ठंडे बस्ते से बाहर निकल सकते हैं ये विधेयक

punjabkesari.in Friday, Jul 21, 2017 - 08:43 PM (IST)

नई दिल्ली: राष्ट्रपति भवन में रामलाल कोबिंद के पहुंचने से मोदी सरकार खासी उत्साहित दिखाई दे रही है। कयास लगाए जा रहे हैं कि लंबे समय से अटके विधेयक और संशोधन बिलों को केंद्र सरकार दोबारा पेश कर सकती है। जानकारों की मानें तो इसमें सबसे प्रमुख भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल है,जिसका तीन बार अॉर्डनेंस लाने के बाद भी ड्राप करना पड़ा था। उधर, लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए जरूरी कदम उठाने में तेजी देखी जा सकती है। चुनावों की स्टेट फंडिंग के हॉट मुद्दे पर बहस तो लंबे समय से चली आ रह है, लेकिन अब सरकार अमल में लाने के लिए नया कानून ला सकती है।  

PunjabKesariचुनाव लड़ने के लिए राजनीतिक पार्टियों को सरकार से पैसा मिले, यह विचार नया नहीं है। सोच यह है कि ऐसा होने पर पार्टियों की कॉरपोरेट जगत तथा काले धन पर निर्भरता कम होगी। एनडीए सरकार ने नोटबंदी के जरिए काला धन खत्म करने के लिए दूरगामी परिणाम वाला कदम बताया था। एेसे में राजनीतिक दलों के चंदे का सवाल आना लाजमी था।  सबसे पहले यह चर्चा संसद सत्र से पहले हुई सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। उन्होंने कहा कि अगर दलों को सरकार से धन मिले और लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ कराएं जाएं तो राजनीतिक प्रक्रिया साफ-सुथरी होगी। अब आगामी लोकसभा चुनावों से पहले सरकार इसी तरह के अध्यादेश लाकर अपनी कालेधन और इलेक्शन फंडिंग की सकारात्मक सोच को जनमानस में  प्रचारित कर सकती है। उधर, दूसरी ओर हालांकि, सरकार ने भूमि अधिग्रहण बिल के संशोधन प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया है, लेकिन जानकारों की मानें तो बीजेपी और एनडीए के खाते से महामहिम चयनित होने पर इस मुद्दे को भी दोबारा जिंदा कर सकती है। 

तो इसलिए बैकफुट पर आई सरकार 

मोदी सरकार पर इस संशोधन विधेयक के चलते यह भी आरोप लग रहे थे कि वह इसके जरिये दोषी अधिकारियों को बचाने की कोशिश कर रही है। दरअसल 2013 के कानून में प्रावधान है कि यदि भूमि अधिग्रहण के दौरान सरकार कोई बेमानी या अपराध करती है तो संबंधित विभाग के अध्यक्ष को इसका दोषी माना जाएगा। संशोधन विधेयक में इस प्रावधान को बदलकर यह व्यवस्था बनाई गई कि अपराध के आरोपित किसी सरकारी अधिकारी पर सरकार की अनुमति के बिना कोई मुकदमा दायर नहीं किया जा सकेगा। इन्हीं तमाम विवादास्पद पहलुओं के चलते मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण पर चौतरफा घिरने लगी थी। जनता के बीच संदेश बेहद मजबूती से जा चुका था कि भूमि अधिग्रहण में जो संशोधन मोदी सरकार करना चाहती है, वो पूरी तरह से किसान-विरोधी और कॉरपोरेट के हित साधने वाले हैं। इसके अलावा दूसरी सबसे बड़ी वजह एनडीए सदस्यों का राज्यसभा में बहुमत न हो था। 

PunjabKesariपीए सरकार का भूमि अधिग्रहण बिल

-किसानों की जमीन के जबरन अधिग्रहण की इजाजत नहीं देता था। इसके लिए गांव के 70 प्रतिशत किसानों की सहमति जरूरी थी।

-अधिग्रहित भूमि पर अगर 5 वर्ष में विकास नहीं हुआ तो वही भूमि फिर से किसानों को वापस मिलने की भी व्यवस्था की गई थी।

- बहुफसली सिंचित भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा। जमीन के मालिकों और जमीन पर आश्रितों के लिए एक विस्तृत पुनर्वास पैकेज की व्यवस्था की गई थी।

-यदि किसी ज़मीन के अधिग्रहण को कागज़ों में 5 साल हो गए हैं और सरकार के पास जमीन का कब्जा नहीं है। मुआवजा भी नहीं दिया गया तो मूल मालिक ज़मीन को वापस मांग सकता है।

मोदी सरकार का भूमि अधिग्रहण अध्यादेश

-2014 में आयी मोदी सरकार ने एक नया अध्यादेश जारी किया और 2013 के कानून की कई व्यवस्था को बदलते हुए नये संसोधन किए।

- इसमें किसानों की सहमति जरूरी नहीं थी। नए कानून में इसे ख़त्म कर दिया गया है। यदि सरकार ने जमीन लेने की घोषणा कर दी और उस भूमि पर कोई काम शुरू हो या नहीं यह जमीन सरकार की हो जाएगी।

-यूपीए सरकार में यह व्यवस्था थी कि सरकार खेती योग्य जमीन नहीं ले सकती थी लेकिन नये अध्यादेश के मुताबिक सरकार खेती लायक और उपजाऊ जमीन भी ले सकती है।

- मोदी सरकार के संशोधन प्रस्ताव में सबसे अहम पहलू था कि सरकार किसी की जमीन ले लेती है तो वह इसके खिलाफ किसी भी कोर्ट में सुनवाई के लिये नहीं जा सकता है।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News