चुनाव से पहले फिर सुर्खियों में आया गुजरात का ये 'दाऊद'

punjabkesari.in Wednesday, Nov 29, 2017 - 03:18 PM (IST)

नई दिल्ली: रईस फिल्म तो देखी होगी आपने, इस फिल्म के किरदार डॉन अब्दुल लतीफ के बारे में तो जानतें ही होंगे आप। लतीफ का किरदार फिल्म में  शाहरुख खान ने निभाया था। इस महीनें में कई चर्चित हस्तियों के जन्मदिन और बरसी थी। क्या आपको पता हैं कि इस महीने की 29 तारीख बहुत मायने रखती है। क्योंकि इसी दिन डॉन अब्दुल लतीफ को पुलिस ने मार गिराया था।

अब्दुल लतीफ को गुजरात का दाऊद भी कहा जाता है। लेकिन क्या आप जानते है दाऊद से ज्यादा खतरनाक था लतीफ दाऊद हमेशा अपने काले कारोबार में मुनाफें के लिहाज से हिंसा और भय का इस्तेमाल बहुत सोच समझकर करता था, पर लतीफ इतना सोचता नहीं था। लतीफ ने दाऊद को मारने के विभिन्न प्रयास भी किए। हालांकि बाद में कारोबार में हुए नुकसान के चलते दाऊद ने लतीफ से हाथ मिला लिया था।

लतीफ दो दशक पहले ही दुनिया को अलविदा कह चुका है। अभी तक लतीफ के ऊपर दो फिल्में आ चुकी हैं।  2014 में आई 'लतीफ़ द किंग ऑफ क्राइम' और 2017 में आई 'रईस' पर फिर भी लतीफ के बारे में काफी कुछ जानना बाकी है। नीरज कुमार ने 'डायल डी फॉर डॉन' नाम की एक किताब भी लिखी है, ये उनके सीबीआई के ऑपरेशन से जुड़ी कहानी है। इस किताब में उन्होंने लतीफ के पकड़े जाने का एक किस्सा भी लिखा है। पर पहले जानते है कब और कहा पैदा हुआ था लतीफ। 

कालूपुरा में पैदा हुआ था लतीफ
अब्दुल लतीफ 24 अक्टूबर, 1951 को कालूपुर में पैदा हुआ था, कालूपुर अहमदाबाद का एक मुस्लिम बहुल इलाका है। लतीफ का परिवार बहुत गरीब था, उसके पिता तम्बाकू बेचते था। लतीफं को मिलाकर वो सात बहन भाई थे। लतीफ के पिता को रोज के मात्र दो रुपए मिले थे। पैसों को लेकर लतीफ और उसके पिता के बीच बहुत लड़ाईयां होती थी। बात में लतीफ अपने पिता के कारोबार में मदद करने लगा। बीस बरस की उम्र में उसकी शादी हो गई। ऐसे में उसने खुद का काम करने का सोचा। लेकिन उसे कोई ढ़ंग का काम नहीं मिला था। बाद में वो अल्लाह रक्खा नाम के एक छोटे क्रिमिनल के साथ हो लिया. अल्लाह रक्खा अवैध शराब का व्यापार करता था साथ ही जुए का अड्डा भई चलाता था।     

जब पठानों ने दाऊद के भाई को मार गिराया
अहमदाबाद में एक बार उसकी मुलाकात मुंबई के पठान गिरोह के दो लोगों से हुई थी। जिन दो लोगों से लतीफ की मुलाकात हुई थी उनके नाम  थे अमीन खान नवाब खान और आलम खान जंगरेज़ खान थे। इनसे मुलाकात को दौरान लतीफ को पता चला कि पठानों के साथ दाऊद का झगड़ा हुआ था। 1981 में दाऊद के बड़े भाई सबीर इब्राहिम को मार दिया था। लतीफ ने उन दोनों को अपने पास पनाह दी। साथ ही पठान गिरोह से जुड़ गया। इसके बाद लतीफ भी दाऊद का दुश्मन हो गया। 

