इन पांच कारणों से पीएम मोदी की ''म्यांमार यात्रा'' बनी अति महत्वपूर्ण

punjabkesari.in Tuesday, Sep 05, 2017 - 11:00 PM (IST)

नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी म्यांमार की दो दिवसीय यात्रा के लिए मंगलवार को राजधानी नैप्यीडॉ पहुंच गए। पीएम मोदी की ये कई माइनों में महत्वपूर्ण मानी जा रही है। जब म्यांमार 10 लाख से अधिक रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा के दौर से गुजर रहा है। वहीं, 2011 में दमनकारी कट्टपंथ से निकलकर लोकतंत्र की ओर अग्रसर भी है। इसके चलते पूरब में भारत का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले म्यांमार के इसी नैप्यीडॉ शहर से मोदी ने 2014 में एक्ट ईस्ट पॉलिसी लॉन्च की थी और वर्तमान में भी उन्होंने इन 5 प्रमुख कारणों से ब्रिक्स से सीधे म्यांमार की रुख किया। 

1.खोए हुए समय के लिए तैयार
भारत ने हमेशा से ही म्यांमार में होने वाले घटनक्रमों पर नजर बना रहा है। उस दौरान भी जब देश सैन्य शासन के खिलाफ नोबल पुरस्कार विजेता आंग सान सू ने संघर्ष की शुरुआत की और जब उन्हें लंबी कैद से आजादी मिली। हालांकि भारत उस समय सदभावन कायम रखने में विफल रहा। जब उनकी पार्टी 2016 में सत्ता में आई और इसके बाद विदेश जाने के लिए भारत की जगह चीन को चुना। एेसे ये देश भारत के रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। जब चीन ने हिंद महासागर के ऊपर अपनी गतिविधियां तेज कर दी हो। द्विपक्षीय व्यापार की कीमत सिर्फ 2 अरब डॉलर है भारत म्यांमार के लिए सबसे बड़ा आयातक और भारत का तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है लेकिन हाल के दिनों में व्यापार और आर्थिक संबंधों को नहीं उठाया गया है, एक ऐसा क्षेत्र जिसमें कई संभावित क्षमताएं हैं।

2. चीन का फैक्टर
सू ची नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी के सत्ता में आने के बाद चीन और म्यांमार के बीच संबंध मजबूत हुए हैं। जब पश्चिमी देशों ने यहां की सरकार से संबंध स्थापित करने के बाद से चीन ने भी म्यांमार से आर्थिक और व्यापारिक नजदीकियां बढ़ाना शुरू कर दिया। इसके अलावे उसे कूटनितिक स्तर पर भी उसका सलाहाकार बन रहा है। हाल में देश के अंतरिक मामले जैसे मुसलमानों पर सैन्य हिंसा पर शांति वार्ता के लिए चीन मध्यस्थता की पुरजोर कोशिश में हैं। इसकी वजह विद्रोहियों का सजातीय होना है।

3. रोहिंग्या मुस्लिम
म्यांमार के उत्तरपश्चिम में राखीन राज्य राजनीतिक रूप से संवेदनशील है और भारत और चीन दोनों के लिए भी महत्वपूर्ण है। म्यांमार को भारत में जोड़ने के उद्देश्य से यह 484 मिलियन डॉलर कालादान बहु-मॉडल परिवहन परियोजनाओं का प्रारंभिक बिंदु है। भारत ने पहले से ही रोक्नी में कालादन नदी के मुहाने पर सीटवे बंदरगाह पर काम पूरा कर लिया है। यहीं चीन के साथ तेल और गैस पाइपलाइन पर काम कर रहा है। इसकी अनुमित के चीन पश्चिम एशिया में व्यापार बढ़ा सकता है, क्योंकि उत्तर म्यांमार के पास बंगाल की खाड़ी के पास एक सड़क और रेल नेटवर्क रास्ता है। यही कारण है कि इस क्षेत्र में भारत और चीन के बींच शांति स्थापित है। 

4. सुरक्षा सहयोग 
समुद्री सीमा के अलावा म्यांमार हमारे चार पूर्वोत्तर राज्यों के साथ 1,643 किलोमीटर की सीमा का हिस्सा है। एेसे में यहां कई विद्रोही समूहों ने ठिकानों और प्रशिक्षण शिविरों की स्थापना कर रखे है, जो कि भारत के लिए लगातार सिरदर्द बने हुए हैं।  दोनों देश तेजी से एक साथ काम कर रहे हैं लेकिन भारत की सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए अधिक आवश्यकताएं हैं।

5. पूर्वोत्तर अधिनियम 
भौगोलिक दृष्टि से, म्यांमार भारत की अधिनियम पूर्व नीति के लिए पहला पड़ाव है। दोनों देशों में विभिन्न क्षेत्रीय समूहों जैसे बंगाल की खाड़ी के बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (बिमस्टेक) और आसन (दक्षिणपूर्व एशियाई संघों की संघ) के सदस्य भी शामिल हैं। गोवा में 2016 के शिखर सम्मेलन में, बिम्सटेक ने पारगमन समझौतों को मजबूत करने और एक मुक्त व्यापार समझौते के प्रारंभिक निष्कर्ष पर बल दिया। विभिन्न क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजनाओं के लिए म्यांमार एक महत्वपूर्ण देश भी है।


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