श्रीमद्भगवद्गीता: आपको भी जानते हैं श्रीकृष्ण, जानें क्या छुपा है भविष्य के गर्भ में

punjabkesari.in Monday, Dec 04, 2017 - 02:16 PM (IST)

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप
व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद 
अध्याय 7: भगवत ज्ञान


वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन। भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन।।26।।

 

अनुवाद एवं तात्पर्य : हे अर्जुन! श्री भगवान होने के नाते मैं जो कुछ भूतकाल में घटित हो चुका है, जो वर्तमान में घटित हो रहा है और जो आगे होने वाला है, वह सब कुछ जानता हूं। मैं समस्त जीवों को भी जानता हूं, किन्तु मुझे कोई नहीं जानता। यहां पर साकारता तथा निराकारता का स्पष्ट उल्लेख है। यदि भगवान कृष्ण का स्वरूप-माया होता, जैसा कि मायावादी मानते हैं, तो उन्हें भी जीवात्मा की भांति अपना शरीर बदलना पड़ता और विगत जीवन के विषय में सब कुछ विस्मरण हो जाता। 


कोई भी भौतिक देहधारी अपने विगत जीवन की स्मृति बनाए नहीं रख पाता, न ही वह भावी जीवन के विषय में या वर्तमान जीवन की उपलब्धि के विषय में भविष्यवाणी कर सकता है। अत: वह यह नहीं जानता कि भूत, वर्तमान तथा भविष्य में क्या घट रहा है। भौतिक कल्मष से मुक्त हुए बिना वह ऐसा नहीं कर सकता।


भगवान कृष्ण स्पष्ट कहते हैं कि वह यह भली-भांति जानते हैं कि भूतकाल में क्या घटा, वर्तमान में क्या हो रहा है और भविष्य में क्या होने वाला है, लेकिन सामान्य मनुष्य ऐसा नहीं जानते हैं। 


चतुर्थ अध्याय में हम देख चुके हैं कि लाखों वर्ष पूर्व उन्होंने सूर्यदेव विवस्वान को जो उपदेश दिया था वह उन्हें स्मरण है। कृष्ण प्रत्येक जीव को जानते हैं, क्योंकि वे सबों के हृदय में परमात्मा रूप में स्थित हैं। किन्तु उनके प्रत्येक जीव के हृदय में परमात्मा रूप में स्थित होने तथा श्रीभगवान के रूप में उपस्थित रहने पर भी अल्पज्ञ श्री कृष्ण को परमापुरुष के रूप में नहीं जान पाते, भले ही वे निर्विशेष ब्रह्म को क्यों न समझ लेते हों। 
नि:संदेह श्री कृष्ण का दिव्य शरीर अनश्वर है। वे सूर्य के समान हैं और माया बादल के समान है। भौतिक जगत में हम सूर्य को देखते हैं, बादलों को देखते हैं और विभिन्न नक्षत्र तथा ग्रहों को देखते हैं। कोई बादल इन सबों को आकाश में अल्पकाल के लिए ढक सकता है, किन्तु यह आवरण हमारी दृष्टि तक ही सीमित होता है। 


सूर्य, चंद्रमा तथा तारे सचमुच ढके नहीं होते। इसी प्रकार माया परमेश्वर को आच्छादित नहीं कर सकती। वे अपनी अंतरंगा शक्ति के कारण अल्पज्ञों को दृश्य नहीं होते। जैसा कि इस अध्याय के तृतीय श्लोक में कहा गया है कि करोड़ों पुरुषों में से कुछ ही सिद्ध बनाने का प्रयत्न करते हैं और सहस्रों ऐसे सिद्ध पुरुषों में से कोई एक भगवान कृष्ण को समझ पाता है। 


भले ही कोई निराकार ब्रह्म या अंतर्यामी परमात्मा की अनुभूति के कारण सिद्ध हो ले, किन्तु कृष्णभावनामृत के बिना वह भगवान श्रीकृष्ण को शायद ही समझ पाए। 

(क्रमश:)


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