भक्त कहते हैं नव वृंदावन और विद्वान नवद्वीप, जानें क्या है इस धाम की प्रीत
punjabkesari.in Monday, Mar 06, 2017 - 11:39 AM (IST)
श्रीनवद्वीप धाम, गोलोक या वृन्दावन से भिन्न नहीं है। नौ द्वीप लेकर इसकी रचना हुई है। भगवान के गोलोक धाम के दो प्रकोष्ठ हैं । एक माधुर्यमय और एक औदार्यमय। माधुर्यमय प्रकोष्ठ में नन्दनन्दन श्रीकृष्ण की नित्य लीला होती है तथा औदार्यमय प्रकोष्ठ श्रीनवद्वीप धाम में श्रीकृष्ण ही श्रीमती राधाजी का भाव एवं अंग-कान्ति लेकर, श्रीगौरांग रूप से संकीर्तन-रास की लीला करते हैं। ऊर्ध्वाम्नाय महातन्त्र में भगवान महादेव देवी पार्वती को श्रीनवद्वीप धाम के बारे में बताते हुए कहते हैं , 'हे देवी! साक्षात् श्रीहरि ही श्रीगौरसुन्दर हैं। आप हमेशा नवद्वीप में ही रहते हैं। गंगा के तट पर अन्तद्र्वीप, सीमन्तद्वीप, गोद्रुमद्वीप, मध्यद्वीप, कोलद्वीप, ॠतुद्वीप, जह्नुद्वीप, मोदद्रुमद्वीप और रुद्रद्वीप, मिलकर नवद्वीप कहलाते हैं।'
श्री अनन्त संहिता के अनुसार एक बार श्रीमती राधा जी, श्रीकृष्ण को ढूंढते-ढूंढते गंगा-यमुना के मध्यभाग में आईं। वहां पर आपने अपनी इच्छा से वृक्ष-लताओं से घिरा हुआ, अनेक कुंजों से शोभायमान, अति सुन्दर स्थान का निर्माण किया। आप वहीं पर बैठ कर वेणु बजाने लगीं व श्रीकृष्ण की याद में गीत गाने लगीं। श्रीकृष्ण आपके गान से मोहित होकर वहां प्रकट् हो गए।
भगवान ने आपके भाव से प्रसन्न हो कहा, 'हे राधे ! तुम जैसी और मेरी प्रिया नहीं है। तुमने मेरे लिये जो यह स्थान बनाया है, यह उत्तम स्थान है । मैं तुम्हारे साथ रहकर इस स्थान को एक नया रूप दूंगा। मेरे भक्त इसे नव वृंदावन कहेंगे और विद्वान इसे नवद्वीप के नाम से जानेंगे। मेरी आज्ञा से सभी तीर्थ यहां वास करेंगे। यह स्थान वृंदावन की ही तरह श्रेष्ठ होगा। इस स्थान पर एक बार आने मात्र से व्यक्ति को सभी तीर्थों में जाने का फल लाभ होगा, व साथ ही साथ हमारी भक्ति भी मिलेगी। यहां आकर जो व्यक्ति तुम्हारे साथ मेरी उपासना करेंगे, उन्हें निश्चय ही हमारा नित्य-सखी-भाव प्राप्त होगा।'
श्री चैतन्य गौडिय़ा मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com
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