भगवान कृष्ण का सफलता मंत्र अपनाने से जीवन में कभी हार का सामना नहीं करना पड़ता

punjabkesari.in Saturday, Feb 06, 2016 - 02:49 PM (IST)

महात्मा गांधी गीता को ‘गीता मैया’ कहा करते थे। बापू एक स्थान पर लिखते हैं-मेरी मां तो बचपन में ही दिवंगत हो गईं थीं। मां के न रहने पर प्यार-दुलार, संसार का ज्ञान और मार्गदर्शन मुझे मिला है गीता मैया से। भारतीय मनीषियों की मान्यता है कि समस्त भारतीय तत्वज्ञान यदि गाय है तो गोपालनंदन श्रीकृष्ण उनका दूध दुहने वाले पुरुषोत्तम हैं। गीता भारतीय तत्वज्ञान का सार सर्वस्व उन गायों का दुग्धामृत है।
 
गीता ज्ञान को आजकल के पाश्चात्य लोगों ने बहुत महान माना है। जितने अनुवाद गीता के पाश्चात्य भाषाओं में मिलते हैं, बाइबल को छोड़कर अन्य किसी भी धार्मिक ग्रंथ के उतने अनुवाद नहीं मिलेंगे। जर्मनी का दर्शन शास्त्र का प्रोफैसर शोपेनहार तो गीता के अनुवाद को पुस्तकालय में पढ़कर खुशी के मारे नाचने ही लगा। लोगों के पूछने पर उसने बतलाया कि इतना बड़ा ज्ञान और वह भी युद्ध के मैदान में कहा जा सकता है, यह मैं सोच भी नहीं सकता।
 
गीता ने गांधी जी को प्रभावित किया और नि:स्वार्थ सेवा की भावना दी। उन्होंने गीता के संबंध में जो विचार प्रकट किए हैं वे गीता पर लिखे तमाम भाष्यों से कहीं अधिक प्रभावशाली माने जाते हैं।
 
हिन्दू धर्म का अध्ययन करने की इच्छा रखने वाले प्रत्येक हिन्दू के लिए गांधी जी कहते हैं कि, ‘‘यह एक सुलभ ग्रंथ है। इस अमर ग्रंथ के 700 श्लोक यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि हिन्दू धर्म क्या है और उसे जीवन में किस प्रकार उतारा जाए। गीता में किसी धर्म के प्रति द्वेष नहीं। मुझे यह कहते हुए बड़ा आनंद होता है कि मैंने गीता के प्रति जितना पूज्य भाव रखा है, उतने ही पूज्य भाव से बाइबल-कुरान-जदअवस्ता और संसार के अन्य धर्म ग्रंथ पढ़े हैं। इस वाचन ने गीता के प्रति मेरी इच्छा को दृढ़ बनाया है। उससे मेरी दृष्टि और मेरा हिन्दू धर्म विशाल हुआ है। मैं अपने को हिन्दू कहने में गौरव मानता हूं, क्योंकि मेरे मन में यह शब्द इतना विशाल है कि पृथ्वी के चारों कोनों के पैगम्बरों के प्रति यह केवल सहिष्णुता ही नहीं रखता, वरन् उन्हें आत्मसात कर देता है।’’
 
गांधी जी का परिचय गीता से लंदन में हुआ था। वह एक दिन स्वामी विवेकानंद के चमत्कारी भाषणों के बारे में अखबार में पढ़कर उनसे उनके लंदन निवास के समय मिलने गए। वह उस समय विश्राम कर रहे थे। उनकी एक पाश्चात्य शिष्या से उनकी बातचीत होने लगी। उसके गीता ज्ञान से वे बड़े प्रभावित हुए और गीता के अध्ययन का भाव उनमें उत्पन्न हुआ।
 
श्रीमद्भगवद्गीता हमारे सनातन धर्म के महान ग्रंथ महाभारत के मध्य भाग में एक अनमोल ज्ञानकोश की भांति संचित है। जीवन जीने की कला तथा नर से नारायण बनने का मार्गदर्शन गीता में विद्यमान है, इसलिए अनेक महापुरुषों ने इसे कर्तव्य ज्ञान का अप्रतिम कोश कहा है। 
 
गीता का प्रारंभ होता है युद्ध भूमि में एक ओर सात अक्षौहिणी और दूसरी ओर ग्यारह अक्षौहिणी सेना, इनके मध्य में मोहग्रस्त हो जाने के कारण महावीर अर्जुन के हाथों से गांडीव शिथिल होने लगा था। विचार करके देखें तो हम सभी जीवन संग्राम के योद्धा हैं। कई बार ऐसे अवसर आ सकते हैं, जब भावनाओं में बह कर हम कर्तव्य का सही निर्णय करने में किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाएं और ऐसे अवसरों पर कदाचित्त हमारा धैर्य टूटे, हम पीछे कदम रखना चाहें, उस समय गीता की धीर गंभीर ध्वनि मानो सावधान करती हुई सी हमारे हृदयों में इस प्रकार गूंजने लगेगी:

क्लैब्यं मा स्म गम: पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते। छुद्र हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।
 
हे पृथा पुत्र! पौरुष को ले जाने वाली क्लीवृत्ति तुझे शोभा नहीं देती। हे पुरुष सिंह! लक्ष्य में बाधा डालने वाले संकटों पर विजय पाना तो तेरा स्वभाव ही है। हृदय की छुद्र दुर्बल भावनाओं पर विजयी होकर हे परन्तप तू कटिबद्ध हो जा।
 
गीता अनुपम आत्मविश्वास जाग्रत करके मनुष्य को निर्भय बनाने वाला ग्रंथ है। यह आत्मा की अमरता और अखंडता का प्रतिपादन कर देह की आसक्ति के कारण लक्ष्य प्राप्त करने में विचलित होने वाले जीवन-संघर्ष के योद्धाओं को निर्भयता का संदेश देती है। मैं केवल देह नहीं हूं, देह तो मेरा आवरण मात्र है। मैं कभी न मरने वाला अखंड और व्यापक आत्मा हूं। वह आत्मा जिसे शस्त्र काट नहीं सकता, अग्रि जला नहीं सकती, पानी गीला नहीं कर सकता और वायु सुखा नहीं सकती है।

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: न चैनं क्लेदयन्त्यापो ने शोषयति मारुत:।।
 
भारत का इतिहास इस उपदेश से कितना प्रभावित हुआ यह तो इतिहास के पृष्ठ बताते हैं। हमने देखा है कि हमारे राष्ट्र के क्रांतिकारी बलिदानी वीर इसी ज्योतिर्मय उपदेश की मस्ती में फांसी की रस्सी को चूमते रहे और अत्याचारी लाख उत्पीडऩ के पश्चात भी उनके चेहरे की मुस्कान को न मिटा सके।

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