जीवन की मुश्किलों से हैं परेशान तो याद रखें महात्मा बुद्ध का ज्ञान
punjabkesari.in Monday, Aug 21, 2017 - 10:40 AM (IST)
महात्मा बुद्ध एक बार अपने शिष्य आनंद के साथ कहीं जा रहे थे। वन में काफी चलने के बाद दोपहर में एक वृक्ष तले विश्राम को रुके और उन्हें प्यास लगी। आनंद पास स्थित पहाड़ी झरने पर पानी लेने गया लेकिन झरने से अभी-अभी कुछ पशु दौड़कर निकले थे जिससे उसका पानी गंदा हो गया था। पशुओं की भाग-दौड़ से झरने के पानी में कीचड़ ही कीचड़ और सड़े पत्ते बाहर उभरकर आ गए थे। गंदा पानी देखकर आनंद पानी बिना लिए लौट आया। उसने बुद्ध से कहा कि झरने का पानी निर्मल नहीं है, मैं पीछे लौटकर नदी से पानी ले आता हूं लेकिन नदी बहुत दूर थी तो बुद्ध ने उसे झरने का पानी ही लाने को वापस लौटा दिया।
आनंद थोड़ी देर में फिर खाली लौट आया। पानी अब भी गंदा था, पर बुद्ध ने उसे इस बार भी वापस लौटा दिया। कुछ देर बाद जब तीसरी बार आनंद झरने पर पहुंचा तो देखकर चकित हो गया। झरना अब बिल्कुल निर्मल और शांत हो गया था, कीचड़ बैठ गया था और जल बिल्कुल निर्मल हो गया था।
महात्मा बुद्ध ने उसे समझाया कि यही स्थिति हमारे मन की भी है। जीवन की दौड़-भाग मन को भी विक्षुब्ध कर देती है, मथ देती है, पर कोई यदि शांति और धीरज से उसे बैठा देखता रहे तो कीचड़ अपने आप नीचे बैठ जाता है और सहज निर्मलता का आगमन हो जाता है।
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