जो लोग भगवान को देख नहीं पाते, उनका मार्गदर्शन करेगी ये कथा

punjabkesari.in Monday, May 22, 2017 - 11:51 AM (IST)

महाराज मुचुकुन्द सूर्यवंश में आविर्भूत हुए थे। देवताओं के अनुरोध पर महाराज मुचुकुन्द ने बिना सोए निरंतर काफी लम्बे समय तक असुरों के अत्याचार से देवताओं की रक्षा की थी। जब देवताओं को स्वर्ग के रक्षक सेनापति के रूप में कार्तिकेय मिल गए तब उन्होंने महाराज मुचुकुन्द को और अधिक कष्ट देना नहीं चाहा। संतुष्ट होकर वे महाराज मुचुकुन्द से बोले, हे राजन! आप ने बिना शयन किए हमारे प्रहरी के रूप से बहुत कष्ट सहन किया है इसलिए अब आप विश्राम कीजिए। आपने हमारा पालन करने के लिए मृत्युलोक के राज्यसुख तक का परित्याग किया है। समस्त विषय-भोगों का त्याग किया है। विशेष बात तो यह है कि इस अन्तराल में आप के पुत्र, स्त्री, मन्त्री एवं प्रजा सभी काल के मुख में जा चुके हैं। उनमें से अभी कोई भी नहीं है। पशुपालक जैसे पशुओं को इधर-उधर हांकता है, उसी प्रकार काल भी खेल करता-करता प्राणियोंं को इधर-उधर परिचालित करता है। हे राजन! हम प्रसन्न होकर आप को आशीर्वाद करते हैं। आप मुक्ति को छोड़कर बाकी कुछ भी हम से वरदान में मांग सकते हैं क्योंकि मुक्ति तो केवल श्रीविष्णु ही दे सकते हैं।   

 

 महाराज मुचुकुन्द ने देवताओं की वंदना करी और देवताओं से लम्बी नींद के आगोश में जाने की मांग रखी।    

                                                                      
देवता उनकी इच्छा से बहुत हैरान हुए किंतु बोले, ठीक है ऐसा ही होगा। यदि कोई आपकी निद्रा भंग करेगा तो वह उसी समय भस्म हो जाएगा। वर प्राप्त कर महाराज मुचुकुन्द एक गुफा में आकर सो गए।


वृहद्रथ राजा के पुत्र ज़रासन्ध मगध देश के महाप्रभावशाली राजा थे। ज़रासन्ध को एक वरदान प्राप्त था कि जब तक उसको समान रूप से बीच में से चीर कर फेंका नहीं जायेगा तब तक उसकी मृत्यु नहीं होगी। उसकी दोनों पुत्रियों 'अस्ति' और 'प्राप्ति' का विवाह महाराज कंस के साथ हुआ था। श्रीकृष्ण ने महाराज कंस को मारा था, इसी कारण से ज़रासन्ध की श्रीकृष्ण से शत्रुता हो गई। उसने सतरह बार मथुरा पर आक्रमण किया किन्तु हर बार श्रीकृष्ण से हार मिली।


महर्षि गर्ग ने महादेव जी के वरदान से महाप्रभावशाली पुत्र प्राप्त किया था। यवन राजा के यहां प्रतिपालित होने के कारण उसका नाम कालयवन हुआ। ज़रासन्ध ने शिशुपाल के मित्र शाल्व के माध्यम से कालयवन से मित्रता की। ज़रासन्ध की प्रेरणा से कालयवन ने मथुरा पर आक्रमण किया तो श्रीकृष्ण ने द्वारिका भाग जाने की लीला की।  इससे कालयवन को विश्वास हो गया कि श्रीकृष्ण उसके पराक्रम से भयभीत हो गए हैं। उसने जब दूसरी बार श्रीकृष्ण को देखा तो वह श्रीकृष्ण के पीछे दौड़ा। 


श्रीकृष्ण कुशलतापूर्वक उसे दौड़ाते-दौड़ाते उस गुफा में ले आए जहां पर महाराज मुचुकुन्द सो रहे थे। श्रीकृष्ण वहां पहुंच कर अन्तर्हित हो गए। श्रीकृष्ण जब कहीं नहीं दिखे तो कालयवन ने गुफा में सोए हुए व्यक्ति को श्रीकृष्ण समझकर उसे पैर से ठोकर मारी। जिससे महाराज मुचुकुन्द की निद्रा भंग हो गयी। नींद टूटने पर मुचुकुन्द ने आंखें खोली तो मुचुकुन्द की दृष्टि खुलने मात्र से ही कालयवन भसम हो गया। श्रीकृष्ण के स्वरूप का सामने दर्शन करके राजा मुचुकुन्द ने सशंकित होकर उनके चरणों में प्रणाम किया और बोले आप के असहनीय तेज के प्रभाव से मेरा तेज फीका पड़ गया है। मैं बार-बार प्रयास करने पर भी लगतार आपके दर्शन नहीं कर पा रहा हूं। आप समस्त प्राणियों के आराध्य हैं।


ज़रासन्ध और कालयवन साक्षात श्रीकृष्ण को देखकर भी भक्ति न होने के कारण श्रीकृष्ण के भगवत्-स्वरूप की उपलब्धि नहीं कर पाए। धार्मिक व भक्तिमान मुचुकुन्द के ऊपर श्रीकृष्ण की कृपा दृष्टि होने के कारण वे श्रीकृष्ण के भगवत स्वरूप को पहचान पाए। 


श्रीकृष्ण अपना तत्त्व समझाते हुए राजा को बोले, महाराज मुचुकुन्द! पूर्वकाल में आपने मुझसे प्रचुर रूप से कृपा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना की थी इसलिए अनुग्रह पूर्वक गुफा में उपस्थित होकर मैंने आपको अपना स्वरूप दिखाया है। राजा मुचुकुन्द ने तब श्रीकृष्ण को प्रणाम किया व वंशागति श्लोकों से उनका स्तव किया। 


श्रीकृष्ण ने संतुष्ट होकर कहा, मैंने आपसे वरदान मांगने के लिए कहा। किंतु आप विषयों की ओर आकृष्ट नहीं हुए। आप में मेरे प्रति इसी प्रकार की अटूट भक्ति बनी रहे।  मन लगाकर आप इच्छानुसार पृथ्वी पर विहार करें। 


श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com


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