वास्तुगुरू की राय: खजुराहो में पर्यटकों की संख्या बढ़ाने के लिए प्रशासन उठाए ये कदम

punjabkesari.in Friday, Jun 02, 2017 - 08:57 AM (IST)

खजुराहो मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले का प्रमुख शहर है, जो अपने प्राचीन एवं मध्यकालीन मंदिरों के लिए विश्वविख्यात है। खजुराहो के मंदिरों का निर्माण 950 ई.से 1050 ई.के बीच हुआ है। खजुराहो बस्ती से पश्चिम में होने के कारण मंदिरों के इस  समूह को पश्चिमी मंदिर समूह कहते हैं। इस पश्चिमी समूह में कुल 12 मंदिर हैं जिनमें प्रमुख विश्वनाथ, लक्ष्मण, कन्दरिया महादेव एवं जगदम्बा मंदिर हैं। इस स्थान को युनेस्को ने 1986 में विश्व विरासत की सूची में शामिल भी किया है। इसके अलावा खजुराहो में बड़ी संख्या में प्राचीन हिंदू और जैन मंदिर हैं। खजुराहो अपने कलापूर्ण मंदिरों के लिए विश्व के पर्यटक मानचित्र पर विशिष्ट स्थान रखता है, जो कि देश के सर्वोत्कृष्ठ मध्यकालीन स्मारक हैं। हिन्दू कला और संस्कृति को शिल्पियों ने इस शहर के पत्थरों पर मध्यकाल में उत्कीर्ण किया था। इसकी विश्व प्रसिद्धि का कारण नग्न एवं संभोग की मुद्रा में मंदिर के बाहर बनी विभिन्न मूर्तियां हैं। जिनमें काम-कला को बेहद खूबसूरती से उभारा गया है। मंदिरों में मूर्तियों का निर्माण इतनी खूबसूरती से किया गया है कि देखने के बाद किसी के मन में बुरे विचार नहीं आते, अपितु दर्शक मूर्तियों की खूबसूरती में खो जाते हैं।


भारत वर्ष के अन्य राज्यों जैसे महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान एवं कर्नाटक आदि में भी मंदिरों में इस प्रकार के दृश्य देखने को मिलते हैं। उड़ीसा के कोणार्क सूर्य मंदिर में कुछ अधिकता से शिल्पकारों ने बहुत मार्मिक ढंग से चित्रण किया हुआ है, लेकिन जितनी प्रचुरता, प्रधानता एवं विस्तारपूर्वक शिल्प विविधता खजुराहो में दिखाई है उतनी अन्यत्र देखने को नहीं मिलती। प्रभाव की दृष्टि से यह काम उत्तेजक नहीं बल्कि मैथुन के विभिन्न सिद्धान्तों के चित्रण होने के कारण ज्ञानवर्धक है। विभेद एवं विस्मयकारी दृश्यों से पर्यटकों में काम कला के प्रति सही अन्वेषण करने की प्ररेणा देता है।


खजुराहो के पश्चिम मंदिर समूह को देखने के लिए यहां देशी-विदेशी पर्यटक आते तो हैं, परंतु इनकी संख्या उतनी नहीं जितने सुन्दर और कलात्मक बने इन मंदिरों को देखने के लिए होनी चाहिए। खजुराहों राष्ट्रीय स्तर का पर्यटन स्थल है इसलिए यहां पर एयरपोर्ट है, कई थ्री स्टार और फाईव स्टार होटल हैं, जो पर्यटकों की कम संख्या के कारण घाटें में चल रहे हैं। पर्यटकों की कम संख्या होने का एकमात्र कारण पश्चिमी मंदिर समूह के परिसर के अंदर और बाहर हुए निर्माण कार्य वास्तु सिद्धान्तों के विपरीत हो गए हैं, जबकि मंदिरों का निर्माण वास्तुनुकूल हुआ है। 


पश्चिमी मंदिर परिसर के बाहर पूर्व ईशान कोण में प्रेम सागर तालाब है और परिसर के अन्दर उत्तर दिशा में ढ़लान है। परिसर के अन्दर पश्चिम दिशा में कन्दारिया महादेव मंदिर, देवी जगदम्बे मंदिर, और चित्रगुप्त मंदिर एक सीध में एक ऊंचे चबूतरे पर बने हैं जिससे पश्चिम दिशा ऊंची एवं भारी हो रही है। ईशान कोण और उत्तर दिशा की यही वास्तुनुकूलताएं पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर प्रसिद्धि दिलाने में सहायक हो रही हैं। यहां प्रतिदिन में लाइट एण्ड साऊण्ड का कार्यक्रम होता है। प्रवेशद्वार पूर्व ईशान में वास्तुनुकूल स्थान पर रखा गया है।


