अज्ञात शक्ति के रूप में प्राप्त होते हैं, ये छोटे लेकिन महान अर्थ लिए हुए ये संकेत

punjabkesari.in Monday, Jun 12, 2017 - 07:29 AM (IST)

प्राचीन काल से ही मानव शकुन-अपशकुन का विचार करता आ रहा है। महाकवि तुलसीदास ने रामचरित मानस में ‘बैठी शगुन मनावति माता’ कहकर शकुन विचार को स्वीकार किया है। अत: शकुन शास्त्र आदिकाल से ही हमारी परम्परा का प्रचार व प्रसार पाकर जनमानस में अपना अस्तित्व बनाए हुए है। आज जीवन इतनी तीव्रता से बदल रहा है कि शकुन का विचार करने का अवसर ही नहीं मिलता, यह सत्य है, परन्तु शकुन तो जाने या अनजाने में होते ही रहते हैं और संभवत: होते भी रहेंगे।


शकुन अज्ञात शक्ति के रूप में प्राप्त होते हैं। कुछ शकुन मनुष्य स्वयं उत्पन्न करता है और कुछ शकुन देव कृपा से स्वयं ही घटित होते हैं। मनुष्य के द्वारा बनाया गया शकुन शुभता के लिए ही होता है जबकि स्वयं घटित होने वाला शकुन मनुष्य की इच्छा पर निर्भर नहीं होता। अब न मानने वालों को तो यह कहने में कोई आपत्ति नहीं होगी कि नाक है तो छींक आएगी ही। 


बिल्ली इधर-उधर घूमने वाला पशु है, वह सड़क से गुजरेगी ही। कौवा पक्षी है तो उसका काम ही कांव-कांव करना है तो वह क्यों नहीं करेगा। आदि-आदि। न मानने से भी शकुन का फल घटित होने से रुकेगा नहीं। शकुन के उपस्थित होने का तात्पर्य है कि कुछ न कुछ फल घटित होगा ही।


मौसम विज्ञान विभाग आधुनिक विज्ञान की देन है। अरबों रुपए का व्यय होता है, तब एक प्रयोगशाला बनती है। इसके पश्चात भी अरबों रुपए व्यय करके भी मौसम की शत-प्रतिशत सटीक भविष्यवाणी नहीं कर पाता तो एक चिडिय़ा धूल को अपने ऊपर उछाल-उछाल करके वर्षा का संकेत दे देती है। 


ज्योतिषी से प्रत्येक विचार करवा कर यात्रा के लिए प्रस्थान करते समय अगर बिल्ली रास्ता काट जाए तो ज्योतिषी के विचार धरे के धरे रह जाते हैं। इस कटु सत्य को एक ज्योतिषी होने के कारण मैं स्वयं भी स्वीकार करता हूं।


घर से वर या वधू के विदा होने के उपरांत घर वाले अपने घर के किसी भी व्यक्ति को उस दिन सिर नहीं धोने देते। दामाद के विदा होने के उपरांत उस दिन घर में झाड़ू नहीं लगाई जाती। यह सब क्यों? क्या यह हमारा पिछड़ापन है? संभवत: विद्वान वर्ग स्वीकार करेगा कि यह हमारा पिछड़ापन है, जिसके ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं है या वह जिम्मेदारी को स्वीकार नहीं करता परन्तु यह अशुभ होता है, इसलिए सिर नहीं धोते या जल आदि नहीं बहाते हैं।

                   
घर से यात्रा के लिए जाते समय द्वार पर परिवार की कन्या या सुहागिन स्त्री मिट्टी के पात्र में जल लेकर खड़ी हो जाती है। किसी भी शुभ कार्य के लिए यात्रा पर जाते समय दही या मिष्ठान खाकर ही जाना शुभ माना जाता है। ये बातें बहुत छोटी हैं परन्तु इनके अर्थ महान हैं। 


आज का अति उन्नत विज्ञान पूर्ण रूप से एक शकुन के शुभ होने पर ही टिकता है और शकुन अशुभ हो तो ध्वस्त ही होता है। हर कार्य के प्रारंभ में शकुन घटित होता ही है। उसे हम चाहे मानें या न मानें।


प्राचीनकाल से ही मनुष्य का विश्वास शकुन को मानता आ रहा है हालांकि आजकल अनेक सभ्य कहलाने वाले लोग इसे अंधविश्वास कहते हैं। इस पर भी उन्हीं को कभी-कभी कहते सुना जाता है कि भाई बाईं आंख फड़क रही है- यह बात कह कर दबे स्वर में क्या वे शकुन की बात नहीं कहते? आंख फड़कना क्या है? व्यापारी, व्यापार के प्रारंभ में उधार सामान नहीं देते-यह क्या है? बिल्ली रास्ता काटे, कोई छींके, कौवा कांव-कांव करे, यह क्या है? यह शकुन है।


