माता सत्यावती मंदिर: इस कुल की बेटियों के लिए वर्जित है यहां माथा टेकना

punjabkesari.in Monday, Jan 25, 2016 - 04:11 PM (IST)

भारतीय संस्कृति के अनुसार हमारे समाज में अपने बड़े-बुजुर्गों, पूर्वजों, शहीदों और सतियों के जन्मदिन तथा यादगारें मनाने एवं पूजा आदि की प्रथा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है।

इसी प्रथा के अंतर्गत अखिल भारतीय महाजन मनाथ बिरादरी के कुलदेव स्थान कठुआ से लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित गांव चन्नग्रां में मौजूद माता सत्यावती मंदिर में हर वर्ष विशाल मेला लगता है जिसमें देश भर से एक ही वंश के विभिन्न परिवारों के हजारों सदस्य कुलदेव स्थान पर सिर निवाते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं। सुख-शांति की कामना करते हैं तथा अपनी भूलों के लिए क्षमा याचना करते हैं। 

इस कुल की बेटियों के लिए माथा टेकना यहां वर्जित है। विवाहित बेटे जब तक इस कुलदेव मंदिर के गिर्द वधू के साथ 4 फेरे नहीं ले लेते तब तक उनकी शादी पक्की नहीं मानी जाती। कई लोग पहली बार बेटे के बाल भी यहीं कटवाते हैं। यहां कुलदेव स्थान पर एक प्राचीन मंदिर है जहां माता सत्यावती के मोहरे पड़े हुए हैं। अब इस मंदिर को आधुनिक रूप दे दिया गया है तथा माता सत्यावती की संगमरमर की मूर्तियां भी उसके साथ ही स्थापित करवा दी गई हैं। यहां मंदिर परिसर में माता सत्यावती के चरणों में एक बावली स्थित है जिसका पानी बिरादरी के लोग बोतलों और कैनियों में भर कर अपने घरों को ले जाते हैं और वर्ष भर उसे चरणामृत की तरह प्रयोग करते हैं। 

यहां कई लोग तो एक दिन पूर्व ही पहुंच जाते हैं जिनके रहने, सोने और खाने का प्रबंध बिरादरी की मंदिर कमेटी करती है। अगले दिन भंडारे का भी आयोजन होता है जिसका प्रसाद सभी लोग ग्रहण करते हैं। कुछ लोग इस प्रसाद को अपने घरों मे भी परिवार के उन सदस्यों के लिए ले जाते हैं जो किसी कारणवश यहां नहीं आ पाते। बिरादरी के कई लोग अपने खर्चे पर ब्रेकफास्ट के स्टाल भी लगाते हैं। 

इस बिरादरी की कमेटी ने यहां एक नि:शुल्क स्कूल भी खोल रखा है, जिसमें अभी तक विद्यार्थियों से न तो दाखिला फीस ली जाती है और न ही मासिक फीस । यहां तक कि स्कूल बैग, यूनिफार्म, कापियां-किताबें, रबड़-ब्लेड और पैंसिल तक बिरादरी की ओर से स्कूल प्रबंधक कमेटी उपलब्ध करवाती है। स्टाफ का वेतन भी कमेटी ही देती है। 

अब बिरादरी के कुछ लोगों ने अपने-अपने खर्चे पर यहां विभिन्न मंदिर बनवाए हैं जिनमें बजरंग बली, राम दरबार, लक्ष्मी नारायण , सूर्यदेव, शिव भगवान, नाग देवता,  श्री गणेश , दुर्गा माता और धर्मराज की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। अन्तिम बने दो मंदिरों सहित इस परिसर में अब सात मंदिर हो गए हैं।  

—मंगत राम महाजन कठुआ 


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