जिन-शासन गौरव, घोर तपस्वी स्वामी श्री रूप चंद जी महाराज

punjabkesari.in Saturday, Mar 10, 2018 - 04:07 PM (IST)

महापुरुषों की गौरव गाथाएं यूं ही न तो लिखी जाती हैं, न सुनी जाती हैं और न ही गाई जाती हैं। वास्तव में उनके जीवन में तप और त्याग का जो आलम्बन होता है वही बरबस सबको अपनी ओर आकर्षित करता है। जिन-शासन गौरव, घोर तपस्वी स्वामी श्री रूप चंद जी महाराज के जीवन की इन महान प्रवृत्तियों ने उन्हें जन-जन का कंठहार बना दिया था। 


स्वामी श्री रूप चंद जी महाराज का जन्म 1811 ई. लुधियाना में उनके ननिहाल में हुआ। इनके पूज्य पिता का नाम श्री अमोलक राय ओसवाल और पूज्य माता का नाम था-श्रीमती मंगला देवी था। ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ वाली उक्ति आप पर चरितार्थ हुई। जन्म से ही आप धीर और गंभीर थे। पूर्व जन्मों के संस्कारों के कारण आपकी आत्मा में वैराग्य की तरंगें उठने लगीं और यह भौतिक संसार नश्वर प्रतीत होने लगा। आपने पूज्य गुरुदेव श्री नंद लाल जी महाराज के चरणों में बड़ौदा में 1837 ई. में 26 वर्ष की आयु में मुनि दीक्षा अंगीकार की। आप साधना के अपने अभीष्ट मार्ग पर चल पड़े। 


‘दशवैकालिक सूत्र’ में कहा गया है कि जिस प्राणी का मन अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म में लगा रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। स्वामी श्री रूप चंदजी महाराज का मन उक्त धर्म में लगा रहता था। अत: वह जन-जन के वंदनीय बन गए। आप स्तुति और निंदा में प्राय: मौन रहते थे और लोक कल्याण की भावना आपके जीवन का ध्येय बन गई थी। आपने अपने तपस्वी जीवन में 42 चातुर्मास किए। इन चातुर्मासों में औघड़ संन्यासी का उद्धारकिया और सहस्त्रों लोगों को कुव्यसन मुक्त किया। आपका जीवन चमत्कारी था और सबसे बड़ा चमत्कार था संयम एवं तप की सम्पदा। जीवन भर आपने अपना कोई शिष्य नहीं बनाया और त्याग का सम्बल लेकर सिंह की भांति विचरण करते रहे। आपका दीक्षा दिवस 11 मार्च 2018 को जगराओं तहसील के सामने समाधि स्थल पर श्रद्धापूर्वक मनाया जा रहा है।


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