हमारे देश में नि:संदेह शकुन के नाम पर कुछ चेहरे सिकुड़ जाते हैं परन्तु वे आधुनिक कहलाने वाले लोग भी इस बात को मना नहीं कर सकते चाहे वे विदेशियों के सम्पर्क में रहे हों। विदेशों में भी घोड़े की नाल को मुख्य द्वार पर टांगा जाता है। यह शकुन इतना प्रचलित हुआ कि अब हमारे घरों में भी काले घोड़े की नाल को टांगा जाता है जबकि यह शकुन भारत की ही देन हैं।


कोई भी कार्य प्रारंभ करते समय स्वाभाविक रूप में हमारी यह इच्छा बलवती हो उठती है कि मेरा यह कार्य सफल होगा भी या नहीं? इसी जिज्ञासा का उत्तर शकुन से मिलता है। पशु-पक्षी के स्वर, अंगों का फड़कना आदि शकुन माने जाते हैं। इस शकुन विद्या को महाभारत, रामायण आदि ग्रंथों में भी दोहराया गया और इसके महत्व को स्वीकार किया गया। शकुन विषय की एक सूचना है। शुभ शकुन से लाभ उठाएं और अशुभ शकुन का उपाय करके उसकी अशुभता से सुरक्षित हो जाइए।


अंगों का फड़कना भी शकुन-अपशकुन  में महत्वपूर्ण योगदान करता है। यह शकुन शीघ्र प्रभावी होता है।

 
मान्यता है कि पुरुष का दाहिना अंग और स्त्री का बायां अंग ही शुभ होता है अत: विवरण पुरुष स्थिति में किया गया है। स्त्री जातक उस वर्णन को दाहिने के स्थान पर बायां और बाएं के स्थान पर दाहिना पढ़ करके वैसा ही फल समझे जैसा लिखा गया है।
इस  लेख में यथासंभव लाभदायक शकुन प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। कौवे की स्थिति और उसका स्वर बहुत ध्यान देने योग्य है। 


कहीं जाने के लिए निकलते समय कौवा गाय पर बैठे, गोबर पर बैठे या हरे पत्ते के वृक्ष पर बैठे तो देखने वाले को कोई स्वादयुक्त भोजन प्राप्त होता है। कहीं जाते समय कौवा चोंच में तिनका उठाए दिखे तो लाभ ही लाभ की आशा। कौवे धन की स्थिति बताते हैं तो रुग्ण व्यक्ति को उठने को भी कहते हैं।


शकुन की बात करने पर नाखूनों का स्मरण स्वयं हो जाता है और प्राय: देखने में आता है कि किसी-किसी के नाखूनों पर काले या सफेद चिन्ह प्रकट होते हैं और कुछ समय के पश्चात स्वयं लुप्त भी हो जाते हैं। ये भी शकुन हैं जो भविष्य की सूचना देते हैं। 


नाखूनों में काले चिन्ह प्राय: अशुभ फल ही देते हैं अत: केवल सफेद चिन्हों का ही विचार किया जाना चाहिए।


आपको जब कभी भी नाखून पर सफेद चिन्ह मिलें तो चिंता की कोई बात न मान करके समय से लाभ उठाना चाहिए। अगर काला चिन्ह मिले तो दुर्भाग्य का सूचक होता  है। अपने प्रभु आदि का स्मरण करके उन की शरण में ही जाना चाहिए।


कोई उल्लू किसी के भी भवन पर बैठना प्रारंभ कर दे तो वह शीघ्र ही उजड़ जाता है। अगर किसी घर की छत पर बैठ कर बोलता है तो उस घर के स्वामी अथवा परिवार के सदस्य की मृत्यु होती है।  किसी के मुख्य द्वार पर उल्लू  3 दिन तक लगातार रोता है तो उसके घर में चोरी होती है।


रात्रि में यात्रा कर रहे व्यक्ति को कोई उल्लू ‘होम-होम’ की ध्वनि करता मिले तो शुभ फल मिलता हैै।


उल्लू का बाईं ओर बोलना व दिखाई देना शुभ रहता है, यात्री के पीछे की ओर दिखाई दे तो कार्य में सफलता लेकिन दाएं देखना और बोलना प्राय: अशुभ फल देता है।
 


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