आप भी करें भारत में खारे पानी की सबसे बड़ी झील की रोमांचकारी यात्रा

punjabkesari.in Saturday, May 13, 2017 - 11:28 AM (IST)

लावण्य का अर्थ है नमकीन सूरत जिसके चेहरे पर नूर-नमक हो। वह लावण्यमय सांभर जो भारत में नमक की झील के कारण जाना-पहचाना जाता है, अपने भीतर और भी कई आकर्षण छिपाए हुए है। हाल ही में सांभर का अनजान खजाना देखने का मौका मिला। ‘सांभर सॉल्ट्स’ की खुली रेल की चार बोगियों में लगभग 80 कुर्सियां लगी हुई थीं। ‘सांभर साल्टस’ की अपनी रेल, अपनी पटरियां पीले रंग का साफ-सुथरा डीजल इंजन और मार्गदर्शन के लिए साथ में उनके कुछ कर्मचारी, रेल के दोनों ओर नीचे की तरफ देखने पर नमक की पतली जमी हुई परत और दोनों ओर की पाल पर जमा हुआ नमक, बर्फ की तरह लग रहा था।
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लगभग 7 किलोमीटर चलने के बाद बाईं तरफ झील का पानी दिखाई देने लगा। यहां रेल को रोक लिया गया। नीचे उतर कर धीरे-धीरे आगे बढ़े, अचानक, झील में सैंकड़ों लम्बी-लम्बी पतली-पतली टांगों की परछाइयां नजर आने लगीं। काफी संख्या में सफेद और गुलाबी पंखों वाले फ्लेमिंगोज पानी में से ‘एलगी’ काई चुरा रहे थे। ऐसे गर्म मौसम में जब झील का आधे से ज्यादा पानी सूख चुका था इन विदेशी  पक्षियों को देख कर हम आश्चर्य चकित रह गए। हम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे, फ्लेमिंगोज को शायद हमारे आने का एहसास हो जाता था और वे आगे बढ़ जाते थे। हम काफी देर तक पक्षियों की आकर्षक छाया देखने के लिए मंत्रमुग्ध खड़े रहे। लौटकर अपनी खुली रेल में बैठकर वापस सर्किट हाऊस पहुंचे। सांभर का सर्किट हाऊस लगभग 180 वर्ष पुराना होते हुए भी अच्छी हालत में है। सामान ऊपर पहुंचाने के लिए लिफ्ट भी लगी है। यहां के ऊंचे-ऊंचे दरवाजे, बड़ी गोल मेज, कुर्सियां और बड़े पुराने पंखे, सभी कुछ साफ-सुथरा और व्यवस्थित है।
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इसी सर्किट हाऊस के सामने सांभर सॉल्टस का म्यूजियम है, जिसकी स्थापना कला मुगल तथा अंग्रेजी कला का मिश्रण है। यहीं पर नमक से बनाया गया एक ताजमहल का सुंदर मॉडल, शीशे के बक्से में बंद है। अगले दिन कुछ विद्वानों को आमंत्रित किया गया था। जिन्होंने सांभर जिले के इतिहास तथा धार्मिक महत्व पर प्रकाश डाला। कुछ समय उनका भाषण सुनने के बाद हम सांभर का बड़ा बाजार घूमने निकल पड़े। पतली-पतली लम्बी गलियां, दोनों तरफ ऊंचाई पर दुकानें जिनमें बड़े-बड़े पुराने लकड़ी के दरवाजे लगे हैं, कुछ कपड़ों की, कुछ सुनारों की साफ सुथरी दुकानें जिन पर रंग-बिरंगी गोटे किनारी की ओढ़नियों में लिपटी महिलाएं जेवर बनवाती नजर आईं।
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आगे चल कर देखा छोटी-सी सब्जी मंडी और फिर अनाज मंडी जहां ट्रैक्टरों  पर से अनाज की बोरियां उतारी जा रही थीं। अनाज मंडी के दूसरी तरफ गली में पुरानी शेखावटी हवेलियों जैसे मकान, पेंटिंग्स और सुंदर खिड़की दरवाजों से सजे किसी दरवाजे पर ताला लगा था। यहां से सेठ लोग अधिकतर कोलकाता मुम्बई और जयपुर शहरों में व्यापार करते तथा वहीं रहते हैं। अनाज मंडी के बीच में एक बड़ा दरवाजा नजर आया जिसके बाहर ख्वाजा हिसामुद्दीन चिश्ती की दरगाह का बोर्ड लगा था। अंदर जाकर देखा तो खुले स्थान पर सुकून परस्त दरगाह नजर आई जहां न कोई खादिमों की भीड़ और न कोई फकीर पीछे लगे। ऊंचाई पर बनी यह दरगाह हजरत ख्वाजा फखरुद्दीन मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेर वाले गरीब नवाज के सबसे बड़े पुत्र हजरत ख्वाजा फखरुद्दीन अबुल खैर के साहबजादे, ख्वाजा हिसामुद्दीन की थी और हरी-पीली खुशनुमा चादर से सुसज्जित थी।

शाम का सुहाना सूर्य अस्ताचल को जाते-जाते ताक-झांक कर रहा था, लगभग नौ किलोमीटर सांभर झील की सूखी जमीन पर अंदर-अंदर होकर अन्यथा सड़क मार्ग द्वारा यही रास्ता सांभर से, मंदिर तक 23 किलोमीटर चलने के पश्चात मां शाकम्भरी का एक टापू पर स्थित मंदिर नजर आने लगा।  यह ऊंचे टीले पर पौराणिक महत्व का देवयानी तीर्थ स्थल है। देवयानी सरोवर और उसके आसपास के कुंओं में मीठा जल उपलब्ध है जबकि इसके नीचे का लम्बा चौड़ा क्षेत्र क्षारीय है। 
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सांभर में केवल मंदिर-मस्जिद ही नहीं यहां की कला भी उत्कृष्ट है। यहां की चित्रकला के नमूने भित्ति चित्रों के रूप में उपलब्ध हैं तथा यहां के प्रसिद्ध चित्रकार श्री कन्हैया जी के आकर्षक चित्रों को देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है। दिल्ली से उदयपुर, अजमेर, जोधपुर  तथा अहमदाबाद जाने वाले ब्राड गेज की हर गाड़ी सांभर के पास फुलेरा जंक्शन पर रुकती है। सांभर की प्राकृतिक सुंदरता, प्रवासी पक्षियों की उपस्थिति, सांभर साल्ट्स द्वारा खुली रेल में दृश्यावलोकन, शाकम्भरी माता का मंदिर व नालियासर मोखन्न से प्राप्त अवशेषों का महत्व सांभर को पर्यटन के मानचित्र पर उचित स्थान दिलाने के लिए काफी है। राजस्थान का पर्यटन विभाग भी सांभर को एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल बनाने में पूरी तैयारी में है।


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