जानिए, किसी भी प्लाट पर वास्तु का प्रभाव कब और कैसे पड़ता है
punjabkesari.in Saturday, Apr 08, 2017 - 08:43 AM (IST)
उदाहरण के लिए जब जमीन के बड़े भाग पर कोई काॅलोनाईजर कॉलोनी काटता है तो पहले वह कागजों पर ही कॉलोनी का प्लान तैयार कर कॉलोनी को लाँच करता है और प्लाट के खरीदारों को कॉलोनी का प्लान दिखा कर प्लाॅट्स की बुकिंग करता है, जिसमें यूजर के अलावा कई निवेशक भी शुरू में ही खरीदकर रीसेल के लिए प्लाॅट्स की बुकिंग करते है। इस समय तक कॉलोनी में कोई भी निर्माण कार्य नहीं हुआ होता केवल कागजों पर ही कॉलोनी कटी होती है। इसलिए वहां केवल खाली जमीन ही होती है। तब तक केवल जमीन की ऊंचाई निचाई का वास्तु प्रभाव कॉलोनी के भूखण्ड पर पड़ता है। यदि कॉलोनी की जमीन का ढलान उत्तर या पूर्व दिशा की ओर हो तो कालोनाइजर उस कॉलोनी के प्लॉट्स को अच्छी कीमत पर बुक कर पाता है और यदि दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर हो तो उसे अच्छी कीमत नहीं मिलती और यही स्थिति निवेशकों के साथ भी बनती है।
इसके बाद जब कालोनाईजर द्वारा कॉलोनी के चारों ओर कम्पाऊण्ड वाॅल बना दी जाती है तब कॉलोनी पर कम्पाऊण्ड वाल के घटाव व बढ़ाव का वास्तु प्रभाव भी उस कॉलोनी पर पड़ने लगता है। इस स्थिति में भी कॉलोनी के अंदर कटे छोटे-छोटे भूखण्डों अर्थात् प्लाट पर वास्तु का अलग से कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता, किंतु जैसे ही कॉलोनी में सड़कों का निर्माण होता है वैसे ही प्रत्येक प्लाट के आकार, प्लाट पर होने वाले मार्ग प्रहार, टी जंक्शन, विथिशुला, डेड एंड इत्यादि स्थितियों का आंशिक प्रभाव प्लाॅट्स पर पड़ने लगता है और जब प्लाट पर कम्पाऊण्ड वाल बनती है या प्लाट के आसपास दूसरों के निर्माण कार्य होने के कारण जब प्लाट का एक निश्चित आकार दिखाई देने लगता है तब वह एक पूर्ण वास्तु बन जाता है और उस प्लाट पर तथा उस पर बनने वाले भवन पर वास्तु के सभी सिद्धांत पूर्णतः लागू हो जाते हैं।
वास्तुगुरू कुलदीप सलूजा
thenebula2001@gmail.com
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