क्रोध को जीतने के लिए युधिष्ठिर ने अपनाया था ये मार्ग, आप भी आजमाएं

punjabkesari.in Monday, Feb 20, 2017 - 11:23 AM (IST)

उन दिनों पांडव द्रोणाचार्य से शिक्षा ले रहे थे। एक दिन उनका पाठ था ‘क्रोध को जीतो’। पाठ के बाद द्रोणाचार्य ने पांडवों से पूछा, ‘‘पाठ याद हो गया?’’

 

युधिष्ठिर को छोड़कर सभी ने उत्तर दिया, ‘‘याद हो गया।’’ 


लेकिन युधिष्ठिर बोले, ‘‘याद नहीं हुआ।’’ 


द्रोणाचार्य ने पूछा, ‘‘क्या बात है, इतना सीधा-सादा पाठ तुम्हें याद क्यों नहीं हुआ?’’ 


युधिष्ठिर का उत्तर था, ‘‘नहीं हुआ।’’ 


द्रोण ने कहा, ‘‘ठीक है कल याद करके आना।’’ 


अगले दिन द्रोण ने पूछा, ‘‘याद हो गया?’’ 


युधिष्ठिर का उत्तर था, ‘‘नहीं हुआ।’’


क्रोधित द्रोण बोले, ‘‘तुम्हारे दिमाग में बुद्धि है या भूसा?’’ 


युधिष्ठिर ने बिना हिचकिचाहट के कहा, ‘‘मुझे पाठ याद नहीं हुआ।’’ 


द्रोण ने गरजते हुए कहा, ‘‘तुमने 2 दिन बर्बाद कर दिए। अब अगर कल पाठ याद नहीं हुआ तो तुम्हें दंडित होना पड़ेगा।’’ 


तीसरे दिन भी युधिष्ठिर ने ‘नहीं’ का उत्तर दिया। तब द्रोण ने युधिष्ठिर के गाल पर एक चांटा मारा। युधिष्ठिर कुछ देर चुपचाप खड़े रहे, फिर बोले, ‘‘पाठ याद हो गया।’’ 


द्रोण बोले, ‘‘मुझे पता होता कि चांटा खाकर पाठ याद होगा तो पहले ही दिन तुम्हें चांटा खिला देता।’’ 


विनम्र स्वर में युधिष्ठिर ने कहा, ‘‘गुरुदेव, ऐसी बात नहीं थी, मुझे खुद पर भरोसा नहीं था। आपने प्रेम से पाठ पढ़ाया तो मेरे मन ने कहा कि कोई प्यार से बात करे तो क्रोध का सवाल ही नहीं उठता। हो सकता है तीखी भाषा में बोले तो क्रोध आ जाए। 


अगले दिन जब आपने मेरे दिमाग की बात की तब भी मुझे क्रोध नहीं आया लेकिन मेरे मन ने कहा कि अभी एक और परीक्षा बाकी है, कोई बल प्रयोग करे तो क्रोध आ जाए। आपने जब चांटा मारा फिर भी मुझे क्रोध नहीं आया। तब मैं समझा कि मुझे पाठ याद हो गया।’’ द्रोण ने युधिष्ठिर को गले लगा लिया।


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