कष्टों से छुटकारा चाहते हैं तो करें इस वस्तु का त्याग

punjabkesari.in Thursday, Feb 23, 2017 - 11:20 AM (IST)

एक संत और उनका एक शिष्य दोनों ही धर्म प्रचार करने के लिए गांव-गांव घूमते थे। वे एक गांव में पहुंचे और एक कुटिया बनाकर उसमें रहने लगेे। नगरवासी उनका बहुत सम्मान करते और उन्हें भोजन इत्यादि देने के साथ-साथ पर्याप्त दान-दक्षिणा भी दे दिया करते थे। एक दिन अचानक संत शिष्य से कहने लगे,‘‘बेटा, यहां बहुत दिन रह लिया। चलो, अब कहीं और रहा जाए।’’


शिष्य ने पूछ लिया,‘‘क्यों गुरुदेव? यहां तो बहुत चढ़ावा आता है। क्यों न कुछ दिन बाद चलें तब तक और चढ़ावा इकट्ठा हो जाएगा?’’


संत ने जवाब दिया,‘‘बेटा, हमें धन और वस्तुओं के संग्रह से क्या लेना-देना, हमें तो त्याग के रास्ते पर चलना है।’’ 


गुरु की आज्ञा सुनकर शिष्य ने सब ज्यों का त्यों उसी कुटिया में छोड़ दिया लेकिन फिर भी चलते हुए उसने गुरु से चोरी कुछ सिक्के अपनी झोली में डाल लिए। दोनों अगले गांव की ओर चल दिए लेकिन वे जिस गांव जाना चाहते थे, उसे एक नदी पार करके जाना पड़ता था। जब वे नदी तट पर पहुंचे तो नाव वाले ने कहा,‘‘मैं नदी पार कराने के 2 सिक्के लेता हूं। आप लोग साधु-महात्मा हैं इसलिए आपसे एक ही लूंगा।’’


संत के पास पैसे नहीं थे, इसलिए वह वहीं आसन लगा कर बैठ गए। शिष्य के पास पैसे थे लेकिन क्योंकि वह उन सिक्कों को गुरु की आज्ञा के विरुद्ध चोरी से लाया था, इसलिए उसने भी सिक्के नहीं दिए और वह भी गुरु जी के साथ बैठ गया, यह देखने के लिए कि गुरु जी बिना पैसों के नदी कैसे पार करते हैं?


गुरु जी इस आस में बैठे थे कि या तो नाव वाला उन्हें बिना सिक्कों के नदी पार करवा दे या कोई भक्त आ जाए, जो उन्हें दान-दक्षिणा दे दे, ताकि वह उससे नाव वाले का भुगतान कर दें। बैठे-बैठे शाम हो गई, लेकिन गुरु जी का न तो कोई भक्त ही आया और न ही नाव वाला उन्हें बिना सिक्कों के नदी पार करवाने के लिए राजी हुआ। जब शाम हो गई तब नाव वाले ने उन्हें डराते हुए कहा,‘‘यहां रात रुकना खतरे से खाली नहीं है। इसलिए बेहतर यही होगा कि आप यहां से या तो नदी पार करके अपने गंतव्य स्थान पर चले जाएं या जहां से आए हैं वहीं चले जाएं।’’


खतरे की बात सुनकर शिष्य घबरा गया और उसने झट से अपनी झोली से 2 सिक्के निकालकर नाव वाले को दे दिए। बदले में नाव वाले ने उन्हें नदी पार पहुंचा दिया। गुरु जी ने शिष्य से पूछा,‘‘तुमने गांव का चढ़ावा क्यों ले लिया, मैंने तुम्हें सब कुछ छोड़ देने के लिए कहा था फिर भी तुमने ये सिक्के अपने पास क्यों रख लिए?’’


शिष्य बोला,‘‘गुरु जी, यदि वे सिक्के मेरी झोली में न होते तो संभवत: हम दोनों कष्ट में पड़ जाते।’’ 


संत ने मुस्कुराकर कहा,‘‘जब तक सिक्के तुम्हारी झोली में थे, तब तक हम कष्ट में ही थे, जैसे ही तुमने उनका त्याग किया, हमारा काम बन गया। इसलिए त्याग में ही सुख है।’’


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