मनुष्य की असल कसौटी है व्यवहार

punjabkesari.in Thursday, Nov 09, 2017 - 11:43 AM (IST)

राजा एलैक्जेंडर  अपने देश की आंतरिक दशा जानने के लिए वेश बदलकर जाया करते थे। एक दिन वह ऐसी जगह जा पहुंचे जहां से वापसी का रास्ता उन्हें मालूम नहीं था। वहां उन्होंने किसी हवलदार को सरकारी वर्दी पहने देखा तो उससे पूछा, ‘‘महोदय, मुझे शहर के चौक का रास्ता बता दीजिए।’’ हवलदार अकड़ कर बोला, ‘‘मूर्ख, मैं सरकारी हाकिम हूं। मेरा काम रास्ता बताना नहीं है।’’ राजा ने नम्रता से पूछा, ‘‘महोदय, यदि सरकारी आदमी ही किसी यात्री को रास्ता बता दे तो कोई हर्ज नहीं है। वैसे क्या आप सिपाही हैं?’’

 


हवलदार बोला, ‘‘नहीं, उससे ऊंचा।’’ राजा बोले, ‘‘तब क्या नायक हैं?’’ हवलदार बोला, ‘‘उससे भी ऊंचा।’’ राजा बोले, ‘‘हवलदार हैं?’’ हवलदार बोला, ‘‘हां, पर तू इतनी पूछताछ क्यों कर रहा है?’’ राजा ने कहा, ‘‘मैं भी सरकारी आदमी हूं।’’ हवलदार ने पूछा, ‘‘क्या तुम नायक हो?’’ राजा बोले, ‘‘नहीं, उससे ऊंचा।’’ हवलदार बोला, ‘‘हवलदार हो?’’ राजा बोले, ‘‘उससे भी ऊंचा।’’ ‘‘दारोगा।’’ राजा बोले, ‘‘उससे ऊंचा।’’ हवलदार बोला, ‘‘कप्तान?’’ राजा, ‘‘उससे भी ऊंचा।’’

 


अब हवलदार घबराने लगा। उसने पूछा, ‘‘आप मंत्री जी हैं?’’ राजा ने कहा, ‘‘भाई बस एक सीढ़ी और बाकी।’’ अब हवलदार ने गौर से देखा तो पता चला कि यह तो राजा एलैक्जेंडर हैं। उसके होश उड़ गए। वह राजा के पैरों में गिर पड़ा और अपने अपराध की क्षमा मांगने लगा। राजा एलैक्जेंडर ने मीठी वाणी में कहा, ‘‘भाई तुम पद की दृष्टि से कुछ भी हो, परंतु व्यवहार की कसौटी पर बहुत नीचे हो, जो जितना नीचे होता है, उसमें उतना ही अहंकार होता है और वह उतना ही अकड़ता है। यदि ऊंचा बनना चाहते हो तो पहले मनुष्य बनो। सहनशील और नम्र बनो। अपनी ऐंठ कम करो क्योंकि तुम जनता के सेवक हो।’’ हवलदार को अपनी गलती समझ आ चुकी थी।
 


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