विकास और ठोस कानून व्यवस्था से होगा नक्सली समस्या का समाधान: नायडू

punjabkesari.in Friday, May 26, 2017 - 10:12 PM (IST)

रायपुर: केंद्रीय शहरी विकास, आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन और सूचना एवं प्रसारण मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा है कि आदिवासी क्षेत्रोंं में विकास और ठोस कानून व्यवस्था के माध्यम से नक्सली समस्या का समाधान किया जा सकता है। नायडू ने शुक्रवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि नक्सली समस्या पिछले 50 सालों से इस देश में है और वह नहीं चाहते हैं कि आदिवासी क्षेत्रों का विकास हो। इन क्षेत्रों में तेजी से विकास पहुंचाने और कानून व्यवस्था में ठोस कदम उठाने से इस समस्या का सामाधान किया जा सकता है। 

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि नक्सली कहते हैं कि बंदूक के द्वारा अधिकार आएगा। वह कहते हैं कि बुलेट बैलेट से ज्यादा शक्तिशाली है, जबकि हमारा कहना है कि बैलेट बुलेट से ज्यादा शक्तिशाली है। आदिवासी इलाकों में स्कूल नहीं खोलने, सड़क नहीं बनने और वहां विकास नहीं पहुंचने देना यही उनका काम है। नायडू ने कहा कि वह स्वीकार करते हैं कि नक्सल समस्या चुनौती है। इस चुनौती से निपटने के लिए केंद्र और राज्य की सरकारें मिलकर काम कर रही हैं। पिछले दिनों ही केंद्रीय गृहमंत्री ने इसे लेकर बैठक भी बुलाई थी। इस समस्या के सामाधान के लिए योजना तैयार की जा रही है। उन्होंने कहा कि नक्सली हमला करो और वहां से भाग जाआे की रणनीति अपनाते हैं। वह यहां वारदात को अंजाम देने के बाद दूसरे राज्यों में चले जाते हैं। लेकिन राज्य की सरकारें भी बेहतर रणनीति से इसका मुकाबला कर रही है।

आंध्रप्रदेश में ग्रे हाउंड के माध्यम से नक्सलियों का मुकाबला किया जा रहा है। नक्सली अब धीरे धीरे कमजोर हो गए हैं। आने वाले समय में पुलिस और सीआरपीएफ को जंगल वारफेयर के बारे में और भी प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है। वहीं लोगों में भी जागृति पैदा करना होगा। सूचना और प्रसारण मंत्री ने कहा कि उन्होंने अपने विभाग के अधिकारियों से भी कहा है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को जागरूक करने के लिए उन्हें सरकार की योजनाओं के बारे में बेहतर तरीके से जानकारी दें। नायडू ने इस दौरान कहा कि यह दुर्भाग्यजनक है कि मानवाधिकार के लिए बात करने वाले लोगों को केवल माआेवादियों की मृत्यु और उनके गिरतार होने से मानवाधिकार दिखता है, जबकि नक्सली घटनाओं में सुरक्षा बलों की मृत्यु हो जाती है तब कुछ नहीं कहा जाता है। क्या सुरक्षा बलों के लिए मानवाधिकार नहीं है।  


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