मकर लग्न के जातकों को उत्तम फल प्रदान करते हैं शनि, इन्हें भी मिलेगा लाभ

punjabkesari.in Tuesday, Jan 02, 2018 - 01:00 PM (IST)

मकर लग्न शनि द्वारा शासित होता है। यह दक्षिण दिशा की स्वामी, पृथ्वी तत्व की सौम्य परंतु चर राशि है। यहां पर मंगल उच्च होता है और मकर के 28 अंश पर परमोच्च होता है। बृहस्पति मकर राशि में नीचस्थ होता है तथा 5 अंश पर परम नीच का होता है। यह स्त्री राशि है तथा पीछे से इसका उदय होने के कारण इसे पृष्ठोदय कहते हैं। यह कालपुरुष में पैरों के घुटनों पर अपना प्रभाव डालती है। एक विडम्बना यह है कि मंगल मकर राशि में उच्च का होता है, जबकि मकर राशि का स्वामी शनि मेष राशि अर्थात मंगल की राशि में नीच का होता है। मेष राशि में स्थित शनि यदि मकर राशिगत मंगल पर दृष्टि डालेगा तो मंगल भी शनि को देखेगा और दोनों ग्रहों में विनिमय दृष्टि संबंध के साथ-साथ विनियम परिवर्तन योग भी होगा। ऐसी स्थिति में शनि नीचस्थ और मंगल उच्चस्थ होगा। ऐसे में फल प्रतिपादित करने में पर्याप्त संयम रखना चाहिए।


मकर लग्न के जातक के शरीर का निचला भाग दुबला-पतला तथा  निर्बल होता है। जातक कद का लंबा होता है परंतु उसके शरीर का गठन कठिन रूप का होता है। कफ वात प्रकृति प्रधान होता है। बड़ा उत्साही तथा परिश्रमी होता है। आंखों की भौंहों पर बड़े-बड़े कड़े बाल होते हैं। सीने पर भी इसी तरह के बाल होते हैं। उसका सिर कुछ बड़ा तथा सीना चौड़ा होता है। नाक और मुंह कुछ बड़े या चौड़े होते हैं तथा दांत बड़े होते हैं। ऐसे लोग बाद में थोड़े से झुक जाते हैं या आगे कुछ झुककर चलते हैं। यह प्राय: दुबले और बड़े गतिशील, क्रियाशील होते हैं।


मकर लग्न के जातक को जीवन की अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जातक की जो व्यक्ति हानि करता है, उससे वह बदला लेने को तत्पर रहता है। यह स्पष्ट रूप से अपना विचार प्रकट करता है, चाहे उसके विचार से किसी को मानसिक आघात ही क्यों न पहुंचे। वह सादी प्रकृति का होता है। वह प्रत्येक कार्य सावधानीपूर्वक तथा विचार करने के पश्चात करता है। पुण्य कर्म में रुचि रखता है तथा ईश्वर में उसकी पूर्ण निष्ठा होती है। वह अपने अधीनस्थ लोगों से कार्य लेने में निपुण होता है। अपने काम के लिए विशेष रुचि लेता है और पूरी लग्न के साथ करता है। दूसरों को ठगने में जातक की अभिरुचि होती है। अपना काम निकालने के लिए वह कुछ भी कर सकता है। 


वह बहुत उच्चाभिलाषी होता है तथा अपने समूह में प्रमुख स्थान रखने के लिए प्रयत्नशील रहता है। उसका अपना अलग दबदबा हो, ख्याति चारों और फैले तथा सभी उसके कार्यों की प्रशंसा करें, इसके लिए वह उद्यम करता है। स्त्री पक्ष से ऐसा जातक सदैव दुखी रहता है तथा कई बार वैवाहिक विषमताओं का शिकार होना पड़ता है। मकर लग्न का जातक अपने आपको परिस्थिति के अनुसार बदल सकने में या उसी प्रकार अपने आपको ढाल लेने में सक्षम होता है। उसे धन की समुचित व्यवस्था करने में प्राय: असफलता का मुंह देखना पड़ता है। उसे बाहरी दिखावट या चमक में बड़ा विश्वास होता है। किसी भी कार्य के लिए अथक परिश्रम करके भी उसे पूरा कर डालना इसकी विशेषता होती है। यदि मंगल स्वगृही न होकर कहीं और संस्थित हो तो जातक अस्थिर विचार और स्वभाव का होता है। ऐसे लोगों का अपनी जिह्वा पर बिल्कुल भी नियंत्रण नहीं होता। वह हर तरह की बात करने या गप हांकने में सक्षम होते हैं। इनकी जुबान से प्राय: अवांछित बातें भी निकल जाती हैं। मकर लग्न के लिए शुक्र पंचमेश और लग्नेश होने के कारण योगकारक ग्रह होता है। शुक्र जिस भाव में स्थित होता है, उसी की वृद्धि करता है। शनि लग्नेश और द्वितीयेश होता है। 


साधारणत: शनि को लग्न में अशुभ माना जाता है, परंतु शनि यदि स्वराशिगत होकर या अपनी उच्च राशि तुला में हो तो यश योग की स्थापना होती है, जो जातक के व्यक्तित्व को अति प्रभावशाली और विशिष्ट बनाती है और जातक एक उच्च कक्षा का व्यक्ति होता है। शनि बृहस्पति द्वारा शासित राशियों अर्थात धनु और मीन में भी उत्तम फल प्रदान करता है।


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