जानिए, विश्वामित्र ने कैसे पाई ब्रह्मर्षि का उपाधि

punjabkesari.in Wednesday, Aug 30, 2017 - 01:43 PM (IST)

विश्वामित्र ने ऋषि, महर्षि और उसके बाद राजर्षि तक की उपाधि पा ली थी मगर कोई उन्हें ब्रह्मर्षि का दर्जा नहीं दे रहा था। जब भी कहीं ऐसी कोई चर्चा चलती, उन्हें यही सुनने को मिलता कि ब्रह्मर्षि तो वशिष्ठ हैं। उन्होंने और कठिन तपस्या शुरू की। कहते हैं कि उनके तप के प्रभाव से दिग-दिगंत कांप उठे, पर लंबी तपस्या का भी वैसा कोई फल नहीं मिला जैसा विश्वामित्र चाहते थे। आखिर उनका धैर्य जवाब दे गया। उन्होंने तपस्या छोड़ी और चल पड़े वशिष्ठ के आश्रम की ओर कि आज नहीं छोड़ूंगा उसे।
उन्हें लग रहा था कि जरूर वशिष्ठ की इसमें कोई चाल है, वर्ना ऐसा क्या कि उनके अलावा दूसरा कोई ब्रह्मर्षि न बन सके। 

यही सब सोचते हुए विश्वामित्र वशिष्ठ के आश्रम तक पहुंच गए। उन्होंने देखा कि चांदनी रात में वशिष्ठ बैठे अपने शिष्यों के साथ बातचीत कर रहे हैं। वहीं पास की झाड़ी में छिप कर वह गुरु और शिष्यों के बीच की बातचीत सुनने लगे। शिष्य ने वशिष्ठ से पूछा, ‘‘गुरुवर स्वच्छ आकाश में प्रकाश फैला रहे इस शीतल चांद को देख कर आपके मन में कौन से भाव आ रहे हैं।’’

वशिष्ठ बोले, ‘‘चांद की चांदनी वैसे ही पूरे संसार को प्रकाशित कर रही है जैसे ऋषि विश्वामित्र का यश।’’ विश्वामित्र चकित रह गए। कहां तो मैं इन्हें मारने चला था और कहां यह मेरी प्रशंसा कर रहे हैं। वह सामने आए और सीधे वशिष्ठ के चरणों पर गिर पड़े, ‘‘क्षमा ऋषि प्रवर, क्षमा।’’

वशिष्ठ ने उन्हें उठाते हुए कहा, ‘‘उठो ब्रह्मर्षि।’’ इस बार विश्वामित्र समेत समस्त शिष्टमंडली चौंक पड़ी, पर वशिष्ठ मुस्कुराते खड़े थे। उन्होंने कहा, ‘‘विश्वामित्र हर तरह से योग्य थे, बस उनका अहं और इस पद की लालसा उनके मार्ग की बाधा थी। जैसे ही वह पश्चाताप के आंसुओं के साथ झुके, दोनों बाधाएं तत्क्षण दूर हो गईं और वह पद उन्हें मिल गया जिसके वह अधिकारी थे।’’


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