श्रीहरि को शिवजी से मिला था 'कमल नयन' कहलाने का वरदान

punjabkesari.in Sunday, Mar 11, 2018 - 01:21 PM (IST)

धर्मिक ग्रंथों व शास्त्रों में एेेसी कई कथाएं दी गई हैं, जिनसे हमें प्रभु की महिमा व उनके द्वारा अपने भक्तों को दिए गए वरदानों आदि के बारे में पता लगता है। तो आईए आज हम आपको एेसी ही एक कथा के बारे में बताएं जो भगवान विष्णु व शकंर के बारे में है। जिसमें विष्णु भगवान ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अपना नेत्रदान कर दिया था। परंतु एेसा क्या हुआ था जो भगवान विष्णु को शिव शंकर को अपने नेत्र अर्पित करने पड़े थे, इसके बारे में शायद ही किसी को पता होगा।

पौराणिक कथा 
सनातन धर्म में भगवान विष्णु को संसार का पालनहार माना जाता है। भगवान विष्णु को सनातन धर्म के तीन प्रमुख ईश्वरीय रूपों "ब्रह्मा, विष्णु, महेश" में से एक रूप माना जाता है तथा भगवान विष्णु ही नारायण, हरि पालक और स्वयं श्रीभगवान हैं। सनातन धर्म के दार्शनिक खंड अनुसार भगवान नारायण के हर चित्र व मूर्ति में उन्हें सुदर्शन चक्र धारण किए दिखाया जाता है। 


क्या आप जानते हैं कि यह सुदर्शन चक्र उन्हें स्वयं परमेश्वर शिव ने जगत कल्याण हेतु दिया था। परमेश्वर शिव द्वारा श्रीहरि को वरदान स्वरुप सुदर्शन चक्र देने के पीछे पुराणों में एक वृतांत आता है। शास्त्रानुसार एक बार जब दैत्यों के अत्याचार बहुत बढ़ गए तब सभी देवगण श्रीहरि के पास आए। देवगणों के समस्या समाधान हेतु भगवान विष्णु ने शिवधाम कैलाश जाकर शिवशंकर से प्रार्थना की। 


परमेश्वर शिव को प्रसन्न करने हेतु भगवान श्रीहरि ने शिवसहस्त्रनामावली से परमेश्वर की उपासना की अर्थात हजार नामों से भगवान शंकर की स्तुति की। भगवान विष्णु ने शिवशंकर के प्रत्येक नाम के उच्चारण के साथ एक कमल का फूल परमेश्वर शिव को अर्पित किया। तब परमेश्वर शिव ने श्रीहरि की परीक्षा लेने के लिए उनके द्वारा लाए एक हजार कमल में से एक कमल का फूल विलुप्त कर दिया । भगवान विष्णु परमेश्वर शिव की माया से अनजान रहे तथा इस बात का पता न लगा सके कि एक फूल आखिर गया कहां। क्योंकि ये तो देवों के देव महादेव कि महामाया थी जिससे स्वयं श्रीभगवान भी न बच पाए। 


परंतु विष्णु तो सर्वोत्तम परम शिवभक्त थे। अतः एक फूल कम पाकर भगवान विष्णु उसे ढूंढ़ने का प्रयास करने लगे परंतु उन्हें फूल नहीं मिला। तब परम शिवभक्त श्रीहरि विष्णु ने एक फूल की पूर्ति हेतु अपना एक नेत्र निकालकर परमेश्वर शिव को अर्पित कर दिया। श्रीहरि विष्णु की अटल भक्ति देखकर परमेश्वर शिवशंकर अतिप्रसन्न हुए तथा विष्णु के समक्ष प्रकट होकर भगवान विष्णु को नए नाम "कमलनयन" से पुकारा तथा उनसे वरदान मांगने के लिए कहा। 


तब श्रीहरि ने भगवान शंकर से एक ऐसे अजेय शस्त्र का वरदान मांगा जिसकी सहायता से वे देवगणों को दैत्यों के प्रकोप से मुक्त कर सकें। फलस्वरूप परमेश्वर शिव ने विष्णु को अपना सुदर्शन चक्र दिया। श्रीनारायण ने उसी सुदर्शन चक्र से असुरों का संहार किया। इस प्रकार सुरों को असुरों से मुक्ति मिली तथा शिवस्वरूप सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु के साथ सदैव शिव की माया के रूप में जुड गया।


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