तेज बुद्धि अौर महान व्यक्तित्व के स्वामी थे विवेकानंद जी, युवाअों में पैदा की नई जागृति

punjabkesari.in Sunday, Aug 06, 2017 - 12:53 PM (IST)

ऐसे संत पृथ्वी पर कभी-कभार ही जन्म लेते हैं जो मात्र अपनी वाणी के जादू के बल पर जन-जन में एक नवीन जागृति का संचार करते हों। स्वामी विवेकानंद ऐसे ही एक महान नाम हैं, जिससे भारत का प्रत्येक युवा भली-भांति परिचित है। श्री रामकृष्ण परमहंस के सबसे प्रिय शिष्य स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को एक कायस्थ परिवार में हुआ था। वह अपने माता-पिता की छठी संतान थे। स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेंद्र दत्त था। बचपन से ही उनका ध्यान आध्यात्मिक क्रिया कलापों में रहता था, इसलिए उन्होंने 1882 में दक्षिणेश्वर काली मंदिर में श्री रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु माना। 

स्वामी विवेकानंद धर्म को मानते थे लेकिन धार्मिक कर्मकांड और पौराणिक व्याख्यानों को महत्व नहीं देते थे। अपने गुरु के मार्गदर्शन में उन्होंने लोगों को यह संदेश दिया कि ईश्वर है लेकिन वह मंदिर-मस्जिद में निवास नहीं करता बल्कि संसार के हर प्राणी की आत्मा में बसता है। उन्होंने लोगों को धर्म में आस्था बढ़ाने के लिए कर्मकांड से दूर रहकर पूर्ण समर्पण और त्याग का मार्ग दिखाया। 19वीं शताब्दी में वह सबसे बड़े ऐसे आध्यात्मिक संत के रूप में उभरे जिन्होंने अपनी ओजस्वी वाणी के बल पर जन जागृति फैलाई। 1 मई, 1893 में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना करके युवाओं को एक नया मंत्र दिया। 

19वीं सदी के अंतिम दशक में भारत के साथ ही अमेरिकी युवाओं में भी उनकी छवि एक प्रेरणा पुरुष के रूप में उभरी। स्वामी विवेकानंद कुशाग्र बुद्धि के व्यक्ति थे। अपनी ओजस्वी वाणी, महान व्यक्तित्व और पूर्वी व पश्चिमी सभ्यताओं, संस्कृति के बारे में गहरे ज्ञान ने उन्हें भारत के अलावा विश्व के अन्य देशों में भी लोकप्रिय बना दिया। अपनी तेज बुद्धि के बल पर वह किसी भी विषय पर बिना रुके घंटों भाषण दिया करते थे। सिर्फ एक बार पढ़ने के बाद ही उन्हें सैंकड़ों पन्नों की पुस्तक कंठस्थ याद हो जाती थी। उनकी चार प्रमुख कृतियां ‘ज्ञानयोग’, ‘भक्तियोग’, ‘कर्मयोग’ और ‘राजयोग’ हैं। युवाओं के यह प्रेरणास्रोत मात्र 39 वर्ष की अल्पायु में 1902 में सबको छोड़कर चले गए लेकिन आज भी युवाओं और कर्मयोगियों में अपनी वाणी की शक्ति से अमर हैं।


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