लगातार 5-5 दिन तक सोई रहती है 4 साल की 'लिया'

punjabkesari.in Sunday, Apr 30, 2017 - 02:27 PM (IST)

नेशनल डैस्कः केरल की 4 वर्षीय लिया जब सोती है तो लगातार लम्बे समय तक सोती रहती है। लिया एकदम निद्रा में चली जाती है चाहे वह खड़ी हो या किसी सोफे पर बैठी हो। एक बार तो वह लगातार 5 दिनों तक सोई रही थी। लिया के माता-पिता को जब यह पता चला कि उसे स्लीपिंग ब्यूटी सिंड्रोम है तो वह असमजंस में पड़ गए थे। लिया को निद्रा के दौरे पड़ते थे जिससे वह कई घंटों के लिए गहरी नींद में चली जाती थी। कई दौरे 10-12 घंटे तक के होते थे और कई तो 5 दिनों तक चलते थे। इसे स्लीपिंग ब्यूटी सिंड्रोम रोग का ना दिया गया है जो एक ऐसी बीमारी है जिसमें कोई व्यक्ति, वह चाहे किसी भी उम्र का हो, काफी लम्बे समय तक सो जाता है।

सोने से पहले लगती है भूख
लिया की माता लीनू डैनी कहती हैं, ‘‘एक बार तो निराश होकर हमने उसकी आंखों में टार्च की रोशनी डालने तक का प्रयास किया था परन्तु कोई भी चीज उसे जगा नहीं सकी। यह बहुत भयावह था।’’ लिया को अस्पताल ले जाने का सिलसिला गत वर्ष अक्तूबर में हुआ जब उसे नींद के दौरे पड़ने शुरू हुए थे। लीनू कहती हैं, ‘‘जो बात मुझे पता चली थी वह यह थी कि दौरे से पहले वह बहुत ज्यादा भूखी होती थी, अत्यधिक भूखी, परेशान और यहां तक कि रोने भी लगती थी।’’

अच्छे से नहीं बोल पाती थी
डाक्टरों को पता चला कि लिया को हाई ब्लड शूगर तथा हाई ब्लड प्रैशर था परन्तु उसकी हृदय गति धीमी थी। लिया के बड़े होने के मापदंड साधारण दिनचर्या के अनुसार नहीं चलते थे। उसे बोलने में दिक्कत होती थी और उसमें ऑटिज्म के कुछ लक्षण दिखाई देते थे। लीनू तथा उसके पति डैनी अंथीकादान कोच्चि के कंजूर में एक चावल मिल में श्रमिक हैं। उनके अनुसार जब लिया तीन साल की हुई तब ही वह बोलना शुरू कर सकी थी।

स्लीपिंग ब्यूटी सिंड्रोम रोग
अब तक लिया को नींद के 8 दौरे पड़ चुके हैं। पहले उसका नॉन कन्वल्सिव एपीलैप्टिक दौरों के लिए इलाज भी किया गया था। इसी दौरान एक बार उसके नाक तथा मुंह से खून बहता देखा गया था। स्थानीय ई.एस.आई. अस्पताल ने उन्हें कई केंद्रों में रैफर किया और उसके बाद लिया को अस्तर मैडसिटी भेजा गया। लिया का इलाज कर रहे पैडियाट्रिक न्यूरोलॉजिस्ट डाक्टर अकबर मुहम्मद चैत्ताली ने बताया कि यह स्लीपिंग ब्यूटी सिंड्रोम या क्लीन लैविन सिंड्रोम नामक नींद का एक विरल रोग है। 10 लाख में से कोई एक ही ऐसा मामला सामने आता है। यह एक न्यूरोसाइकियाट्रिक रोग है। पहले-पहल यह बीमारी उन छोटे बच्चों में पाई जाती थी जिनमें ऑटिज्म के कुछ लक्षण होते थे परन्तु किसी भी अध्ययन में इसका संबंध ऑटिज्म से नहीं देखा गया है।

क्या कहना है डॉक्टरों का
पोलीसोम्नोग्राफी का प्रयोग करके इस बीमारी के संबंध में एक अध्ययन किया गया था। इस प्रक्रिया में दिमाग की तरंगों की रिकार्डिंग, रक्त में ऑक्सीजन के स्तर, हृदय गति, श्वास प्रणाली, आंखों तथा टांगों की गतिविधियों का प्रयोग नींद संबंधी रोगों की जांच करने हेतु किया जाता था। इसके बाद कुछ अन्य विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा किया जाता था जिसमें आर.ई.एम. (रैपिड आई मूवमैंट) यानी गहरी निद्रा के लम्बे चलने वाले संकेतों को लिया जाता था ताकि इस सिंड्रोम के संकेत जांच से निकाले जा सकें। लिया ने इस उपचार पद्धति के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। डाक्टर का कहना है कि जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ेगी वैसे-वैसे नींद के दौरे कम होते जाएंगे।


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