पुरस्कार लौटाना सम्मान का अनादर करने जैसा : थरूर

punjabkesari.in Thursday, Oct 15, 2015 - 06:27 PM (IST)

तिरूवनंतपुरम : विभिन्न लेखकों द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने के मामले में विपरीत रुख अपनाते हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री शशि थरूर ने आज कहा कि हालांकि लेखकों को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में खड़े होने का पूरा अधिकार है, लेकिन पुरस्कार को लौटाना दिए गये सम्मान का ‘अनादर’ करने जैसा है।  एक समारोह के इतर थरूर ने कहा, ‘‘व्यक्तिगत रूप से मुझे इस तथ्य पर अफसोस हो रहा है कि लेखकों के एक धड़े ने अकादमी पुरस्कार लौटाए हैं। पुरस्कार, बुद्धिमतता, साहित्यिक, सृजनात्मक और अकादमिक गुणों की पहचान है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘साहित्य अकादमी वास्तव में एक स्वतंत्र संस्था है, और हमारी जो चिंताएं हैं, वह राजनीतिक हैं। लेखकों के लिए, मुझे लगता है कि इन दोनों को लेकर भ्रम की स्थिति नहीं होनी चाहिए। 
 
व्यक्ति को वर्तमान वातावरण का विरोध करना चाहिए। व्यक्ति को स्वतंत्रता के लिए खड़ा होना चाहिए, लेकिन किसी को सम्मान का अनादर नहीं करना चाहिए।’’  खुद एक जानेमाने लेखक और स्तंभकार, थरूर ने कहा कि पुरस्कार ‘‘लेखकों की उपलब्धियोंं के प्रति समाज की आेर से दिया गया सम्मान है और उपलब्धियों तथा सम्मान को लौटाया नहीं जा सकता।’’ हालांकि कांग्रेस नेता ने कहा कि वह इस बात से बहुत खुश हैं कि कई लेखक अपनी आवाज के लिए एेसे वक्त में खड़े हुए हैं, जब अन्य लोग चुप्पी पसंद कर रहे हैं। 59 वर्षीय सांसद ने कहा, ‘‘अपनी चिंताओं को लेकर लेखक बिलकुल न्याय संगत हैं क्योंकि लेखन में सृजनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए बुद्धिवादी स्वतंत्रता अनिवार्य है। 
 
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एेसी चीज है, जिसे अपनाना किसी भी लेखक के लिए नैतिक अनिवार्यता है।’’ रेखांकित करते हुए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संविधान में दिया गया कोई काल्पनिक अधिकार नहीं है, थरूर ने कहा, ‘‘जितना जरूरी शरीर में रक्त का प्रवाहित होना है, उतना ही आवश्यक कलम में स्याही का बहना है।’’ 

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