भारत, अमरीका-जापान की तिकड़ी पड़ेगी चीन पर भारी !

punjabkesari.in Tuesday, Sep 19, 2017 - 12:07 PM (IST)

बीजिंगः डोकलाम विवाद में हार के बाद एक बार फिर चीन को भारत के समक्ष चीन को मुंह की खानी पड़ी। इस बार अपनी कूटनीतिक रणनीति के चलते  बेल्ट रोड इनिसिएटिव (BRI) के तहत गुलाम कश्मीर में चीन की कनेक्टिविटी परियोजना का विरोध कर रहे भारत को उस समय बड़ी कामयाबी मिली जब अमरीका और जापान  ने इस मुद्दे पर भारत का समर्थन किया। यानि भारत, अमरीका और जापान जैसे देशों की तिकड़ी ड्रैगन पर भारी पड़ेगी। 

 न्यूयार्क में अमरीका और जापान के विदेश मंत्रियों के साथ विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने त्रिपक्षीय बैठक की ऐतिहासिक पहल की जो चीन के खिलाफ एक नए त्रिगुट के उबरने का सकारात्मक संकेत है। तीनों देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक मे चीन का नाम लिए बगैर कनैक्टिविटी (ढ़ांचागत) परियोजनाओं में दूसरे देशों की सार्वभौमिकता का आदर करने की बात कही गई । डोकलाम विवाद के बाद यह दूसरा मौका है जब जापान और अमरीका एक ऐसे मुद्दे पर भारत के साथ खड़े हुए हैं जो चीन के साथ जुड़ा हुआ है।
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विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, अमरीका के विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन और जापान के विदेश मंत्री टारो कोनो के साथ त्रिपक्षीय बैठक के बाद जारी बयान इस बात को बताता है कि उक्त तीनों देशों के बीच एक नया त्रिगुट तेजी से उभर रहा है। वैसे इन तीनों देशों के विदेश मंत्रियों की पहले भी बैठकें होती रही हैं लेकिन इस बार खास बात यह है कि चीन और उत्तर कोरिया इनके साझा एंजेडे में सबसे ऊपर है। तीनों विदेश मंत्रियों  ने चीन के खिलाफ तेवर   साफ करने में कोई कसर नहीं छोड़ी  है। उक्त तीनों देशों ने दिखाने की कोशिश की है कि वे किसी भी देश की विस्तारवादी नीतियों या उत्तर कोरिया के तानाशाह के खतरनाक मंसूबों के खिलाफ एक साथ खड़े हैं।

 बैठक में  भारत, अमरीका और जापान के बीच समुद्री आवागमन, कनेक्टिविटी से जुड़े सहयोग पर चर्चा हुई। इसमें साउथ चाइना सी का नाम नहीं लिया गया है लेकिन तीनों मंत्रियों ने अंतर्राष्ट्रीय कानून व नियमों के मुताबिक हर देश के जहाज को आने जाने की स्वतंत्रता दिलाने पर बात की है। यही नहीं कनैक्टिविटी के मुद्दे पर साझा बयान में यह कहा गया है कि इस बारे में जो भी कोशिश शुरु हो उसे सर्वमान्य, प्रचलित व अंतर्राष्ट्रीय नियम, विवेकपूर्ण वित्त व्यवस्था और दूसरे देशों की भौगोलिक अखंडता और सार्वभौमिकता का आदर करना चाहिए। उत्तर कोरिया की तरफ से हाल के दिनों में किए जा रहे हथियारों के परीक्षण का भारत ने भरपूर निंदा की है और कहा है कि यह पता लगाया जाना चाहिए कि उसे किन लोगों ने हथियार बनाने में मदद की है और उन्हें उत्तरादायी ठहराया जाना चाहिए।
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भारत, अमरीका और जापान के एक साथ आ जाने के बाद अब चीन के लिए गुलाम कश्मीर में BRI के तहत सड़क व रेलमार्ग का निर्माण करना और मुश्किल होगा। चीन इस मार्ग को पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जोड़ कर उसे आगे केंद्रीय एशियाई देशों से होते हुए यूरोप तक ले जाना चाहता है। भारत का कहना है कि यह उसकी भौगोलिक अखंडता का उल्लंघन करता है। इस मुद्दे पर अप्रैल, 2017 में जब चीन सरकार ने वैश्विक बैठक की तो भारत ने उसमें हिस्सा नहीं लिया। चीन वैसे भारत को इसमें शामिल होने के लिए लगातार आमंत्रित करता रहता है  लेकिन भारत पूरे कश्मीर को अपना एक अभिन्न हिस्सा मानता है इसलिए वह चीन की इस योजना के खिलाफ है।


 


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