चीन की चिंता , इसके सैनिक और आर्थिक विस्तार को मिलेगी चार देशों से एकजुट चुनौती

punjabkesari.in Monday, Nov 13, 2017 - 09:31 PM (IST)

नई दिल्ली ( रंजीत कुमार ): ताकतवर देशों के बीच तेजी से बदलते सामरिक समीकरण के  बीच एक नया चर्तुपक्षीय गुट का उभरना चीन की उभरती आर्थिक और सैनिक ताकत के लिए शुभसंकेत नहीं है। रविवार को मनीला में चारों देशों अमरीका, आस्ट्रेलिया, जापान और भारत ने चीन की दादागिरी के खिलाफ एक गुट बनाने की एक दशक से चली आ रही झिझक को तोड़ा है।

हिंद महासागर और प्रशांत महासागर को जोडने वाले इलाके को एशिया-प्रशांत कहने के बदले हिंद- प्रशांत कहना चीन को सबसे अधिक खटक रहा है क्योंकि इससे दोनों सागरों के साझा इलाके से भारत को सीधे जोड़ा गया है। इसके मद्देनजर  इस इलाके में शांति , सुरक्षा व स्थिरता बनाए रखने में भारत की अहमियत बढ़ेगी और अब भारत से बेहतर सुरक्षा जिम्मेदारी निभाने की उम्मीद की जाएगी।

चीन की दूसरी चिंता इसलिए भी बढ़ेगी कि दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान के साथ रिश्ते मजबूत करने के लिए भारत की एक्ट ईस्ट पालिसी को प्रोत्साहन मिलेगा और इसके तहत आसियान के देश भारत से बेहतर सुरक्षा सम्बन्ध विकसित करेंगे। इससे दक्षिण चीन सागर में चीन को अपनी दादागिरी दिखाने में परेशानी होगी। दक्षिण चीन सागर में चीन ने एकपक्षीय तौर पर कृत्रिम  द्वीप बना लिए हैं और उन द्वीपों पर सैनिक अड्डा बना कर अपना अधिकार जताया है जिसे लेकर आसियान के छोटे सदस्य देशों में रोष है लेकिन वे पड़ोसी चीन की आर्थिक और सैनिक ताकत से भयभीत रहते हैं इसलिए चीन से सीधे टकराने की वे हिम्मत नहीं करते।

चीन की चिंता यह भी है कि दक्षिण चीन सागर में उसकी सैनिक दादागिरी से मुकाबला के लिए चारों देश अब केवल जुबानी विरोध ही नहीं दर्ज करेंगे बल्कि अपनी सैनिक ताकत दक्षिण चीन सागर के इलाके में तैनात करने लगेंगे। चीन इस इलाके से होकर जाने वाले यात्री विमानों के लिए हवाई सुरक्षा पहचान क्षेत्र (एडीआईजेड) बनाना चाहता है जिसे चारों देश मिल कर चुनौती दे सकते हैं। अमरीका ने पहले ही अपने कुल नौसैनिक संसाधन का 60 प्रतिशत प्रशांत सागर के इलाके में तैनात करने की योजना की घोषणा की थी।

हालांकि चारों देशों ने चर्तुपक्षीय बैठक को कोई गुट की तरह नहीं पेश किया है और मनीला में रविवार को हुई चारों देशों के आला अधिकारियों की पहली बैठक को सलाहमशविरा की बैठक के तौर पर ही निरूपित किया है लेकिन चारों देशों ने जिस तरह अपने अपने बयानों में बैठक के बारे में जानकारी दी है उससे साफ है कि चारों देश प्रशांत महासागर और हिंद महासागर के इलाको  में चीन के बढ़ते आर्थिक और सैनिक प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए इक_े हुए हैं।

पहली बार चीन के उग्र होते तेवर के खिलाफ चारों बड़े देशों अमरीका, जापान , आस्ट्रेलिया और भारत ने एकजुट हो कर दोनों महासागरों में चीन की विस्तारवादी नीति पर विचार किया है। चीन ने इस नए गुट के उभरने पर सधी हुई प्रतिक्रिया दी है लेकिन उसकी ङ्क्षचता साफ है। चारों देश जनतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करने वाले देश हैं और महासागरों के लिए तय अंतरराष्ट्रीय संधियों और नियमों के पालन करने पर निरंतर जोर देते रहे हैं।

चारों देशों ने चीन और दक्षिण चीन सागर का नाम लिए बिना कहा है कि चारों देशों ने हिंद प्रशांत इलाके में आपसी हितों के मसलों पर चर्चा की है और चारों देश यह मानते हैं कि एक स्वतंत्र, खुला , समृद्ध और सबको साथ लेकर चलने वाला हिंद प्रशांत इलाका क्षेत्र के सभी देशों के दीर्घकालीन हितों के अनुरुप होगा।

चीन की चिंता इसलिए भी बढ़ी है कि चारों देशों ने आतंकवाद के मसलों पर विचार किया। चीन को यह महसूस हो रहा है कि आतंकवाद के मसले पर जिस तरह उसने पाक आतंकवादी मसूद अजहर के पक्ष में रुख अपनाया है उससे वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग थलग पड़ सकता है। चारों देशों ने आतंकवाद के खिलाफ अपना रुख कड़ा किया है इसलिए चीन यह छवि नहीं दिखाना चाहेगा कि वह आतंकवादियों को संरक्षण देता है।


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