हरियाणा दिवस पर विशेष: संस्कृति और साहित्य के आदि स्रोत का करें दर्शन

punjabkesari.in Wednesday, Nov 01, 2017 - 08:13 AM (IST)

वीर भूमि हरियाणा एक पुनीत भू-प्रदेश है। ‘इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इंडिया’ के अनुसार प्राचीन काल में पश्चिमोत्तर सीमा पर घग्गर, दक्षिण-पश्चिम तथा दक्षिण सीमा पर बागड़ और ढूंढोती का खादर और पूर्वी सीमा पर नार्द्रक प्रदेश के मध्य का क्षेत्र हरियाणा कहलाता है। ये सीमाएं विभिन्न कारणों से समय-समय पर परिवर्तित होती रहीं। ऋग्वेद में एक मंत्र के अंत में ‘रजते हरियाणे’ पद भी आया है। एक शिलालेख में ‘हरियाणक’ शब्द आया है जिससे इस नाम के प्राचीन होने का प्रमाण मिलता है। यह एक विशुद्ध नाम है जिसका उल्लेख अनेक प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। 


इस प्रदेश के नदी-नालों, पर्वतों एवं भूखंडों के नाम तक भी साथ भारतीय संस्कृति के गहरे संबंध को प्रकट करता है। इस प्रदेश का वर्णन मनुस्मृति, महाभाष्य, बोयण वर्णसूत्र, वशिष्ठ धर्मसूत्र और विनय पिटिक तथा महाभारत आदि ग्रंथों में मिलता है। यहीं ऋषियों ने वैदिक ऋचाओं का गान सरस्वती नदी के तट पर किया। इस प्रदेश के प्रत्येक स्थान का नाम भी भारतीय संस्कृति एवं देवी-देवताओं से किसी न किसी प्रकार संबंधित है। सिरसा नामक स्थान का वर्णन महाभारत में हुआ है। रोहतक का नाम महाभारत में रोहितक है। कुछ विद्वान इसको रोहिताश्वपुर के नाम से भी पुकारते हैं। गुडग़ांव ही गुरुग्राम है। 


इसके संबंध में कहा जाता है कि गुरु द्रोणाचार्य ने इसे द्रुपद से छीनकर लिया था। इस स्थान का वर्णन महाभारत में अनेकों बार हुआ है। करनाल का नाम दानवीर कर्ण से संबंधित है जो प्रात:काल ब्राह्मणों को स्वर्णदान देते थे।


इस प्रदेश में कुरुक्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय ख्याति का महान् तीर्थ है। इसी जिले के थानेसर के स्थान पर ब्रह्मा जी ने और स्थाणु (शंकर) ने तप किया था। अम्बाला का नाम धृतराष्ट्र की माता अम्बालिका के नाम पर रखा गया तथा जींद का वर्णन महाभारत में जयंत नगर के रूप में आता है। यहां जयंती देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। इस भूमि पर यमुना, मारकंडा एवं सरस्वती जैसी पुण्य सलिला सरिताएं प्रवाहित होती रही हैं। इस प्रदेश ने श्रीमद् भगवतगीता जैसा अमर ग्रंथ दिया है, जो सारे संसार का प्रेरणा स्रोत रहा है। एक प्राचीन शिलालेख में हरियाणा को पृथ्वी का स्वर्ग कहा गया है।


देशोअतिस्त हरियानाख्य पृथ्वियांस्वर्गसन्निभ:। 


मनु महाराज ने हरियाणा को ब्रह्मर्षियों का देश कहा है। यहां ऋषि विश्वामित्र एवं वशिष्ठ के पवित्र आश्रम रहे हैं। जहां महाभारत में इसकी अनेक स्थानों पर गौरवगाथा वर्णित है, वहीं वैदिक वाङमय में भी इस प्रदेश की गौरवपूर्ण संस्कृति का उल्लेख है। गुप्त युग की पुस्तक ‘पादताडिसकम्’ में भी इस प्रदेश के रोहतक जिले के योद्धाओं तथा बांगरू गीतों का वर्णन हुआ है।


