भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त थे रावण, रुद्रावतार ने क्यों दिया उसे मारने में सहयोग

punjabkesari.in Monday, Apr 10, 2017 - 11:21 AM (IST)

गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री राम चरित मानस में लिखा है  ‘जेहि सरीर रति राम सों सोई आदर  हिं सुजान,रुद्रदेह तजि नेह बस बानर भे हनुमान’ भगवान शंकर ने भगवती सती से कहा कि वह दिन-रात जिस ‘राम नाम’ का स्मरण करते हैं त्रेता में वही राम धरती पर अवतार ले रहे हैं। उन्हीं भगवान राम की सेवा के लिए सभी देवता भी विभिन्न रूप लेकर धरती पर जन्म ले रहे हैं। मैंने भी प्रभु की अनन्य लीलाओं का आनंद लेने के लिए अंजना के गर्भ से ‘हनुमान’ के रूप में धरती पर अवतार लेने का निश्चय किया है’।


सती ने कहा कि भगवान राम का अवतार रावण को मारने के लिए हो रहा है और रावण आपका अनन्य भक्त है। उसने अपने 10 सिर काटकर आपको समर्पित किए हैं ऐसे में आप रावण को मारने में कैसे सहयोग दे सकते हैं? 


तब भगवान शंकर ने कहा कि ‘‘रावण ने मेरी भक्ति 10 अंशों में की है और उसने मेरे 11वें अंश की अवहेलना भी की है क्योंकि उसने उसे बिना पूजे ही छोड़ दिया। मैं अपने उसी अंश से प्रभु राम की सेवा कर सकता हूं।’’ इसीलिए भगवान शिव ने हनुमान रूप में अवतार लिया। तभी तो भगवान श्री राम भी भगवान शंकर के प्रति अगाध श्रद्धा एवं प्रेम लिए कहते हैं-


शिब द्रोही मम् दास कहावा सो नर सपनेहों मुझे न पावा।


तुलसीकृत श्री रामायण में इनका चरित्र सबसे ऊंचा है इसीलिए अपनी नि:स्वार्थ सेवा निष्ठा के कारण अपने स्वामी प्रभु श्रीराम की सर्वाधिक निकटता उन्हीं को प्राप्त हुई। 


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