आ रहा है शनिदेव को मनाने का सबसे अच्छा और बड़ा दिन, ऐसे करें पूजन की तैयारी

punjabkesari.in Monday, Jun 19, 2017 - 07:29 AM (IST)

हर महीने जब सूर्य और चन्द्रमा एक राशि में आते हैं तो अमावस होती है तथा वारानुसार जब उस दिन शनिवार हो तो वह शनिश्चरी अथवा शनि अमावस कहलाती है। वैसे तो अमावस तिथि में पितरों के निमित्त दान आदि दिया जाता हैं परंतु शनिश्चरी अमावस देव एवं पितृ तर्पण की दृष्टि से विशेष रुप से प्रशस्त मानी जाती है। 24 जून को शनिश्चरी अमावस्या है। विद्वानों का मानना है की शनिदेव को मनाने का ये सबसे अच्छा और बड़ा दिन है।


कैसें करें शनि देव का पूजन?
इस दिन भगवान शनि देव की पूजा करने का प्रावधान है। शनिदेव सूर्यदेव के पुत्र एवं यमराज के बड़े भाई हैं। ज्योतिष के अनुसार शनिदेव को न्यायाधीश का पद प्राप्त है, क्योंकि वह सभी जातकों को उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। कुछ लोग शनि को कठोर देवता मानते हैं परंतु शनि तो सभी के साथ न्याय करते हैं। जगत में सच्चे झूठे का भेद समझना शनि का विशेष गुण है। अपने पद का दुरुपयोग न करने वाले यह शक्ति के देवता बुरे कर्म करने वाले को जहां दण्ड देते हैं वहीं सत्कर्म करने वाले परिश्रमी एवं ईमानदार लोगों के लिए उन्नति के द्वार खोल देते हैं।


शनिदेव के पूजन में सरसों का तेल, तिलों का तेल, उड़द की दाल, काले तिलों का प्रयोग करना चाहिए। धूप, दीप, नीले पुष्प, फल एवं नेवैद्य के साथ ही काले वस्त्र एवं काले तिलों से शनिदेव का पूजन करें। किसी पवित्र नदी अथवा तीर्थ स्थल पर स्नान करके श्री गणेश और भगवान विष्णु का पूजन करने के पश्चात पीपल के पेड़ पर न केवल कच्ची लस्सी अथवा जल चढ़ाना चाहिए बल्कि कच्चे सूत के साथ पीपल के पेड़ की परिक्रमा भी सात बार करनी चाहिए। रात को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों अथवा तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए। 


जिनके शनि की महादशा चल रही हो, ऐेसे जातकों को तो प्रत्येक शनिवार को पीपल के नीचे दीपदान करना चाहिए। इस दिन पितरों का श्राद्घ करना उत्तम कर्म हैं तथा नीच योनियों में पड़े पितरों का भी उद्घार हो जाता है। सरसों के तेल का दीपक जलाकर शनि स्तोत्र, शनि चालीसा, महामृत्यंजय का पाठ अवश्य करना चाहिए। इसके अतिरिक्त शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए इन मंत्रों का सच्चे मन से जाप करें :--
‘‘ओं शं शनैश्चराय नम:’’


‘‘सूर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्ष: शिवप्रिय:, मंदचार प्रसन्नात्मा पीड़ां हरतु में शनि:’’


‘‘नीलांजन समाभासं रवि पुत्रां यमाग्रजं,छाया मार्तण्डसंभूतं तं नामामि शनैश्चरम, प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:’’


‘‘ओं शं शनैश्चराय नम:,ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिया, कण्टकी कलही चाउथ तुरंगी महिषी अजा, शं शनैश्चारय नम:’’


पिंगलो बभु कृष्णौ रौद्रान्तको यम:, सौरि शनैश्चरा मंद पिप्पलादेन संस्थित:, ओम शं शनैश्चराय नम:’’ 

 

प्रस्तुति : वीना जोशी,जालंधर 
veenajoshi23@gmail.com


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