3 साल से खाली पड़े बंगले में शिफ्ट हुए CM रावत, जानिए क्यों कहा जाता है इसे 'मनहूस'

punjabkesari.in Thursday, Mar 30, 2017 - 11:30 AM (IST)

देहरादूनः उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत बुधवार को देहरादून के कैंट रोड पर स्थित अपने आधिकारिक बंगले में शिफ्ट हुए। राजनीतिक गलियारों में इस बंगले को 'मनहूस' माना जाता है। कहा जाता है कि इसमें रहने वाला मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता। कहा जाता कि इसमें कुछ वास्तुदोष हैं इसलिए मंत्री यहां रहने से डरते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी आधिकारिक मुख्यमंत्री आवास के बजाय राज्य सरकार के एक गेस्ट हाउस में रहते थे। इसके बाद बंगले के मनहूस होने की अफवाहों को एक बार फिर हवा मिल गई थी। हालांकि त्रिवेंद्र रावत ने इस मामले में किसी भी तरह की आशंका या डर दिखाने से इनकार कर दिया। उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के तुरंत बाद ही साफ कर दिया था कि वह मनहूस कहे जाने वाले आधिकारिक बंगले में ही रहेंगे।

उन्होंने नवरात्रि के पहले दिन बंगले में शिफ्ट होने का फैसला लिया। इस दिन को नए कामों की शुरुआत के लिए शुभ माना जाता है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी पत्नी और दोनों बेटियों के साथ तकरीबन दो घंटे तक पूजा की और इसके बाद बंगले में शिफ्ट हो गए। इस दौरान उनकी कैबिनेट के मंत्री जैसे सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, प्रकाश पंत, यशपाल आर्य और मदन कौशिक मौजूद दे। राज्य के भाजपा  प्रमुख अजय भट्ट भी मौके पर मौजूद थे।

बंगले में कोई मंहगा फर्नीचर नहीं
मुख्यमंत्री के एक करीबी ने बताया कि मकान में कोई वास्तु दोष नहीं है इसलिए हमें किसी जानकार से सलाह लेने की जरूर नहीं पड़ी। गृह प्रवेश से संबंधित सामान्य पूजा-पाठ किया गया। मुख्यमंत्री सादगी से रहना चाहते हैं इसलिए घर में कोई महंगा फर्नीचर नहीं होगा। उनका परिवार 60 में से सिर्फ 5 कमरों का इस्तेमाल करेगा। सीएम ने बंगले के स्वीमिंग पुल को भी बंद करने का आदेश दिया है ताकि पानी की बर्बादी न हो, खासकर जब राज्य पानी की कमी से जूझ रहा है।'

30 करोड़ रुपए की लागत से बना बंगला
मुख्यमंत्री के आधिकारिक बंगले को पारंपरिक पहाड़ी स्टाइल में डिजाइन किया गया है। यह साल 2010 में तकरीबन 30 करोड़ रुपए की लागत से बना था। बंगला 10 एकड़ जमीन में फैला हुआ है लेकिन मनहूसियत की अफवाहों की वजह से यह कई सालों तक खाली रहा। इस बंगले में रहने वाले मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, बीएस खंडूरी और विजय बहुगुणा अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे।


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