चीन के मुकाबले युद्धपोत बहुत कम हैं।

3. कहां से कहां जा सकती है लड़ाई
कुछ सैन्य विशेषज्ञों की मानें तो चीन के साथ की लड़ाई मैदान की लड़ाई नहीं होगी। यह पहाड़ों की लड़ाई होगी और पहाड़ोंं की लड़ाई में तोप और गोलों की जगह पैदल सेना का ज्यादा महत्व होता है। कारगिल के युद्ध में भारत की सेना ने बहुत से सैनिकों को खोकर फिर  विजय पाई थी, जोकि उनकी लड़ाई मात्र आतंकवादियों से थी और जब उनकी लड़ाई चीन की सेना से कई मोर्चों पर होगी तो क्या भारत के पास इतनी इन्फैंट्री है कि वह पूरे हिमालय में उसे लगा सके साथ ही उसके पास गोलियां और बंदूकें पहुंचा सके। यह लड़ाई पाकिस्तानी कश्मीर से फिर लद्दाख, तिब्बत, नेपाल, सिक्किम, भूटान से होती हुई अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा, मणिपुर में भी बर्मा की तरफ  से घुस जाएगी। क्योंकि बर्मा के सैनिक शासन के पीछे पूरी तरह से चीन ही है और बर्मा का उपयोग वो पूरी तरह करेगा। चीन ने पूरे हिमालय में अपनी सेना को लगा रखा है और अपने सैनिकों को पूरी तरह तैयार कर रखा है।

  भारत           चीन  अंतर
रक्षा बजट    53.3 बिलियन डालर 152 बिलियन डालर      3 गुना कम
सक्रिय सैनिक      13 लाख  23 लाख   10 लाख कम
रिजर्व सैनिक  2143000   2300000   करीब डेढ़ लाख
काम्बैट टैंक  6,457 4,426   करीब 2 हजार
आर्म्ड वेकिल्स  6,704  4,788   1916 ज्यादा
लड़ाकू विमान     2,102  2,955  853 कम  
नेवल एसैट्स     295  714   419 कम 
(छोटे-बड़े जहाज) एयरक्राफ्ट कैरियर   3    2 अधिक
युद्धपोत   14  51   37 कम
विध्वंसक जहाज     11      35   24 कम
पनडुब्बियां    15   68   53 कम
परमाणु हथियार   110   260   150 कम
क्रूज मिसाइल     400 3,000    2600 कम
बैलिस्टिक मिसाइल्स  5,000 13,000    8,000 कम


सबसे बड़ी मुश्किल डोकलाम तक सेना पहुंचाने में
अहम बात यह है कि सिक्किम में रेल नैटवर्क नहीं है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन पश्चिम बंगाल में न्यू जलपाईगुड़ी  है, जो गंगटोक समेत पूर्वोत्तर के कई बड़े शहरों से जोड़ता है। भारत में 1975 में शामिल होने के बाद से ही सिक्किम रेल संपर्क की मांग कर रहा है। योजना तो गंगटोक के पास रानीपुल के अलावा नामची तक रेल ले जाने की है। नामची दक्षिण सिक्किम का मुख्यालय है। सिक्किम की सीमाएं चीन और भूटान से मिलती हैं। इसलिए ये रेल मार्ग सामरिक महत्व रखता है।

सेना को सीमा पर भेजने और रसद आदि की सप्लाई के लिहाज से भी रेल लाइन का खासा महत्व है। अक्तूबर 2009 में तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने इस रेल मार्ग का नींव पत्थर रखा था लेकिन रेल मार्ग में प्रगति नहीं हुई। जिस हिसाब से काम चल रहा है अभी तीन साल से ज्यादा समय लग जाएगा सिक्किम में रेल नैटवर्क बिछाने में। सीमा विवाद के चलते भारत और चीन में डेढ़ महीने से ज्यादा समय से तनातनी चल रही है। दोनों देशों में तल्खी की वजह डोकलाम क्षेत्र है। दोनों देशों ने इस तरफ अपनी सेनाएं आगे भेज दी हैं और दोनों पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।

यही नहीं चीन डोकलाम के पास युद्धाभ्यास तक कर चुका है। हालांकि दावा यह किया जा रहा है कि 1962 के मुकाबले भारत सैन्य शक्ति और मिसाइलों के दम पर पहले से बेहतर स्थिति में है लेकिन यह भी सच है कि भारत चीन और पाकिस्तान से एक साथ युद्ध करने में  सक्षम नहीं है। भारत पाकिस्तान के मुकाबले भले ही बेहतर स्थिति में है मगर चीन के पास भारत से ज्यादा सैन्य शक्ति और संसाधन हैं। सच्चाई यह भी है कि चीन भारत से तीन गुना ज्यादा सैन्य ताकत रखता है। 1962 में  भारत के पास केवल 12 हजार सैनिक थे तो चीन के पास 80 हजार। आज भी चीन के पास भारत से ज्यादा सैनिक हैं।

भारत चीन को कुछ दिन रोकने की ताकत रखता है। दूसरी तरफ ऐसा भी नहीं कि युद्ध से नुक्सान केवल भारत को होगा। युद्ध होता है तो चीन की आर्थिकता को भी बड़ा झटका लग सकता है। भारत के साथ चीन का 1.6 अरब डालर का व्यापार है जिसको बड़ा झटका लगेगा। यहां तक भारत और चीन में विवाद की वजह है तो यह केवल डोकलाम का क्षेत्र नहीं है। दोनों देशों के  बीच तल्खी   के 15 से ज्यादा कारण हैं। 

कैग की रिपोर्ट खोल चुकी पोल
संसद में शुक्रवार को नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट से साफ जाहिर है कि भारतीय सेना इन दिनों गोला-बारूद की भारी कमी से जूझ रही है। रिपोर्ट ने मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। रिपोर्ट में साफ तौर पर बताया गया है कि युद्ध छिडऩे की स्थिति में सेना के पास महज 10 दिन के लिए ही पर्याप्त गोला-बारूद है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि कुल 152 तरह के गोला-बारूद में से महज 20 प्रतिशत यानी 31 का ही स्टॉक संतोषजनक पाया गया, जबकि 61 प्रकार के गोला बारूद का स्टॉक चिंताजनक रूप से कम पाया गया।

संचार-तंत्र पर है चीन का कब्जा!
जंग के दौरान संचार तंत्र की अहम भूमिका रहती है। जंग में संचार तंत्र को तोडऩे की बड़ी कोशिश होती है। यहां तक भारत के संचार तंत्र की बात है इस पर लगभग चीन का कब्जा है। चीन ने अपनी रक्षा प्रणाली में इलैक्ट्रॉनिक्स और साइबर ऑप्रेशन प्रणाली को इतना विकसित कर रखा है कि इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि चीनी सेना भारत में घुस जाए और भारतीय सेना का कंट्रोल एंड कमांड सिस्टम चीनी सेना के साइबर-रैजीमैंट द्वारा हैक कर लिया जाए। भारतीय सेना का पूरा संचार-तंत्र ऐन मौके पर कहीं हैंग न हो जाए। इस बात की पूरी आशंका है। पिछले ही साल यह बात आधिकारिक तौर पर उजागर हुई कि चीन की कुख्यात कंपनी हचिसन और मोबाइल फोन कंपनी शाओमी ने भारतीय सेना और सुरक्षा तंत्र की जासूसी कराई, जिस वजह से भारतीय सेना को स्मार्ट फोन्स और स्मार्ट एप्स पर रोक लगानी पड़ी।
(बलराम सैनी/जम्मू)


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