युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को करवाया था कर्तव्याभास

punjabkesari.in Friday, Nov 03, 2017 - 04:13 PM (IST)

कुरुक्षेत्र में पार्थसारथि भगवान श्रीकृष्ण धनुर्धर अर्जुन का रथ हांक ले आए थे। पांडवों और कौरवपुत्रों की विशाल चतुरंगिणी सेनाएं दोनों ओर आमने-सामने खड़ी थीं। कौरव सेना का नेतृत्व महाबली भीष्म पितामह कर रहे थे और पाण्डवों ने व्यूह रचना का भार द्रुपद राज के पुत्र धृष्टद्युम्न को सौंपा। दोनों और से अनेक प्रकार की व्यूह-रचनाएं की गई थी। रणभोरियां बजने लगी, शंख-ध्वनि के गगनभेदी उद्धोष से आकाश गूंज उठा। महाबली अर्जुन ने अपना दिव्य गांडीव नामक धनुष हाथ में ले लिया और युद्ध के लिए समुद्धत कौरवों की ओर देखा। कुरुक्षेत्र में अपने स्वजनों को देखकर अर्जुन शोक और ग्रस्त हो गए और गांडीव को अलग रखकर पिछले भाग में हाथ जोड़कर बैठ गए, तब भगवान ने शरणागत अर्जुन को उद्बोधित करते हुए जिस कर्तव्य-मार्ग, ज्ञानमार्ग और भक्ति मार्ग का उपदेश दिया, वहीं उपदेश गीता-शास्त्र के नाम से विख्यात है। श्री भगवान के श्रीमुख से निकली यह दिव्य वाणी प्राणिमात्र के वास्तविक कल्याण के लिए अन्यतम साधन है। श्रीमद्भगवद्गीता भगवान की ग्रंथ मूर्ति है। इसके प्रति अत्यन्त श्रद्धा, भक्ति, प्रेम एवं विश्वास रखना चाहिए।


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