चीन बॉर्डर पर पिता का नाम देख रो पड़ी महिला आर्मी ऑफिसर, चूहे खाकर लड़ी थी लड़ाई

punjabkesari.in Friday, Mar 09, 2018 - 12:39 PM (IST)

कोलकाताः मां-बाप के लिए सबसे बड़ा पल वो होता है जब उनके बच्चों की वजह से उनका सीना गर्व से फूल जाता है लेकिन एक बच्चे के लिए वो लम्हा सबसे गर्व वाला होता है जब वो अपने पिता की शौर्यगाथा के दूसरे के मुंह से सुनता है। कुछ ऐसा ही हुआ युवा महिला लेफ्टिनेंट के साथ। दरअसल महिला लेफ्टिनेंट हाल ही में शैक्षणिक टूर पर जब तवांग सेक्टर के ख्यातो पोस्ट पर पहुंचीं तो पोस्ट का नाम 'आशीष टॉप' पढ़कर हैरान रह गई। जब उसने अधिकारियों से इस नाम के बारे में पूछा तो वो क्षण उसके लिए ठहर से गए। दरअसल ये आशीष कोई और नहीं बल्कि उनके पिता आशीष दास हैं। दास असम रेजिमेंट में कर्नल थे और अब सेना से रिटायर हो चुके हैं। महिला लेफ्टिनेंट ने उसी पोस्ट से अपने पिता को फोन लगाया और जानकारी दी कि पोस्ट उनके नाम पर है। एक अखबार से बात करते हुए आशीष दास ने बताया कि उनकी यूनिट ने साल 1986 में इस सेक्टर में अपनी अद्भुत वीरता का परिचय दिया था। उनकी यूनिट ने तब चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को मात दी थी और 14 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित चोटी पर कब्जा किया था।

1986 में LAC के अंदर तक घुस आई थी चीनी सेना
1986 में अरुणाचल प्रदेश के सुमदोरोंग चू वैली में चीनी सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा के काफी अंदर तक घुस आए थे और हेलिपैड व स्थायी निर्माण करना शुरू कर दिया था। जब भारतीय सेना को इसका पता चला तो हमारे प्रमुख जनरल के.सुंदरजी ने ऑपरेशन फॉल्कन शुरू किया। इस अभियान की जानकारी मीडिया कम ही सुर्खियों में आई। एयरलिफ्ट करके पूरी इंफ्रैंट्री ब्रिगेड को जिमिथांग पहुंचाया गया, जो सुमदोरोंग चू वैली के पास है। काफी दिन तक सेना ने तब मोर्चा संभाले रखा था।

चूहे खाकर रहे जिंदा
दास ने सेना की शौर्य गाथा बताते हुए कहा कि हमें आदेश था कि मोर्चा संभाले रहें। हमारी यूनिट ने बूम ला से अपना रास्ता बनाना था और सांगेत्सर झील पहुंचना था क्योंकि चीनी सैनिक झील के उस पार बैठे थे। यूनिट ने धीरे-धीरे आगे बढ़ना शुरू कर दिया, तब काफी बर्फ पड़ी हुई थी और ख्यातो भी पूरा बर्फ से ढका हुआ था। ऐसे में किसी को पता ही नहीं चला कि हम लोग चीनी शिविर को पार कर गए हैं। हमारे पर राशन खत्म हो गया था, अधिकारियों ने हवाई मार्ग से राशन देने का प्रयास किया लेकिन वो चीनी सीमा के अंदर गिर गया, ऐसे में हम सबने जिंदा रहने के लिए चूहों को खाया। कई दिनों तक दोनों तरफ से भीषण गोलाबारी हुई। जवान तीन दिनों तक भूखे रहे लेकिन हमने मोर्चा संभाले रखा। 2003 को उनको जानकारी दी गई थी कि उनके शौर्य को समर्पित उनके नाम पर पोस्ट का नाम 'आशीष टॉप' रखा गया है। अब बेटी को जब इसकी जानकारी हुई तो वह इस सम्मान को देखकर अपने आंसू नहीं रोक पाई।


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