‘सत्ता का जहर’ पीने को तैयार राहुल गांधी बने कांग्रेस के नए अध्यक्ष

punjabkesari.in Monday, Dec 11, 2017 - 05:40 PM (IST)

नई दिल्ली: कांग्रेस के नव निर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी किसी सुर्खियाें के मोहताज नहीं हैं, किंतु कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उनकी असली परीक्षा चुनावी मंझधार में पिछले कुछ समय से पार्टी की डगमगाती नैया को विजय के तट तक सही सलामत पहुंचाने की होगी। एक नजर राहुल गांधी के राजनीतिक करियर पर:
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राहुल गांधी की पर्सनल डिटेल
राहुल का जन्म 19 जून, 1970 को हुआ था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, राहुल ने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज, हार्वर्ड कॉलेज और फ्लोरिडा के रोङ्क्षलस कॉलेज से कला में स्नातक तक की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने कैंब्रिज यूनिर्विसटी के ट्रीनिटी कॉलेज से डेवलपमेंट स्टडीज में एम. फिल किया। उन्होंने इसके बाद लंदन के सामरिक सलाहकार समूह ‘मॉनीटर ग्रुप’ के साथ काम करना शुरू किया और वहां वह तीन साल तक रहे। राहुल राजीव गांधी फाउंडेशन के न्यासी और कार्यकारी समिति के सदस्य भी हैं। वह जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फंड, संजय गांधी मेमोरियल ट्रस्ट, राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट और इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट से भी जुड़े रहे। PunjabKesari
‘सत्ता जहर पीने के समान’
राहुल गांधी को जब 2013 में पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया था तो उन्होंने जयपुर में भाषण के दौरान अपनी मां एवं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की इस बात को बड़े भावनात्मक ढंग से कहा था कि ‘सत्ता जहर पीने के समान’ है। हालांकि, इसके ठीक पांच साल बाद अब उन्हें यह ‘विषपान’ करना पड़ेगा क्योंकि अब वह कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित हो चुके है। PunjabKesari
पांचवी पीढ़ी के नेता
कांग्रेस की कमान संभालने जा रहे राहुल नेहरू-गांधी परिवार में पांचवीं पीढ़ी के नेता हैं। यह सिलसिला आजादी से पहले मोतीलाल नेहरू से शुरू हुआ था।  अध्यक्ष के तौर पर सोनिया के 19 साल के कार्यकाल के समापन के बाद देश की इस सबसे पुरानी पार्टी की कमान संभालना राहुल के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम साबित नहीं होगा। राहुल अपनी दादी इंदिरा गांधी की 1984 में हत्या के बाद उनके अंतिम संस्कार के समय राष्ट्रीय टेलीविजन और अखबारों में छपी तस्वीरों में अपने पिता राजीव गांधी के साथ प्रमुखता से दिखाई दिए थे। उसके बाद उनके पिता राजीव गांधी की 1991 में हत्या के बाद उनके अंतिम संस्कार में राहुल लगभग पूरे देश की सहानुभूति के केंद्र में रहे। 
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2013 में बटौरी खूब सुर्खियां
राहुल का राजनीतिक करियर 2004 में अमेठी से लोकसभा सांसद निर्वाचित होने के साथ शुरू हुआ। उन्होंने इसी सीट से 2009 एवं 2014 का भी लोकसभा चुनाव जीता। वर्ष 2004 में केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार बनने के बाद अगले 10 साल तक राहुल बीच-बीच में राजनीतिक सुर्खियाें में आने के साथ अचानक खबरों से गायब भी होते रहे। हालांकि, उन्होंने सबसे अधिक अवकाश 2015 में लिया जब वह 56 दिनों तक अज्ञात स्थल पर रहे। राहुल ने जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे भट्टा पारसौल के किसानों के पास जाकर, संसद में विदर्भ की गरीब दलित महिला कलावती का मुद्दा उठाकर, उत्तर प्रदेश में एक दलित परिवार के घर जाकर रात बिताने से लेकर हाल में मध्य प्रदेश के मंदसौर में प्रदर्शन कर रहे किसानों पर पुलिस द्वारा गोली चलाने के बाद पीड़ित परिवारों से मिलने के लिए मोटरसाइकिल से पहुंचने तक काफी सुर्खियां बंटोरी। किंतु उनसे जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण घटना 2013 में घटी जब उन्होंने अपनी पार्टी की सरकार द्वारा दागियों के चुनाव लडऩे के संबंध में लाए गए एक अध्यादेश को सार्वजनिक तौर पर फाड़कर विपक्षी ही नहीं अपनी पार्टी के नेताओं को भी चौंका दिया।   PunjabKesari

सोशल मीडिया पर भी एक्टिव हैं राहुल
राहुल सोशल मीडिया पर भी एक्टिव हैं। उनके ट्विटर पर 47.1 लाख फालोअर हैं। राहुल ने आम लोगों से जुडऩे के क्रम में पिछले दिनों ट्विटर पर अपने पालतू कुत्ते ‘पिडी’ का भी वीडियो डाला था। हालांकि इसे लेकर सोशल मीडिया पर उन पर काफी टीका टिप्पणी की गई। 47 वर्षीय अविवाहित राहुल गांधी अपने विवाह के प्रश्नों को यह कहकर टालते रहे हैं, वह किस्मत में विश्वास रखते हैं और यह जब होना होगा, तब होगा।
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अध्यक्ष पद संभालते ही परिक्षा
राहुल ने अध्यक्ष पद का नामांकन पत्र दाखिल करने से पहले पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पास जाकर उनका आशीर्वाद लिया था। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें कांग्रेस का लाडला (डाॢलंग)करार दिया। उनके नामांकन पत्र दाखिल करने के अवसर पर कांग्रेस की पुरानी पीढ़ी से लेकर युवा पीढ़ी के सभी चेहरों ने उपस्थित होकर यह संदेश देने का प्रयास किया कि पार्टी के सभी वर्ग राहुल गांधी के साथ हंै। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार गुजरात चुनाव राहुल के लिए एक कड़ी परीक्षा साबित होगा। यदि इस चुनाव में पार्टी कुछ बेहतर कर पाती है तो निश्चित तौर पर पार्टी के भीतर और बाहर उनकी विश्वसनीयता में इजाफा होगा। अगला साल भी राहुल के लिए कड़ी चुनौतियां पेश करेगा क्योंकि उन्हें कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान विधानसभा चुनावों में अपने नेतृत्व में पार्टी के प्रदर्शन को बेहतर बनाना है।
 


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