ऑफ द रिकार्ड: मोदी फिर राष्ट्र को करेंगे संबोधित !

punjabkesari.in Sunday, Jul 23, 2017 - 08:36 PM (IST)

नई दिल्ली: इस बात से राष्ट्र को कौन सूचित करेगा कि कितने पुराने नोट वापस बैंकों में आए और कितने इनमें से जाली हैं तथा नोटबंदी के बाद कितना वास्तविक लाभ हुआ। अब 50,000 करोड़ रुपए का ही वास्तविक लाभ दिखाई देता है। पीएमओ, वित्त मंत्रालय के अधिकारी और आरबीआई इस मामले पर विचार-विमर्श कर रहे हैं। पीएमओ में एक सुझाव यह उभर कर सामने आया है कि आरबीआई जमा नोटों के बारे में एक प्रैस विज्ञप्ति में ब्यौरा दें जिसमें बैंकों में जमा नोटों के अलावा कितने नोट वापस नहीं आए और कितने जाली हैं यह भी ब्यौरा हो। संसद सत्र जारी है। 

यह सुझाव भी दिया गया है कि वित्त मंत्री अरुण जेतली को इस संबंध में बयान देना चाहिए और वह सांसदों के प्रश्रों का सामना करें। एक अन्य सुझाव यह है कि मोदी को उसी तरह राष्ट्र को संबोधित करना चाहिए जिस तरह उन्होंने 8 नवंबर को नोटबंदी के लाभों की घोषणा की थी। मोदी को भ्रष्टाचार के खात्मे, बड़े पैमाने पर देश में डिजीटल क्रांति और बढ़े करदाताओं एवं भ्रष्टाचारियों पर छापों के बारे में जानकारी देनी चाहिए क्योंकि मोदी एक सशक्त वक्ता हैं इसलिए उन्हें ही राष्ट्र को संबोधित करना चाहिए। एक सुझाव यह है कि मोदी को 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से इस विषय पर बोलना चाहिए।PunjabKesari

पुराने नोटों की गिनती खत्म, आंकड़े निराशाजनक
सरकार ने अंतत:पिछले वर्ष नवंबर में नोटबंदी के बाद बैंकों/आरबीआई में जमा पुराने नोटों की संख्या घोषित करने का फैसला कर लिया है। दुनिया को यह बताने में कठिनाई महसूस करते हुए कि पुराने नोटों की गणना कई महीनों से चल रही है, अब सरकार ने अंतिम आंकड़ों को सार्वजनिक करने का मन बना लिया है। जब नोटबंदी की गई तो सरकार ने दावा किया था कि इससे 3 लाख करोड़ रुपए का बड़ा लाभ होगा लेकिन शीघ्र ही यह ‘ऊंची उड़ान’ से नीचे आ गई और कहा कि यह लाभ 2 लाख करोड़ रुपए का होगा। 

वित्त मंत्रालय में उच्च पदस्थ सूत्रों ने कहा कि कोई 2 लाख करोड़ रुपए का लाभ नहीं हुआ। 8 नवंबर, 2016 को जब नोटबंदी की गई थी तो मार्कीट में 16 लाख करोड़ रुपए के नोट प्रचलन में थे। केवल 50 हजार करोड़ रुपए के नोट ही बैंकों में वापस नहीं आए। क्या यह ही लाभ हो सकता है। यह घोषणा इसलिए रोकी गई है क्योंकि उच्चतम न्यायालय में अंतिम आदेश अभी लंबित हैं। उच्चतम न्यायालय में एक केस दायर किया गया जहां याचियों ने कहा कि उनके रुपए घोषित नीति के बावजूद आरबीआई और सरकार वापस लेने से इंकार कर रहे हैं।


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