शिव शंभू के मंत्रों में हैं अपार सिद्धियां

punjabkesari.in Sunday, Oct 04, 2015 - 10:57 AM (IST)

श्वेताश्वतरी परिषद में पूछा गया जगत का कारण जो ब्रह्म है वह कौन है? कि कारणम् ब्रह्म। वेद ने ब्रह्म शब्द के स्थान पर रुद्र, शिव शब्द प्रयोग किया किं कारणं ब्रह्मा। का उत्तर श्रुति में दिया एको हिरुद्र, स शिव:।
 
लीला भेद से, अवतार भेद से, भगवान एक रूप से अनेक रूपों में भाषित होता है, दर्शन देता है। अत: आराधक उपासक रुचि के अनुरूप भिन्न-भिन्न रूपों में मूतियों में भगवदुपासना मंत्रानुष्ठान करता है, क्योंकि प्रेम में रुचि का अत्यधिक महत्व है अत: उपासकों के हित के लिए उनकी रुचि के अनुसार ईश्वर भिन्न रूपों में प्रकट हो भक्तों का, उपासकों का कल्याण करता है, कामनाएं पूर्ण करता है।
 
अनन्तानन्त ब्रह्मांडों में संसार में बहुत मंत्र हैं। जिनमें सात करोड़ महामंत्रों की संख्या है अत: इस प्रकार असंख्य अनन्त मंत्र हैं जिनमें दो महामंत्र दिव्याति  दिव्य विशिष्टिाति विशिष्ट है। वह हैं श्री राम अथवा श्री शिव यह दो अक्षर वाले सभी मंत्रों में राम मंत्र श्रेष्ठाति श्रेष्ठ है+महामंत्र सोई जपत महेसू।

भगवान विष्णु देवर्षि नारद से कहते हैं :
जपहु जाई संकर सतनामा।
 
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने रामेश्वर ज्योर्तिलिंग की स्थापना पूजा अर्चना की और कहा शिव समान प्रिय मोहि न दूजा।
 
मंत्रानुष्ठान भगवन्नाम जप से अनेक ऋषि, मुनि, नर-नारियों को परम लाभ हुआ, भगवद्दर्शन हुआ जो पुराणों महाभारत, रामायणादि ग्रंथों में पढ़ा जा सकता है। भगवान शंकर के अनेक मंत्र हैं, जिनमें नम: शिवाय पंचाक्षर मंत्र परम प्रसिद्ध परमोपयोगी सिद्धिदायक महामंत्र है। ऊं मंत्र के पहले लगाने से ऊं नम: शिवाय। षडाक्षर हो जाता है। इस पंचाक्षर या षडाक्षर शिव मंत्र का अनुष्ठान जप छत्तीस लाख का होता है।
 

इस मंत्र के जाप से व्यक्ति धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। सकल कामनाओं की सिद्धि प्राप्त कर सकता है। इस मंत्र के वामदेव ऋषि हैं, पंक्ति छंद हैं और ईशान देवता हैं। श्रद्धा, विश्वासपूर्वक मंत्रानुष्ठान करने से सभी सिद्धियां प्राप्त हो सकती हैं। विधिवत अनुष्ठान करना चाहिए। 


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