तिलक लगाते या लगवाने से पहले रखें ध्यान, जानें कौन सी उंगली देती है क्या लाभ

punjabkesari.in Tuesday, Mar 07, 2017 - 12:03 PM (IST)

मानव के तिलक न लगाने से किसी भी प्रकार से पूजा-पाठ व विभिन्न मान्यताओं के मुताबिक सूने मस्तिष्क को शुभ नहीं माना जाता। मानव जीवन में तिलक का अद्वितीय महत्व है । तिलक के लगाने से अथवा लगवाने से जीवन में यश वृद्धि, संतान लाभ, ज्ञान की वृद्धि, मनोबल का बराबर बरकरार रहना, मां सरस्वती और मां लक्ष्मी की कृपा दिनों-दिन बराबर बनी रहती है । मानव अन्य प्रकार से भी बराबर लाभान्वित होता रहता है । चंदन दो प्रकार का होता है। प्रथम लाल चंदन व द्वितीय सफेद चंदन- ये दोनों प्रकार के चंदन खुशबूनुमा वृक्ष की लकड़ी के होते हैं। 

 

शास्त्रों के विशेष नियमानुसार बिना तिलक दैनिक संध्या पाठ-पूजन, गुरु-दर्शन, देव पूजन व देव दर्शन, पूजन और अर्क व तर्पण इत्यादि को निषेध माना जाता है । यदि याचक के पास वर्तमान में ऊपर लिखित कोई भी सामग्री नहीं हो तो शुद्ध पवित्र जल या शुद्ध पवित्र मिट्टी से भी तिलक लगाकर कार्य का शुभारंभ किया जा सकता है । इसी प्रकार तंत्र शास्त्र में मानव शरीर का तेरह भागों पर तिलक लगाने या लगवाने का नियमानुसार विधि-विधान है । समस्त तेरह भागों को संचालित करने का मुख्य कार्य मस्तक का होता है इसलिए विशेषकर माथे (भाल) पर तिलक लगाने या लगवाने की अधिकांशत: परम्परा आदिकाल से बराबर चली आ रही है जो आज तक जारी है।


तिलक लगाने या लगवाने में दाहिने हाथ की किस उंगली का महत्व है एवं इसके साथ अन्य किन उंगलियों का महत्व है जो अपने हाथ में अलग-अलग अस्तित्व प्रदान करती है? हाथ की कनिष्ठ का उंगली यानी सबसे छोटी उंगली से तिलक नहीं लगाया जाता है । प्रथम उंगली अनामिका जो कि सूर्य ग्रह की प्रदत्त उंगली है । रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र के अनुसार यह सुख-शांति प्रदान करने वाली साथ ही सूर्य देवता के समान तेजस्वी, ज्ञानार्थ, कांतिमय मानसिक शांति प्रदान करती है। द्वितीय उंगली मध्यमा उंगली है जो कि शनि ग्रह से संबंधित रहती है । यह उंगली मानव की आयु (वय) की वृद्धि प्रदान का कारक है। तृतीय उंगली तर्जनी है जो गुरु ग्रह (बृहस्पति) की प्रदत्त उंगली है । इस उंगली से तिलक लगाने से मोक्ष मिलता है यानी कि यह जीवनचक्र (आवागमन) से मुक्ति प्रदान करने वाली उंगली है । इसी कारण मृतक व्यक्ति को तिलक इसी उंगली से किया जाता है । अंतिम तिलक का अंगूठा याचक को लगाने पर विजयश्री को दर्शाता है। जगत के पालनहार भगवान शंकर व युद्ध मैदान या किसी खास अवसर पर तिलक त्रिपुण्ड द्वारा किया जाता है। 


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