यहां बने सभी मंदिरों की बनावट वास्तुनुकूल है। सभी मंदिर पूर्वमुखी हैं। सभी मंदिरों के आसपास परिक्रमा करने की जगह छोड़ी गई है। सभी मंदिरों के ऊपर गुम्बद हैं जो पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा की ओर क्रमशः ऊंचाई लिए हुए हैं। मंदिर परिसर के बाहर दक्षिण आग्नेय से लेकर मध्य दक्षिण दिशा तक शिवसागर तालाब है, जो प्रेम सागर तालाब से बड़ा है। वास्तुशास्त्र के अनुसार, दक्षिण दिशा के वास्तुदोष स्त्रियों को प्रभावित करते हैं। इसलिए यहां पर आने वाली देशी-विदेशी महिला पर्यटकों के साथ शारीरिक उत्पीड़न की शिकायतें आती रहती हैं।


कुछ दशकों पूर्व बनी मंदिर परिसर की पूर्व दिशा की कम्पाऊण्ड वाल पूर्व आग्नेय की ओर बढ़ाव लिए हुए है और पूर्व आग्नेय में ही परिसर में आने का मुख्य प्रवेशद्वार है। वास्तुशास्त्र के अनुसार, पूर्व आग्नेय का प्रवेशद्वार पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित नहीं करता है। पूर्व आग्नेय का बढ़ाव और प्रवेशद्वार विवाद और कलह का कारण बनते हैं। इसी कारण यहां कार्यरत कर्मचारियों में विवाद रहते हैं। उत्तर दिशा की कम्पाऊण्ड वाल में उत्तर के साथ मिलकर वायव्य कोण में बढ़ाव है। वास्तुशास्त्र के अनुसार, यदि उत्तर दिशा के साथ मिलकर वायव्य में बढ़ाव होता तो वहां आर्थिक लाभ नहीं होता। इसी के साथ नैऋत्य कोण की कम्पाऊण्ड वाल में भी पश्चिम दिशा के साथ मिलकर बढ़ाव है। वास्तुशास्त्र के अनुसार यदि पश्चिम दिशा के साथ मिलकर नैऋत्य कोण में बढ़ाव होता तो वहां धन नष्ट होता है। जो पश्चिमी मंदिर समूह एवं परिसर की देख-रेख के लिए खर्च हो भी रहा है।


वास्तु परामर्श - खजुराहों में पर्यटकों की संख्या बढ़े इसके लिए शासन को चाहिए कि शिवसागर तालाब को मिट्टी डालकर पूरी तरह भर दिया जाए, लेकिन यदि कोई धार्मिक मान्यता है तो तालाब को मिट्टी डालकर छोटा तो कर ही दिया जाए हो सके तो ईशान कोण स्थित प्रेमसागर तालाब को बड़ा किया जाए जो कि सम्भव भी है। परिसर की चारो दिशाओं की कम्पाऊण्ड वाल को तोड़कर नई कम्पाऊण्ड वाल सीधी 90 डिग्री की बनाया जाए। पूर्व आग्नेय के द्वार को दीवार बनाकर बन्द कर मध्य पूर्व दिशा में नया प्रवेशद्वार बनाया जाए।


लक्ष्मण मंदिर से सट कर मत्तंगेश्वर मंदिर है जहां भक्त पूजा-अर्चना करने आते हैं। भक्त बिना टिकट के पश्चिमी मंदिर समूह में प्रवेश न कर जाएं इस कारण आग्नेय कोण में परिसर की कम्पाऊण्ड वाल इस प्रकार बनी है कि इस मंदिर को अलग कर दिया गया है। नई कम्पाऊण्ड वाल का निर्माण मत्तंगेश्वर मंदिर को भी पश्चिमी मंदिर परिसर में शामिल करते हुए करना चाहिए। रोजाना आने वाले भक्तों के दर्शन करने के लिए मत्तंगेश्वर मंदिर में दक्षिण आग्नेय से दरवाजा बना देना चाहिए। उपरोक्त वास्तुनुकूल परिवर्तन (जिन्हें करना सम्भव भी है) करने से निश्चित ही पर्यटकों की संख्या में भारी वृद्धि हो जाएगी यह तय है।


वास्तुगुरू कुलदीप सलुजा
thenebula2001@gmail.com

 


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