माता लाल देवी भवानी ने सदा श्रद्धालुओं की कामनानुसार दर्शन देकर झोलियां भरीं

punjabkesari.in Wednesday, Feb 14, 2018 - 05:39 AM (IST)

जगदम्बा जहं अवतरी सो पुर वरनि न जाई।
रिद्धि-सिद्धि सम्पत्ति सुख नित नूतन अधिकाई॥


श्री रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसी दास ने उक्त चौपाई में मां जगदम्बा के अवतरण स्थान का जो चित्रण किया है वह लाल भवन धाम परम पूज्य माता लाल देवी रानी का बाग अमृतसर जहां माता जी ने आसन लगाया में अक्षरश: सत्य उतरता है। शक्तिपीठ लाल भवन धाम का मातृ स्वरूप पूज्य माता लाल देवी भवानी ने 21 फरवरी 1923 को कसूर पाकिस्तान में अवतार लिया। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक प्रवृत्ति से जन्म से ही सात्विक आहार लिया और आयु पर्यन्त फलाहार लिया। माता जी ने 9 मास की अल्पायु में मां चिन्तपूर्णी दरबार (हि.प्र.) में चिन्तपूर्णी के प्रवेश के दर्शन देकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया और विद्वानों ने इन्हें मां चिन्तपूर्णी का साक्षात् रूप घोषित कर दिया। इसके उपरांत कुछ समय बाद परम पूज्या माता जी ने हर महीने की शुक्ल अष्टमी वाले दिन देवी आवेश में बैठकर श्रद्धालुओं की कामनानुसार दर्शन देकर झोलियां भरीं।


माता लाल देवी के 4 भाई चरणदास, ज्ञानचंद, लालचंद, सोहन लाल तथा ज्ञानोवती व केसरी 2 बहनें थीं। यह सर्राफ परिवार कृष्णोपासक था अत: कृष्ण भक्ति के संस्कार माता जी के मन में बचपन से ही पाए गए थे। उनके जन्म के बाद उक्त परिवार ने काफी समय पूर्व से चला आ रहा मुकद्दमा जीत लिया और अनेक प्रकार के कष्टों से निजात मिलती गई।


श्रद्धामयी माता 9 मास की थी तब इनका परिवार चिन्तपूर्णी धाम गया। उक्त अवस्था में उक्त बच्ची बैठना भी सीख नहीं पाई थी कि मंदिर परिसर माता चिन्तपूर्णी जी के पिंडी रूप दर्शन करते ही उनके शरीर में विशेष शक्ति संचार पाया गया। देवी आवेश में समाधिस्थ होकर वह झूमने लगी। आश्चर्यचकित परिवार व उपस्थित पंडितों-महंतों ने समझ लिया कि यह बालिका भगवती चिन्तपूर्णी का अवतार है और उसी समय सभी उन्हें माता जी कहकर पुकारने लगे। छोटी-सी उम्र में मां का दूध न ग्रहण कर माता जी गाय का दूध लेती रही।


5 वर्ष की अल्पायु में अन्न का त्याग कर दूध-फलों के अल्पाहार पर निर्भर रह कर सात्विक वृत्ति में तल्लीन रहीं। 7-8 वर्ष की आयु में ही दिन-रात भगवती ध्यान में लगी यह बालिका असाधारण लगने लगी। उनके कमरे से आते दिव्य आलौकिक प्रकाश व कई बार छोटी-छोटी बच्चियों के हंसने की आवाजें परिवार की महिलाओं को आश्चर्य में डाल देती थीं। सारी रात उन्हें ध्यान में तल्लीन देखा गया। ज्येष्ठ मास की तपतपाती दोपहर को वह समाधिस्थ अवस्था में छत पर पाई गईं।


लगभग 12 वर्ष की आयु में माता जी को उनके परिवार वाले घर पर छोड़ कर हरिद्वार गए। मान्यता है कि इनकी करुण पुकार पर भगवती गंगा ने इन्हें घर पर दर्शन दिए व एक दिव्य पात्र भी दिया। गंगा से जुड़ा गठबंधन ने पूज्या माता जी को आजीवन हरिद्वार से जोड़े रखा। उनके आलौकिक जीवन का अत्यंत आनन्दमय समय गंगा और हरिद्वार के प्रवेश से जुड़ा हुआ है। वर्ष में 3 बार वह शिष्यों के साथ हरिद्वार जाती रहीं। भारतवर्ष बनने के बाद माता जी ने अमृतसर आने पर इस भवन में आसन लगाया और जहां अल्पायु पर्यन्त कई लीलाएं भी कीं। 


जो पुष्पों का प्रसाद इस भवन में मिलता है वह पूज्या माता जी द्वारा अपने श्रद्धालुओं के लिए संजीवनी बूटी है जिससे कई आसाध्य रोगों से निजात मिलती है तथा नि:संतान दम्पतियों को संतान प्राप्त होती है। 9 जनवरी 1994 को पूज्या माता जी ने अपना आलौकिक शरीर त्याग दिया और ज्योति रूपा मां परम पिता की अखंड ज्योति में समा गईं। चिन्तपूर्णी (हि.प्र.) में उक्त ट्रस्ट द्वारा मां के नाम पर धर्मशाला का निर्माण किया गया है जहां पर हर मास संक्रांति वाली रात्रि मां भगवती जी का जगराता किया जाता है और लोगों के ठहरने की सुंदर व्यवस्था भी उपलब्ध है जिनकी जिम्मेदारी प्रधान विजय शर्मा व प्रबंधक बिट्टू मरवाहा द्वारा बाखूबी निभाई जा रही है। 


गौरतलब है कि 21 फरवरी को चिन्तपूर्णी (हि.प्र.) में माता जी का पावन जन्म दिवस मनाया जा रहा है जिसके तहत प्रात: 7 से 8 बजे तक हवन यज्ञ, 11 बजे ब्रह्म भोज, 12.30 से 4 बजे तक लंगर, 4.30 बजे कीर्तन, 7.30 बजे सायं केक की रस्म तथा 9.30 बजे मां भगवती जगराता होगा जिसमें कंचन बहन एंड पार्टी जालंधर, विनोद अरोड़ा एंड पार्टी तथा मां भगवती मंडल फूलों वाली मंडली दिल्ली से महामाई का गुणगान करेगी।


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