चीन से मुकाबले को तैयार भारत, श्रीलंका से बातचीत अंतिम दौर में

punjabkesari.in Sunday, Oct 15, 2017 - 02:40 PM (IST)

कोलम्बोः श्रीलंका में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए तैयार भारत ने हम्बनटोटा के निकट मट्टाला एयरपोर्ट को विकसित करने का फैसला किया है। इस सिलसिले में दोनों देशों के बीच बातचीत अंतिम दौर में है। यह जानकारी स्वयं श्रीलंका के नागरिक विमानन मंत्री निमल श्रीपाला ने हाल में दी। बता दें कि OBOR Project के तहत चीन ने इस इलाके में भारी निवेश किया है। श्रीपाला ने कहा, श्रीलंका हम्बनटोटा इलाके में निवेश के विकल्पों पर विचार कर रहा है। इस इलाके में चीन ने बंदरगाह का निर्माण किया है और निवेश क्षेत्र और तेल शोधन कारखाना लगाने पर चर्चा की जा रही है। 
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उन्होंने कहा, 'भारत एक प्रस्ताव के साथ सामने आया है। नई दिल्ली हवाई अड्डे और एविएशन सर्विसेज लिमिटेड के साथ संयुक्त उपक्रम बनाने को तैयार है।' बता दें कि श्रीलंका की सरकारी कंपनी एविएशन सर्विसेज कोलंबो और दक्षिण के मट्टाला हवाई अड्डे का परिचालन करती है। भारत सरकार के सूत्रों ने भी श्रीपाल के बयान की पुष्टि की है। उन्होंने कहा, भारत ने घाटे में चल रहे मट्टाला हवाई अड्डे के विस्तार और प्रबंधन के लिए संयुक्त उपक्रम बनाने का प्रस्ताव किया है।

यह हवाई अड्डा हम्बनटोटा के करीब है। सूत्रों ने बताया कि नई दिल्ली श्रीलंका को हिस्सेदारी और निवेश के स्वरूप को तय करने की छूट देगा। हालांकि, भारतीय विदेश मंत्रालय नें फिलहाल इसपर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है। श्रीलंकाई कैबिनेट सूत्रों के मुताबिक शुरुआत में योजना के तहत 29.3 करोड़ डॉलर (करीब 1900 करोड़ रुपए)का निवेश होगा। इसमें भारत 70 फीसदी राशि 40 साल के लिए लीज पर देगा। चीन ने मट्टाला हवाई अड्डे का निर्माण 25.3करोड़ डॉलर (करीब 1600 करोड़ रुपए) की लागत से किया है। इसके लिए चीन ने ही 23 करोड़ डॉलर का कोष उपलब्ध कराया है। हालांकि, इस हवाई अड्डे से रोजाना दुबई के लिए केवल एक विमान का परिचालन होता है और यह दुनिया के सबसे खाली अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों के रूप में बदनाम है। 
 
श्रीलंका की पिछली सरकार ने हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 साल के लिए चीन को लीज पर दिया है। चीन की मंशा इस इलाके में विस्तार करना है। वह यहां तेलशोधन कारखाना लगाना चाहता है। श्रीलंका भी इसे निवेश क्षेत्र के रूप में विकसित करना चाहता है। इसके लिए 6 हजार हैक्टेयर जमीन आरक्षित की गई है। यह बंदरगाह दुनिया के सबसे व्यस्त जलमार्ग पर मौजूद है और यूरोप और एशिया के कारोबार के बीच इसका रणनीतिक महत्व है। 


 


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