इस प्रदेश के प्रत्येक स्थान पर प्राप्त होने वाले दुर्गा एवं शिव मंदिरों के खंडहर तथा टीले इसके गौरवपूर्ण अतीत के प्रमाण हैं। यहां स्थान-स्थान पर मंदिरों का होना यहां के लोगों की भक्ति भावना का परिचय देता है। यहां के निवासी भगवान शिव के उपासक मानेे जाते हैं। इसलिए यहां महादेव के मंदिर भारी संख्या में हैं। यह भी मान्यता है कि ‘हर-हर महादेव’ का जयघोष इस प्रदेश की देन है। महाभारत का धर्म युद्ध इस प्रदेश में लड़ा गया। कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र मानकर लोग इसमें निष्ठा रखते हैं।


इस प्रदेश की यह विशेषता आरम्भ से ही रही है कि जहां एक ओर यहां भारतीय संस्कृति के प्रति अगाध श्रद्धा विद्यमान रही है तो दूसरी ओर यह प्रदेश वीर योद्धाओं की जननी रहा है। यहां वीरों ने शत्रुओं का डटकर सामना किया है तथा देश रक्षा के लिए बड़े से बड़े बलिदान दिए हैं। इस वीर भूमि के वीरों ने भारत के अनेक ऐतिहासिक युद्धों में शत्रुओं से लोहा लिया है। वीर हेमू, वीर चूड़ामणि, बल्लभगढ़ नरेश नाहर सिंह, राव तुला राम, अमर सेनानी राव कृष्ण गोपाल आदि महान योद्धाओं का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।


यह प्रदेश वीर भूमि होने के साथ-साथ आरम्भ से ही विद्वानों की लीलास्थली भी रहा है। अरण्यकों तथा कुछ उपनिषदों की रचना हुई। मार्कंडेय पुराण इसी प्रदेश में रचा गया, ऐसी भी मान्यता है। वैदिक साहित्य का बड़ा भाग यहां लिखा गया है। महाभारत के रचयिता महाकवि व्यास ने कुरुक्षेत्र के आसपास की नदियों, तीर्थों, सरोवरों तथा पवित्र स्थानों का विस्तार से  उल्लेख किया है। महाराज हर्षवद्र्धन ने थानेसर को अपनी राजधानी बनाकर सुंदर साहित्य की रचना की। इनके दरबारी कवि बाण भट्ट ने कादम्बरी, हर्ष चरितम् चंडीशतक तथा पार्वती परिणय लिखे। इनके एक और दरबारी कवि मयूर का भी पता चलता है। आधुनिक हिन्दी गद्य के निर्माता बाबू बालमुकुंद गुप्त, माधव प्रसाद मिश्र, व्याख्यान वाचस्पति पं. दीनदयाल शर्मा तथा पं. नेकी राम शर्मा आदि इस प्रदेश के गौरव थे।


उर्दू साहित्य के निर्माण में भी इस प्रदेश ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। मिर्जा गालिब का संबंध यहां की रियासत लोहारू के शाही घराने से रहा है। लोहारू के नवाब जियाउलद्दीन गालिब से अपनी रचनाएं ठीक करवाते थे। इन्हें कुछ रकम नजराने के रूप में मिलती थी। अलताफ हुसैन हाली और प्रसिद्ध गजलकार मखमूर देहलवी का संबध भी इसी प्रदेश से था। मसीहाई पानीपती, सैयद  अब्दुल जलील अदल, इमाम बख्श थानेसरी, दिलमीर मेवाती आदि ने भी उर्दू में सुंदर रचनाएं कीं। हरियाणवी के माध्यम से कविता करने वालों में पं. लखमीचंद्र प्रसिद्ध हैं। इन्हें इस प्रदेश का शेक्सपियर कहा जाता है। दूसरे कवि शाह मोहम्मद रमजान हैं, जिनको हादी-ए-हरियाणा  कहा जाता है। आपने फारसी में भी कई ग्रंथ लिखे। कुछ लोग आपको पहला हरियाणवी कवि और लेखक मानते हैं। इन कवियों के अतिरिक्त किशोरी लाल, दयाचंद, भीमराज, व्यास, बेदी, राधेश्याम कथावाचक आदि हैं।


हरियाणा के लोकगीत बहुत सरल एवं भावपूर्ण हैं। यहां के लोकनाट्यों (सांगों) ने इस प्रदेश की सीमा को लांघकर अन्य प्रदेशों में भी अपना प्रभाव जमा लिया है। यहां लोककथाओं, लोकोक्तियों का भी अक्षय भंडार है। इस लोकसाहित्य में यहां के रीति-रिवाजों एवं महान् परम्पराओं की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इस समृद्ध लोकसाहित्य के कारण यहां की साहित्यिक परम्पराएं परिपक्व होती रही हैं।


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