पराक्रमी और यश की प्रतीक मिथुन राशि, जानें इस राशि से जुड़ी खास बातें

punjabkesari.in Monday, Mar 05, 2018 - 10:06 AM (IST)

मिथुन (क, की, कु, घ, ड़, छ, के, को, ह) सूर्य की स्थिति इस राशि पर अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 15 जून से 15 जुलाई के मध्य रहती है। राशिचक्र में स्थित दो प्रकाशमान तारों (जिनमें एक अधिक और दूसरा कम प्रकाश देता है) के संयोग से मिथुन राशि बनी है। पृथ्वी पर विषुवत् रेखा से ठीक 24 डिग्री उत्तर की ओर इसकी स्थिति नजर आती है। राशिचक्र की तीसरी राशि मिथुन 60 अंश से 90 अंश देशांतर मध्य स्थित है। अंग्रेजी में इसे ‘जैमिनी’ कहते हैं। इस राशि में मृगशिरा, आद्र्रा और पुनर्वसु नक्षत्र आते हैं। मृगशिरा नक्षत्र मंगल ग्रह संबंधी प्रभावकारक है। आद्र्रा एक सर्पाकृति है और बहुत चमकदार भी है। इस तारे का स्वामित्व राहू छाया ग्रह को प्राप्त है। पुनर्वसु स्टार बृहस्पति के स्वामित्व में आता है।


ये अधिक चमकने वाले दो तारे पाश्चात्य मतानुसार दो जुड़वां बच्चे हैं। ये बृहस्पति ग्रह से संबंधित माने जाते हैं। पुराणों की एक आख्यायिका के अनुसार ये किसी तूफान में फंस जाने पर कठिन परिस्थिति में अपना साहस कायम रखते हुए अपने जहाज में अंत तक चलते रहे, अत: राशिचक्र की यह तीसरी राशि प्राकृतिक रूप से ही पराक्रमी और यश की प्रतीक मानी जाती है।


पाश्चात्य ज्योतिषियों ने इसे भिन्न होते हुए भी एकता और अनुरूपता का प्रतीक व बुद्धिमानी, साहस तथा उत्साह का प्रतिरूप माना है।


मिथुन विषम राशि कहलाती है, इसका क्षेत्र बुध ग्रह द्वारा संचालित है, जिसे खगोलज्ञों ने सौरमंडल में दूत अथवा युवराज का पद दिया है। यह द्विस्वभाव राशि है, यानी चर और स्थिर राशियों के गुणों से मिश्रित। इसे पुलिंग राशि मानते हैं, जबकि इस राशि का स्वामी बुध ग्रह नपुंसक माना जाता है।


विश्व का हरित रंग मिथुन राशि का प्रतिनिधित्व करता है अत: यह वायु तत्व वाली, हरियाली की सूचक, समशीतोष्ण स्वभाव की तथा भूरे मटमैले वर्ण की होती है। यह रात्रिबली राशि है। इसका चेहरा एकदम गौर वर्ण का नहीं होता, बल्कि कुछ मटमैलापन लिए होता है। मध्यम संतान युक्त, शिथिल अंगों वाली यह राशि पश्चिम दिशा की स्वामी मानी जाती है। अर्थात इसको जीवन में कई बार पश्चिम दिशा से लाभ होता है। लौकिक ज्योतिष में यह राशि, यू.एस.ए., उत्तरी अफ्रीका तथा वेल्स आदि देशों का प्रतिनिधित्व करती है। इस राशि का प्राकृतिक स्वभाव विद्या, व्यसनी, कला अथवा शिल्प विद्याओं से युक्त होना और कलात्मक अभिरुचियों से ख्याति ग्रहण करना होता है। तारामंडल के मानचित्र में इस सम शरीर वाली भोगी पुरुष राशि का आकार एक स्त्री-पुरुष के जोड़े का-सा है जिसमें स्त्री के हाथ में कोई वाद्य यंत्र है और पुरुष के हाथ में स्त्री का कटि प्रदेश। दोनों गायन-वादन एवं क्रीड़ा करते हुए दिखाई देते हैं। 


