डिमैंशिया रोगियों के लिए बसाया गांव

punjabkesari.in Sunday, Oct 22, 2017 - 02:52 PM (IST)

लंदन: नमार्क के स्वेनबोर्ग गांव में स्थित ओवे हानसन के कमरे में हर दोपहर मुॢगयां आकर उसकी गोद में बैठ जाती हैं। लंबी दाढ़ी वाला 58 वर्षीय ओवे कहता है, ‘‘इन्हें भी टी.वी. देखना पसंद है।’’ वह खुश है कि दिन भर में उसने 7 अंडे जमा किए। उसके अनुसार  ‘‘यह एक अच्छा दिन है।’’यह इसलिए भी अच्छा है क्योंकि आज उसे याद है कि उसने सुबह क्या किया था। बेशक आम लोगों के लिए यह कोई बड़ी बात न हो परंतु उसके तथा इस गांव के अन्य अधिकतर निवासियों के लिए चीजों को याद रख पाना बेहद महत्वपूर्ण है। दरअसल, इस गांव के सभी निवासी डिमैंशिया से ग्रस्त हैं।

इस स्वास्थ्य समस्या में पीड़ित व्यक्ति की याद्दाश्त सबसे ज्यादा प्रभावित होती है। अल्जाइमर रोग के परिणामस्वरूप उत्पन्न यह वृद्ध लोगों के बीच सबसे आम समस्याओं में से एक है। शुरूआत में प्रभावित लोगों को लगता है कि कुछ न कुछ तो सही नहीं है। बाद में वे पूरी तरह से एक अलग ही दुनिया में रहने लगते हैं। वे अपने दैनिक कार्य ठीक से नहीं कर पाते। कभी-कभी वे यह भी भूल जाते हैं कि वे किस शहर में हैं या कौन-सा साल या महीना चल रहा है। 

बोलते हुए उन्हें सही शब्द नहीं सूझता। उनका व्यवहार बदला-बदला सा लगता है और व्यक्तित्व में भी फर्क आ सकता है। किसी वक्त खरीदारी करना या बाल कटवाने के लिए जाना जैसे जो काम उनके लिए बेहद आम बात थे, असंभव हो जाते हैं। चूंकि, कई पीड़ित इसके बाद भी शारीरिक रूप से फिट होते हैं। इसलिए नॄसग होम भी उनके लिए सही जगह नहीं है। इसी वजह से 125 डिमैंशिया रोगियों के लिए फुनेन नामक डेनिश टापू पर स्वेनबोर्ग नामक गांव बसाया गया है। 

यह एक गांव के भीतर बसे गांव जैसा है जिसमें अपनी दुकानें, सैलून, फिटनैस स्टूडियो, कैफे और झील हैं। लोग अकेले या सांझा अपार्टमैंट में भी रह सकते हैं। यहां उनकी सुरक्षा का भी पूरा बंदोबस्त है। यहां रहने वाले डिमैंशिया रोगी अचानक चीजें भूलने के बावजूद खो नहीं सकते हैं। सड़क और पार्क के आखिर में एक बाड़ लगाई गई है जिसका पता यहां रहने वालों को चलता नहीं है परंतु वह उनकी आजादी को सुरक्षित रखते हुए उनकी सुरक्षा को भी सुनिश्चित करती है। 

स्वेनबोर्ग के महापौर लार्स एरिक हॉर्नमैन कहते हैं, ‘‘लोगों को सामान्य जीवन देने का यह एक अच्छा तरीका है। डिमैंशिया गांव बाकी कस्बे का एक हिस्सा है लेकिन वहां रहने वालों पर हर वक्त नजर रखने की जरूरत नहीं पड़ती है।’’ यहां रहने वाले रोगियों की उम्र 50 से 102 वर्ष के बीच है। वे सैर कर सकते हैं, कॉफी के लिए एक-दूजे से मिल सकते हैं, खरीदारी कर सकते हैं। गांव की दुकान में सबसे अधिक चॉकलेट बिकती है। उनके रिश्तेदार जब उनसे मिलने आते हैं तो रोगियों के पास उसने बात करने के लिए बहुत कुछ होता है। ऐसा न होता यदि उन्हें हमेशा एक नॄसग होम के कमरे में बंद रखा जाता। 


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