परिश्रम करने से पाएंगे संपत्ति एवं सम्मान

punjabkesari.in Tuesday, Dec 05, 2017 - 09:38 AM (IST)

दुर्गादास था तो धनी किसान, किंतु बहुत आलसी था। वह न अपने खेत देखने जाता था, न खलिहान। अपनी गाय-भैंसों की भी खोज-खबर नहीं रखता था और न अपने घर के सामान की ही देखभाल करता था। सब काम वह नौकरों पर छोड़ देता था। उसके आलस और कुप्रबंध से उसके घर की व्यवस्था बिगड़ गई। उसकी खेती में हानि होने लगी। गायों के दूध, घी से भी उसे कोई अच्छा लाभ नहीं होता था।

 

एक दिन दुर्गादास का मित्र हरिश्चन्द्र उसके घर आया। हरिश्चन्द्र ने दुर्गादास के घर का हाल देखा। उसने यह समझ लिया कि समझाने से आलसी दुर्गादास अपना स्वभाव नहीं छोड़ेगा। इसलिए उसने अपने मित्र दुर्गादास की भलाई करने के लिए उससे कहा, ‘‘मित्र! तुम्हारी विपत्ति देखकर मुझे बड़ा दुख हो रहा है। तुम्हारी दरिद्रता को दूर करने का एक सरल उपाय मैं जानता हूं।’’ 

 

दुर्गादास, ‘‘कृपा करके वह उपाय तुम मुझे बता दो। मैं उसे अवश्य करूंगा।’’


हरिश्चन्द्र ने दुर्गादास को कहा कि ‘‘सब पक्षियों के जागने से पहले ही मानसरोवर पर रहने वाला एक सफेद हंस पृथ्वी पर आता है। वह दोपहर दिन चढ़े लौट जाता है। यह तो पता नहीं कि कब कहां आएगा, किंतु जो उसका दर्शन कर लेता है उसको कभी किसी की कमी नहीं होती।’’ 


दुर्गादास, ‘‘कुछ भी हो, मैं उस हंस के दर्शन अवश्य करूंगा।’’

 

हरिश्चन्द्र चला गया। दुर्गादास दूसरे दिन बड़े सवेरे उठा। वह घर से बाहर निकला और हंस की खोज में खलिहान में गया। वहां उसने देखा कि एक आदमी उसके ढेर से गेहूं अपने ढेर में डालने के लिए उठा रहा है। दुर्गादास को देखकर वह लज्जित हो गया और क्षमा मांगने लगा।

 

खलिहान से वह घर लौट आया और गौशाला में गया। वहां का रखवाला गाय का दूध दुह कर अपनी स्त्री के लोटे में डाल रहा था। दुर्गादास ने उसे डांटा। घर पर जलपान करके हंस की खोज में वह फिर निकला और खेत पर गया। उसने देखा कि खेत पर अब तक मजदूर आए ही नहीं थे। वह वहां रुक गया। जब मजदूर आए तो उन्हें देर से आने का उसने उलाहना दिया। इस प्रकार वह जहां गया, वहीं उसकी कोई-न-कोई हानि रुक गई।

 

सफेद हंस की खोज में दुर्गादास प्रतिदिन सवेरे उठने और घूमने लगा। अब उसके नौकर ठीक काम करने लगे। उसके यहां चोरी होना बंद हो गया। पहले वह रोगी रहता था, अब उसका स्वास्थ्य भी ठीक हो गया जिस खेत में उसे दस मन अन्न मिलता था, उससे 50 मन मिलने लगा। एक दिन दुर्गादास का मित्र हरिश्चन्द्र उसके घर आया। दुर्गादास ने कहा, ‘‘मित्र! सफेद हंस तो मुझे अब तक नहीं दिखा, किंतु उसकी खोज में लगने से मुझे लाभ बहुत हुआ है।’’


हरिश्चन्द्र हंस पड़ा और बोला, ‘‘परिश्रम करना ही वह सफेद हंस है। परिश्रम के पंख सदा उज्जवल होते हैं। जो परिश्रम न करके अपना काम नौकरों पर छोड़ देता है, वह हानि उठाता है और जो स्वयं परिश्रम करता है तथा जो स्वयं नौकरों की देखभाल करता है, वह संपत्ति और सम्मान पाता है।’’


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