इस आधार पर विश्व में आर्थिक एवं सांस्कृतिक जागृति प्राप्त देशों को मिथुन राशि का प्रतिनिधि माना जाता है। इस जीव संज्ञक राशि का निवास स्थान पश्चिम दिशा में स्थित, जुआघरों, कैफे, रेस्तरांओं, सभी प्रकार के पर्यटन केंद्रों, झील, प्रपात, लेक, ग्लेशियर, क्रीड़ा-महोत्सव, सागर तट, आमोद गृह, रति विहार, भूमि, सिनेमा, थिएटर और अन्य प्रकार की मनोरंजन-शालाओं से माना जाता है। यह राशि शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के कार्यों में दक्ष, वाचक और महत्वाकांक्षी विचारों की होती है। इस द्विपद राशि का भाग्यांक-5 माना जाता है। यह क्रूरकर्मा, चंचल और शांत बाल अवस्था वाली, हरितवर्ण, सत्वगुण प्रधान एवं कल्पना शक्ति से सम्पन्न होती है। यह यद्यपि रात्रि में विशेष बली यानी बलवान होती है परन्तु आद्योपान्त कार्यशीलता इसका प्राकृतिक गुण है। राशि को वक्ता, एनाऊंसर और बुद्धिदाता भी माना जाता है।


इस भृत्य राशि को हास्य, नृत्य, गायन, वाद्य, शिल्प, गणित, वैज्ञानिक अनुसंधान तथा वायुयान यात्रा का प्रतिनिधित्व भी प्राप्त है। हिरण इस राशि का प्रतिनिधि पशु है। हमारे जीवन में अंतरंग मित्र इसी राशि का प्रतिनिधित्व करते हैं। मिथुन राशि के द्रव्य विशेष पृथ्वी पर पाए जाने वाले पदार्थ, शरद्कालीन व अन्य ज्वार, बाजरा, मूंग, मोठ, मूंगफली, कपास, बिनौला, जूट, बारदान, केसर, कस्तूरी, हल्दी, कुंकुम, कागज, सम्पादन, प्रकाशन, पत्रकारिता, शिल्पकला, क्लर्क-स्टैनो, पत्रकार, संघ का अध्यक्ष पद, प्रतीक्षा स्थल और मनोरंजक यात्राओं के बीच खरीदी गई वस्तुएं आदि हैं।


पूर्वी क्षितिज पर सूर्य उदय होते समय अगर कोई जातक पैदा हो तो वह काले नेत्रों वाला, अध्ययनशील, शास्त्रज्ञानी तथा तर्क करने में निपुणता है। ऐसे लोग दूत कार्य करने में निपुण, मध्यस्थता अथवा साक्षी कार्यों में सम्मिलित होने और सामाजिक आस्थाओं में रुचि रखने वाले होते हैं। मिथुन जातक बुद्धिमान, सट्टा, जुआ आदि के शौकीन, दूसरे के मन की बात को समझने में कुशल, सदा ही प्रिय वचन बोलने वाले, खाने-पीने अथवा स्त्री प्रसंग की बातें करने वाले होते हैं।


ये जातक गीत, वाद्य के शौकीन, नृत्य एवं कामशास्त्र में विशेष निपुण तथा अल्पवीर्य जातकों के मित्र होते हैं। इनकी नासिका ऊंची अथवा तीखी होती है। देखने में चुस्त एवं फुर्तीले परन्तु दैनिक कार्यों में आलसी होते हैं। सूर्य की स्थिति इस राशि पर अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 15 जून से 15 जुलाई के मध्य रहती है। इस स्थिति के अनुसार इस समयावधि के मध्य पैदा हुए जातक शिक्षा के क्षेत्र में विशेष ख्याति अर्जित करते हैं। ये लोग या तो कोई सर्जन-फिजीशियन बनते हैं अथवा लेखन, चित्रकारी में विशेष निपुण साबित होते हैं। इनकी रुचि रहस्य-विज्ञान की ओर भी होती है परन्तु भृत्य राशि होने के कारण अधिकांश जातक स्वतंत्र व्यवसाय नहीं कर पाते हैं, अत: आजीविका पर ही निर्भर रहते हैं। आषाढ़ मास का सूर्य मिथुन राशि का सूर्य माना जाता है। चंद्रमा की स्थिति इस राशि पर स्थूल रूप से दो पक्षों में एक बार सवा-दो दिन के लिए बनती है। इसके अनुसार जातक विद्या में अनुराग रखने वाला, चंचल, स्वरूपवान, शांत, सुखी और भोगी होता है। यदि बुध ग्रह निर्बल न हो तो जातक शिल्प, वाणिज्य, लेखन अथवा वाक्-शक्ति में निपुणता प्राप्त करता है और ख्याति एवं सम्मान अर्जित करता है। आधुनिक समय में कला, संस्कृति और ख्याति प्राप्त खेलों तथा फिल्म, टैलीविजन कलाकारों और स्वच्छ राजनीति के क्षेत्र एवं सांस्कृतिक अभियानों का प्रतिनिधित्व मिथुन जातक करते हैं। यह राशि किशोरावस्था से युवावस्था के मध्य में ही अपना सर्वोच्च समय प्राप्त कर लेती है।


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