वैद्य का धर्म जान झुक जाएंगे सबके मस्तक

punjabkesari.in Sunday, Apr 02, 2017 - 03:31 PM (IST)

झंडू भट्ट जी एक नेकदिल इंसान और अनुभवी वैद्य थे। एक बार सौराष्ट्र के बढ़वाणा राज्य के महाराज ठाकुर साहब बाल सिंह जी बहुत बीमार पड़ गए। ठाकुर साहब के लिए जाने कितने ही वैद्य और डाक्टर आए और अपना उपचार आजमा कर और फर्क न पड़ने पर भी अपनी फीस पाकर चले गए। किसी भी वैद्य से फर्क न पड़ते देख ठाकुर जी की चिकित्सा के लिए जामनगर से झंडू भट्ट को बुलाया गया। भट्ट जी को ठाकुर साहब का उपचार करते 3 महीने बीत गए। 

3 महीने बाद एक दिन ठाकुर साहब ने भट्ट जी से कहा कि आप अपनी औषधि और उपचार आदि का बिल क्यों नहीं देते हैं? उसका भी तो भुगतान होना चाहिए। भट्ट जी ने हंसते हुए कहा कि महाराज ऐसी जल्दी भी क्या है? आप अच्छे हो जाएं फिर आप जो कुछ देंगे मुझे स्वीकार होगा। 

मगर ठाकुर की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा था। धीरे-धीरे उनकी बीमारी का कोप बढ़ता गया और एक दिन वह स्वर्ग सिधार गए। ठाकुर साहब के अंतिम संस्कार के बाद भट्ट जी बिना किसी से कुछ कहे-सुने अपने घर जामनगर लौट आए। बाद में राज्य की ओर से ठाकुर साहब के उपचार के लिए भट्ट जी को 2 हजार रुपए का एक चैक भेजा गया। 

भट्ट जी ने वह लौटाते हुए राज्य अधिकारी को लिखा, ‘ठाकुर साहब थोड़े दिन के मेहमान हैं। यह बात मुझे पहले से ज्ञात थी पर मरीज की श्रद्धा न टूट जाए, इस दृष्टि से वैद्य का धर्म निभाते हुए मैं उनकी सेवा करता रहा लेकिन जो रोगी मेरे हाथों से स्वस्थ नहीं होता मैं उसका पैसा नहीं लिया करता। आपका चैक सादर लौटा रहा हूं।’ राज्य अधिकारी ने जब यह बात सबको सुनाई तो सम्पूर्ण राजसभा के पदाधिकारियों का मस्तक उनकी इंसानियत, अनुभव व नेकदिली के समक्ष आदर से झुक गया।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News