सर्दी-गर्मी मिलता है प्रसाद, नहीं होती पूजा

punjabkesari.in Friday, Dec 01, 2017 - 12:44 PM (IST)

उत्तर प्रदेश का छोटा सा जिला फर्रुखाबाद, पौराणिक महत्व वाले मंदिरों के लिए जाना जाता है। इन्हीं मंदिरों में एक ऐसा मंदिर है, जहां कोई खास पूजा नहीं होती लेकिन प्रसाद सुबह से शाम तक बंटता है। गर्मी में लोगों के लिए यह प्रसाद किसी अमृत से कम नहीं होता। 15 साल से इधर से निकलने वाले राहगीर इस जल मन्दिर में कुछ देर रुक कर जल रूपी प्रसाद पाकर राहत जरूर पा लेते हैं। झुलसा देने वाली तेज धूप और गर्मी के बीच अपनी प्यास बुझाने की आस में लोग जल मंदिर पहुंचते हैं। रेलवे रोड़ पर चौक के पास स्थित जल मंदिर सालों से राहगीरों की प्यास बुझा रहा है। सर्दी के दिनों में यह गरीबों के लिए अंगीठी से आंच लेने का मंदिर बन जाता है।

 
परिवार में हमेशा बनी रहती हैं खुशियां 
तलैया फजल मोहल्ले में रहने वाले मंदिर के संरक्षक प्रमोद कुमार कनौजिया एक दवा कारोबारी हैं। उन्होंने सन् 2000 की गर्मियों में आसपास पीने के पानी का इंतजाम न होने से परेशान राहगीरों की मदद करने की सोची। इसे साकार करने के लिए उन्होंने दुकान में नि:शुल्क प्याऊ का इंतजाम कर दिया। इसे जल मंदिर का नाम दिया गया। यहां 40 बड़े घड़े रखे गए हैं। पानी पिलाने के लिए हर समय कोई न कोई तैनात रहता है। रोज करीब 1000 से ज्यादा लोग यहां से प्यास बुझा रहे हैं। प्रमोद जी का कहना है कि सुबह गंगा जी जाते समय एक बाबा जी की सलाह पर उन्होंने नि:शुल्क प्याऊ का इंतजाम किया। उनका कहना है की नि:शुल्क प्याऊ का इंतजाम करने से मेरे परिवार में हमेशा खुशियां बनी रहती हैं।

 
पालिका को सीख लेकर प्याऊ लगवाने चाहिए
पानी पिलाने वाले कबीर का कहना है कि हर साल नवरात्र से प्याऊ शुरू किया जाता है। दशहरा को शरबत पिलाया जाता है। इसके बाद प्याऊ बंद हो जाता है। यह जल मंदिर सर्दी में गरीबों को ठिठुरन से बचाने वाला बन जाता है। उन दिनों में यहां अंगीठी जलाई जाती है। आंच लेने के लिए पूरा दिन भीड़ लगी रहती है। पानी से प्यास बुझाने वाले का कहना है कि इससे पालिका को सीख लेकर प्याऊ लगवाने चाहिए।

 
प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का काम
स्थानीय दूकानदार मोहन का कहना है कि प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का काम माना जाता है। एक जमाना या जब यह पुण्य लोग कमाते थे। कस्बों से लेकर ग्रामीण अंचलों में गर्मी के मौसम में सक्षम लोग जगह-जगह मिट्टी के मटकों में पानी भरकर प्याऊ लगवाते थे। सरकारी स्तर से लेकर स्वयंसेवी संस्थाओं द्वार प्याऊ लगवाने की व्यवस्था करते थे। इन प्याऊ पर हलक तर करने के लिए लोगों की पूरे दिन भीड़ लगी रहती थी। लेकिन समय बदलने के साथ ही लोगों की सोच बदल गयी है। वर्तमान में प्याऊ लगवाने का चलन कम हो गया है। जब सरकारी तौर पर रास्ते में लोगो को पानी पिलाने के कोई इंतजाम नहीं किये गए है। इसे में यह कोशिश काबिले तारीफ है।


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