जन्माष्टमी और जश्न-ए-आजादी: अधर्म की राजनीति कैसे होती है ध्वस्त

punjabkesari.in Tuesday, Aug 15, 2017 - 07:53 AM (IST)

श्री कृष्ण जन्माष्टमी, द्वारिकाधीश, यशोदा नंदन, उस गोपाल का जन्म दिन है, जो विश्व के हिन्दू समाज की आस्था का केंद्र है। महाभारत के महायुद्ध में अर्जुन के सारथी के रूप में पांडव सेना के इस महानायक ने जो भूमिका निभाई थी, उसने दुर्योधन की अधर्म की राजनीति को बिना कोई हथियार उठाए पूरी तरह ध्वस्त कर दिया था। महाभारत के युद्ध के हर निर्णायक मोड़ पर कौरव कुल के संहार के लिए उत्तरदायी राधा-वल्लभ श्री कृष्ण अपने गीता के ज्ञान के कारण युगों-युगों से भारतीय ज्ञान के ‘आदि देव’ माने जाते हैं। महाभारत के रचयिता वेद व्यास इस अमर रचना में जिस भारतीय दर्शन को समझा रहे हैं वह श्री कृष्ण की वह श्रीमद् भागवत गीता है। 


श्रीमद् भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण केवल अपना विराट रूप ही नहीं दिखाते बल्कि अर्जुन जैसे योद्धा को भी निष्काम कर्म और निर्लिप्त जीवन का ‘योग कर्मसु कौशलम्’’ का संदेश भी समझा रहे हैं। 


द्वारिकाधीश श्री कृष्ण इतिहास में एक राजा हैं। अपने दुष्ट मामा कंस का वध करने के लिए ही उन्होंने अवतार लिया है। देवकी नंदन होते हुए भी वह यशोदा मैया के प्यारे गोपाल हैं। श्री कृष्ण भगवान एक असाधारण व्यक्तित्व के धनी हैं। वह सुदामा के बाल सखा हैं, राधा के प्राण वल्लभ हैं, गोपियों के चित्त चोर हैं।


पूरे भारत वर्ष में भगवान श्री कृष्ण के लाखों मंदिर हैं। मथुरा वृंदावन तो उनकी वह लीला भूमि है जो हिन्दू तीर्थ और स्मारकों से अटी पड़ी है। श्री कृष्ण के प्रिय मित्र अर्जुन एक जीवंत गांडीवधारी धनुर्धर हैं। 


करोड़ों हिन्दू श्री कृष्ण की वाणी और आदर्श कर्मों से प्रेरणा लेते हैं। उड़ीसा में श्री बलभद्र और देवी सुभद्रा की वार्षिक रथ यात्रा, जगन्नाथ मंदिर का एक दुर्लभ आकर्षण है। ‘राधा कृष्ण’ का जाप करने वाले भारतीय इस दम्पत्ति को अपना ‘आराध्य’ मानते हैं। विभिन्न प्रकार की पूजा अर्चना करते हैं और राधा गोविंद की आकर्षक झांकियों से अपने बच्चों को धर्म शिक्षा भी देते हैं।


ऐसे यशस्वी गोवद्र्धनधारी भगवान श्री कृष्ण का आज जन्म दिन है। इस दिन का हिन्दू धर्मावलंबियों का ‘क्रिसमस’ भी कहा जा सकता है। श्री कृष्ण ने भगवान श्री राम की भांति अधर्मियों का नाश कर भारत भूमि को पापों से मुक्त किया। महाभारत की विजय से धर्म संस्थापना का उनका यह प्रयास पूरा हुआ। आज 15 अगस्त को अष्टमी की पावन बेला में कंस के कारागार में जन्म लेने वाले श्री कृष्ण गीता के अपने उसी वचन को निभा रहे हैं जो हमें यह याद दिलाता है कि ‘‘यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारते: अभ्युत्थानं धर्मस्य, आत्मनम् सृजाम्य हम’’ 


साधु जनों की रक्षा करने और दुष्ट लोगों को संहार करने के लिए यह चमत्कारी देव प्रत्येक युग में अवतार लेकर धर्म की स्थापना करते हैं। आज 15 अगस्त को पीछे देखने पर विदेशी शासकों के अत्चाचारों की एक लम्बी कहानी याद आती है। इस सबसे त्राण दिलवाने वाले इस कनक बिहारी श्री गोविंद देव को हमारे पूरे युग का युग-युग तक नमस्कार।


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