ईश्वर को लेकर नहीं, अहंकार के चलते संघर्ष: सुधांशु महाराज(Video)

punjabkesari.in Monday, Feb 19, 2018 - 12:55 PM (IST)

पंजाब केसरी से एक्सक्लूसिव बातचीत में बोले
आध्यात्मिक गुरु सुधांशु जी महाराज का विराट भक्ति सत्संग जालंधर के पटेल चौक स्थित साईं दास स्कूल की ग्राऊंड में आयोजित किया गया। 15 से 18 फरवरी तक चले इस सत्संग में हजारों लोग उनके प्रवचनों को सुनकर मंत्रमुग्ध हुए। सुधांशु जी महाराज पंजाब केसरी के कार्यालय भी आए और खास बातचीत की। पेश हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश-


सवाल. विश्व जागृति मिशन के जरिए आप समाज के लिए किस तरह काम कर रहे हैं?
जवाब. यह मिशन हमने मनुष्य की जागृति के लिए चलाया है। इसमें इस बात का ध्यान रखा गया है कि धर्म की विशुद्धता लोगों तक पहुंचे। लोग जहां भक्ति और सेवा को महत्व दें वहीं समाज की उन्नति के बारे में भी सोचें। समाज में समय के साथ कई कुरीतियां आती हैं जिनमें सुधार की गुंजाइश रहती है। विश्व जागृति मिशन के जरिए स्वस्थ परंपराएं समाज को दी जाती हैं। दूसरा मकसद है समाज को सेवा की अहमियत बताना। मिशन के तहत अनाथालय, वृद्धाश्रम और अस्पताल चलाए जा रहे हैं। अस्पतालों में नि:शुल्क इलाज होता है। खासतौर पर गांव में रहने वाले मोतियाबिंद के मरीजों के लिए करुणासिंधु नेत्र अस्पताल बनाया गया है। इन अस्पतालों के जरिए 14 लाख लोगों का इलाज किया जा रहा है। 


सवाल. गीता में कर्म का महत्व समझाया गया है। आप भी अपने कथा वाचन में कर्म पर जोर देते हैं। इसके बारे में बताएं।
जवाब. हर मनुष्य को अपने भाग्य पर नहीं बल्कि कर्म पर भरोसा करना चाहिए। किस्मत तो उनकी भी होती है जिनकी हाथों की लकीरें नहीं होती। आज हम अति भाग्यवादी बनकर बैठ गए हैं और कर्म से जी चुरा रहे हैं। अगर जीवन में आगे बढना है तो हमें कर्मशील बनना होगा। भगवान कृष्ण ने भी इसका संदेश दिया है।

सवाल. आज जीवन में नकारात्मकता आ गई है। अध्यात्म के जरिए इसे कैसे कम कर सकते हैं?
जवाब. हमारे मस्तिष्क में 70-80 फीसदी विचार नकारात्मक आते हैं। ऐसे में जिस चीज की बहुलता होती है वही हमारे मस्तिष्क पर असर करती है। जीवन में नकारात्मकता इतनी बढ़ गई है कि लोग निराश हैं। उन्हें यह लगता है कि जीवन में वे कभी सफल नहीं हो पाएंगे। इसे बदलने के लिए हमें अपने पवित्र ग्रंथों को पढना चाहिए जिनमें कहा गया है कि अगर कर्म को दाएं हाथ में अपनाएं तो सफलता बाएं हाथ का खेल बन जाती है। 


सवाल. कुछ लोग अक्सर यह कहते हैं कि कर्म तो करते हैं मगर फल नहीं मिलता।
जवाब. अगर सफलता हाथ न भी लगे तो भी मनुष्य को निराश नहीं होना चाहिए। जब मन हार जाता है तो जिंदगी हार जाती है। भगवान पर भरोसा कीजिए लेकिन सबसे पहले खुद पर भी यकीन करें।


सवाल. आज ईश्वर को लेकर संघर्ष क्यों है?
जवाब. ईश्वर को लेकर कोई संघर्ष नहीं है, अहंकार के कारण है। जहां ‘मैं’ आ जाती है वहीं संघर्ष होता है, जहां ‘तू ही तू’ है वहां कोई संघर्ष नहीं है। जब इंसान यह कहता है कि ‘मैं ही मैं हूं और तू कुछ नहीं है’ वहीं संघर्ष है। यह चिंतन में दोष का ही कारण है।

 
सवाल. क्या आपको लगता है कि तर्क से ईश्वर को साबित कर सकते हैं?
जवाब. तर्क से सब कुछ साबित नहीं किया जा सकता। कुछ चीजों तक बुद्धि, मस्तिष्क और मन पहुंचते हैं लेकिन बहुत-सी ऐसी चीजें हैं जहां ये नहीं पहुंच सकते। भगवान और आस्था का मामला ऐसा ही है। ईश्वर तक सिर्फ भक्ति से ही पहुंचा जा सकता है। न संगीत सितार के अंदर दिखेगा, न बांसुरी के अंदर। दुनिया प्रेम से जीती है। ईश्वर को मस्तिष्क के जरिए नहीं आंका जा सकता बल्कि उसे अनुभव करना पड़ता है। 


सवाल. आज साधु-संतों पर जन भावनाएं भड़काने के आरोप लगते हैं, आप इसे कैसे देखते हैं?
जवाब. भारत में 65 लाख साधु-संत हैं, अगर दो-चार लोग बुरे भी हैं तो उससे निराश होने की जरूरत नहीं है। आज हर कोई सजग हो रहा है। जनता इतनी मूर्ख नहीं हैं कि किसी के बहकावे में आ सके। भड़काने वाले नेता भी हैं और अभिनेता भी, लेकिन फिर भी देखा गया है कि कई अर्श से फर्श पर पहुंच गए। जनता अपने आप में जनार्दन है और वह बहुत अच्छा निर्णय लेती है।


सवाल. जीवन में सुख का मंत्र क्या है?
जवाब. मनुष्य को जहां पर अनुकूलता नजर आती है वहां सुख दिखता है मगर जहां प्रतिकूलता है वहां दुख दिखाई देता है। हमारे ऋषियों ने कहा था कि हर दिन इस तरह बिताओ कि चैन की नींद सो सको। हर रात इस तरह बिताओ कि जागो तो चेहरे पर ताजगी हो। जवानी को इस तरह बिताओ कि बढ़ापे में पछताना न पड़े। बुढ़ापे को इस तरह बिताओ कि किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े।


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