‘राम जन्म’ एक सैक्युलर पर्व है, ये है चमत्कारी अवतार अयोध्यापति की जीवनगाथा

punjabkesari.in Monday, Apr 03, 2017 - 12:36 PM (IST)

प्राचीनता की दृष्टि से हिन्दू मत, पंथ या धर्म एक बहुलवादी जीवन शैली रहा है। रामनवमी के दिन जन्म लेने वाले श्री राम अयोध्या नरेश दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे और उनका पूरा जीवन असत्य को पराजित कर सत्य की स्थापना करने वाले धर्म के प्रति समर्पित रहा। एक अवतार के रूप में उन्होंने निशाचरों से इस धरा को मुक्त किया और सच्ची आस्थाओं और स्वस्थ निष्ठाओं की एक परंपरा डाली, जो आज भी सभी मानवीय समाजों में आदरणीय है।


राम कथा के आदि कवि भगवान वाल्मीकि तो प्रथम कवि माने जाते हैं, पर 16वीं शताब्दी के भक्त कवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस एेतिहासिक प्रकरण में धर्म और मर्यादाएं डालकर एक एेसी धार्मिक जीवन प्रणाली का निरूपण किया है जो किसी भी अन्य धर्म की आस्थाओं से नहीं टकराती, बल्कि परिवार, समाज और राज्य तीनों को ही अपनी-अपनी सीमाआें में बांधकर कर्तव्य पालन की नैतिकता को समझा रही है। भगवान श्री राम के चरित्र और कर्म को किसी भी तरह से देखा जाए, वह मनुष्य जीवन को पिता, पति, पुत्र, शासक, प्रजा, मित्र, शत्रु आदि की सभी भूमिकाआें में इंसानियत का संदेश देता है। राम अवतार होते हुए भी एक साधारण राजकुमार की जिंदगी जीते हैं। वनवास काल में जंगल में रहते हुए नाना प्रकार के दु:ख भोगते हैं, कर्तव्य पालन के लिए राक्षसों से युद्ध लड़ते हैं और एक आदर्श राम राज्य की स्थापना भी करते हैं।


कवि और कथाकारों ने कहीं-कहीं उन्हें अलौकिक असाधारण काम करते हुए भी दिखलाया है, जो उनके अवतार रूप को उजागर करता है। उदाहरण के लिए उनके पैर लगाने से पत्थर की शापित प्रतिमा एक जीवित ऋषि पत्नी अहिल्या बन गई, हनुमान जब पर्वत पर जड़ी-बूटी नहीं ढूंढ सके तो वह पूरा पर्वत ही अपनी हथेली पर उठा लाए। एक सोने के हिरण को देखकर सीता ने उन्हें शिकार के लिए भेज दिया। लंका तक पहुंचने के लिए नल और नील ने पत्थर डाले और वे तैरते रहे इत्यादि।


ये असाधारण प्रसंग और दैवी घटनाएं राम को देवता विकसित करती हैं पर पिता की आज्ञा से राज्य छोड़कर जंगल में जाना, शबरी के जूूठे बेर खाना, सीता हरण और रावण युद्ध जैसी घटनाएं उनका वह शासक रूप है, जो आज भी एक प्रजावत्सल राजा का मानव आदर्श माना जाएगा। राम कथा के सभी पात्र साधारण इंसान हैं और उनके साधारण और असाधारण दोनों ही प्रकार के कार्य मानव धर्म और दैवी आदेशों से जुड़े हुए हैं। परम्परा के अनुसार राम कथा के कवियों ने ‘वरदानों’ और श्रापों का सहारा लिया है, जो उस युग में पुरस्कार बांटने और दंड विधानों के तरीके जैसे लगते हैं। 


सभी धर्म अजूबों या ‘मिरेकिल्स’ का सहारा लेकर अपनी अपनी बातें कहते रहे हैं। राम कथा में इतिहास का इतिवृत और दैवी असाधारणता का दैवी विधान दोनों ही समाहित है। यही अद्भुत समन्वय धर्म, नैतिकता, राजनीति और सामाजिक कर्तव्यों को जोड़ता हुआ उन्हें व्यावहारिक बनाता है। राम एक मर्यादा पुरुषोत्तम देवता हैं। उनका चरित्र नैतिक और सैक्युलर है। उन्हें एक चमत्कारी अवतार के रूप में प्रस्तुत करने वाला रामायण एक बेजोड़ ग्रंथ है। अयोध्यापति की यह जीवनगाथा मनुष्य के नैतिक कर्तव्यों को याद दिलाती है। अत: राम जन्म को एक ‘सैक्युलर पर्व’ के रूप में मनाना ईश्वर के नाम पर भारतीय संविधान की संरक्षा की शपथ लेना कहा जा सकता है।  


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