क्यों और कैसे राजनीति में आए थे लतीफ 
खूनी गैंगवार के चलते उसका आतंक था, हालांकि गरीबों और जरुरतमंदों और गरीबों की मदद करके  रॉबिनहुड जैसी छवि बना रखी थी। 1987 में जब वो जेल में बंद था, तब उसने चुनाव लडऩे का फऐसला लिया। उसने पांच वार्डों से अहमदाबाद नगरपालिका का चुनाव लड़ा. और पांचों वार्डों से जीत गया। आठवें दशक के आखिरी सालों के आते-आते उसे 'गुजरात का दाऊद इब्राहिम' कहा जाने लगा था। दोनों ओर से खूनी गैंगवार के चलते कारोबार खराब होने से दाऊद को निराशा थी। 

जब दाऊद ने लतीफ को बुलाया दुबई 
ऐसे में नवंबर, 1989 में लतीफ़ को दाऊद की ओर से एक पैगाम मिला। दाऊद ने उसे दुबऊ आने का न्यौता दिया था। दुबई पहुंचने पर दोनों को कुरान के सामने एक मौलवी ने दोस्ती की कसम दिलाई। दाऊद ने लतीफ से अवैध शराब का धंधा कर सोने की तस्करी करने को कहा। इसके बाद लतीफ़ कुख्यात तस्कर 'मामूमिया पंजूमिया' के साथ तस्करी में लग गया। सोने का तस्कर बनने के साथ-साथ लतीफ़ और ज्या हिंसक और खतरनाक हो चुका था। इसी बीच शाहजादा नाम के मुंबई के एक गुंडे से लतीफ़ की दुश्मनी हो चुकी थी। 

मुंबई धमाके में लतीफ भी शामिल था 
टाइगर और दाऊद के साथ मिलकर उसने भी मुंबई बम धमाकों की योजना बनाई थी।  जनवरी, 1993 को महाराष्ट्र के दिघी पोर्ट पर पहुंची हथियारों और गोला-बारूद की खेप उठाने और उसे षड्यंत्रकारियों तक उसे पहुंचाने का काम लतीफ़ का ही था। संजय दत्त तक पहुंचने के वाले हथियार और गोलाबारूद इसी खेप का हिस्सा थे। नीरज कुमार अपनी किताब 'डायल डी फॉर डॉन' में लिखते हैं कि जब मुंबई में 12 धमाकों की खबर कराची पहुंची तो तीनों ने मिलकर इसका जश्न मनाया था। इसके बाद 1995 को गुजरात एटीएस को अहमदाबाद के दो व्यापारियों ने बताया कि लतीफ उन्हें धमका रहा है। एटीएस ने सीबीआई की मदद मांगी।

कई दिन तलाशने के बाद लतीफ दिल्ली के चूड़ीवालान इलाके के पास से फोन कर रहा था।  इसके बाद एक रोज चूड़ीवालान के उस फोन बूथ से पुलिस वालों ने उदयपुर में किसी से बात कर रहे एक व्यक्ति को सुना। पुलिस को उसकी आवाज लतीफ जैसी लगी। पुलिस को अभी शक हो ही रहा था कि बात कर रहे आदमी ने किसी बात के बीच में कहा, 'अईसा क्या। पुलिस के पास अब पूरा सबूत मौजूद थे। क्योंकि ये लतीफ़ का ही तकया कलाम था। वायरलैस पर फोन बूथ के पास खड़े पुलिस वालों को खबर की गई। पुलिस ने उसे तुरंत पड़क लिया। नीरज कुमार अपनी किताब में लिखते हैं, लतीफ़ को उस तंग इलाके के बीच से कोई दो फर्लांग तक लोगों के सामने से घसीटते हुए पुलिस के वाहन तक ले जाया गया और फिर वाहन में लादकर दरियागंज के एसीपी के ऑफिस ले जाया गया। जेन में आने के दो साल बाद 29 नवंबर को 1997 में एक एनकाउंटर में लतीफ भागते वक्त मारा गया। उस समय वो पुलिस को धोखा देकर नरोदा रेलवे क्रासिंग के पास भाग रहा था। लतीफ की इस कहानी से युवाओं को  एक सीख लेना बेहद जरुरी है। गरीबी या बेरोजगारी के कारण गलत रास्ता चुनना एक घोर अपराध है।      


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